छत्तीसगढ़ चुनाव 2023: बलौदाबाजार जिले की विधानसभा सीटों पर निर्णायक भूमिका में होते है ओबीसी और एससी मतदाता

बलौदाबाजार जिले की विधानसभा सीटों पर निर्णायक भूमिका में होते है ओबीसी और एससी मतदाता
  • छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव 2023
  • बिलाईगढ़,कसडोल,बलौदाबाजार, और भाटापारा विधानसभा सीट
  • त्रिकोणीय मुकाबला

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। बलौदाबाजार जिले में चार विधानसभा सीट बिलाईगढ़,कसडोल,बलौदाबाजार और भाटापारा आती है। सीमेंट का हब कहे जाने वाले बलौदाबाजार -भाटापारा जिले की स्थापना 1 जनवरी 2012 को हुई। यह प्रकृति प्रेमियों के लिए किसी स्वर्ग से कम नहीं है। जिले के नामकरण की कहानी बहुत ही रोचक है। कहा जाता है कि पूर्व में गुजरात, हरियाणा, महाराष्ट्र, उड़ीसा, बरार आदि प्रांतों के व्यापारी बैल और भैंसा (बोदा) खरीदने-बेचने यहां आया करते थे। जिसके फलस्वरूप इसका नाम बैलबोदा बाजार और कालांतर में बलौदा बाजार के रूप में प्रचलित हुआ।

गिरौदपुरी सतनामी संत गुरू घासीदास जी का जन्मस्थल है। उनके सम्मान में प्रदेश सरकार ने यहा जैतखाम बनवाया है। छत्तीसगढ़ में सन 1857 के विद्रोह के प्रथम शहीद वीरनारायण सिंह की भी जन्मभूमि है। वहीं दामाखेड़ा कबीर पंथियों का तीर्थ है। बारनवापारा अभ्यारण्य भी इसी जिले के अंतर्गत आता है। ।

यहां चूना पत्थर अधिक पाया जाता है। अल्ट्राटेक, अम्बूजा, लाफार्ज, ग्रासिम. इमामी, श्री सीमेंट जैसी बड़े उद्योग सयंत्र यहां है। सोनाखान के बघमरा गांव में स्वर्ण चूने के पाए जाने की पुष्टि यहां हुई है। लेकिन उत्पादन लागत अधिक होने की वजह से इसमें प्रगति अधिक नहीं हो पाई है। जिले में राइस मिल के साथ साथ हथकरघा से साड़ियों व वस्त्रों का निर्माण भी खूब किया जाता है।

.बिलाईगढ़ विधानसभा सीट

2018 में कांग्रेस के चंद्रदेव राय

2013 में बीजेपी के डॉ समन जांगडे

2008 में कांग्रेस से डॉ शिवकुमार डहरिया

2003 में कांग्रेस से सत्यनारायण शर्मा

बिलाईगढ़ विधानसभा सीट कभी बलौदा बाजार जिले में आती थी, लेकिन कांग्रेस की भूपेश बघेल सरकार ने साल 2023 में सारगढ़ और बिलाईगढ़ को मिलाकर एक नया जिला बनाया है। अब बिलाईगढ़ जिला सारगढ़ जिले में आने लगी है। ये सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित। बिलाईगढ़ विधानसभा बाबा गुरु घासीदास, शहीद वीर नारायण सिंह की जन्मस्थली के रूप में फेमस है। यहां ओबीसी वर्ग के लोग सबसे ज्यादा रहते हैं। विधानसभा में लगभग 48 फीसदी पिछ़ड़ा वर्ग, 38 फीसदी एससी, 9 फीसदी एसटी हैं। अनुसूचित जाति बाहुल्य सीट होने के कारण यहां बीएसपी, कांग्रेस और बीजेपी में त्रिकोणीय मुकाबला देखने को मिलता है। इलाके में एससी के बाद साहू समाज का भी दबदबा है। साहू समाज निर्णायक भूमिका निभाता है। इसके अलावा इलाके में सतनामी और आदिवासी समुदाय के लोग भी रहते है। विधानसभा क्षेत्र में सड़कों की हालात खराब है। रेत माफिया पैर पसार चुका है।

भाटापारा विधानसभा सी

2018 में बीजेपी से शिवरतन शर्मा

2013 में बीजेपी से शिवरतन शर्मा

2008 में कांग्रेस से चैतराम साहू

2003 में कांग्रेस से चैतराम साहू

भाटापारा विधानसभा सीट सामान्य सीट है। यहां 55 फीसदी ओबीसी, 18 फीसदी एसटी,16 फीसदी एससी और 9 फीसदी सामान्य वोटर्स है। यहां विकास उस कधर नहीं हुआ, जैसे दिखाया जा रहा है। शिक्षा संस्थानों के साथ साथ शिक्षकों की कमी है। अंतरराष्ट्रीय सीमेंट सयंत्र होने के बावजूद क्षेत्रीय लोगों को रोजगार नहीं मिल पा रहा। प्लांट का धुआं और गंदा पानी जल प्रदूषण के साथ साथ फसलों को नुकसान पहुंचा रहा है।

बलौदाबाजार विधानसभा सीट

2018 में जेसीसी(जे) से प्रमोद कुमार शर्मा

2013 में कांग्रेस से जनकराम वर्मा

2008 में बीजेपी से लक्ष्मी बघेल

2003 में कांग्रेस से गणेश शंकर बाजपेयी

7 सीमेंट फैक्ट्रियां होने के चलते छत्तीसगढ़ की बलौदाबाजार विधानसभा को औद्योगिक नगरी और व्यवसायिक शहर के नाम से जाना जाता हैं। वैसे तो बलौदाबाजार विधानसभा सीट कांग्रेस का गढ़ रही है। लेकिन समय समय पर यहां की जनता ने बीजेपी और जोगी कांग्रेस को भी मौका दिया है। बलौदाबाजार सीट पर ओबीसी मतदाताओं की संख्या सबसे अधिक है। यहां लगभग 70 फीसदी ओबीसी मतदाता है। ओबीसी में भी कुर्मी समुदाय का दबदबा है। कुर्मी समाज की संख्या यहां तकरीबन 36 फीसदी है। कुर्मियों के बाद 36 फीसदी वर्मा और 34 फीसदी साहू समाज के लोग क्षेत्र में निवास करते है।

कसडोल विधानसभा सीट

2018 में कांग्रेस से शकुंतला साहू

2013 में बीजेपी से गौरीशंकर अग्रवाल

2008 में कांग्रेस से राजकमल सिंघानिया

2003 में कांग्रेस से राजकमल सिंघानिया

वन्य क्षेत्र और पर्यटन स्थलों के लिए प्रसिद्ध कसडोल विधानसभा सीट को कांग्रेस का गढ़ माना जाता है। कसडोल को "लव कुश की नगरी" भी कहा जाता है। कसडोल विधानसभा में ओबीसी मतदाताओं की संख्या सर्वाधिक है। यहां 45 फीसदी पिछड़ा वर्ग, 30 फीसदी एससी,15 फीसदी एसटी और 10 फीसदी अन्य मतदाता हैं। तेली और कुर्मी समुदाय के मतदाताओं को बोलबाला है। इलाके में बिजली,पानी और सड़क की बुनियादी सुविधाओं की कमी है। सड़क, शिक्षा और स्वास्थ सुविधाओं का हाल बेहाल है। किसानों को खेती के लिए पर्याप्त पानी उपलब्ध नहीं पाता।

छत्तीसगढ़ का सियासी सफर

1 नवंबर 2000 को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 3 के अंतर्गत देश के 26 वें राज्य के रूप में छत्तीसगढ़ राज्य की स्थापना हुई। शांति का टापू कहे जाने वाले और मनखे मनखे एक सामान का संदेश देने वाले छत्तीसगढ़ की सियासी लड़ाई में कई उतार चढ़ाव देखे। छत्तीसगढ़ में 11 लोकसभा सीट है, जिनमें से 4 अनुसूचित जनजाति, 1 अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं। विधानसभा सीटों की बात की जाए तो छत्तीसगढ़ में 90 विधानसभा सीट है,इसमें से 39 सीटें आरक्षित है, 29 अनुसूचित जनजाति और 10 अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है, 51 सीट सामान्य है।

प्रथम सरकार के रूप में कांग्रेस ने तीन साल तक राज किया। राज्य के पहले मुख्यमंत्री के रूप में अजीत जोगी मुख्यमंत्री बने। तीन साल तक जोगी ने विधानसभा चुनाव तक सीएम की गग्गी संभाली थी। पहली बार विधानसभा चुनाव हुए और बीजेपी की सरकार बनी। उसके बाद इन 23 सालों में 15 साल बीजेपी की सरकार रहीं। 2003 में 50,2008 में 50 ,2013 में 49 सीटों पर जीत दर्ज कर डेढ़ दशक तक भाजपा का कब्जा रहा। बीजेपी नेता डॉ रमन सिंह का चौथी बार का सीएम बनने का सपना टूट गया। रमन सिंह 2003, 2008 और 2013 के विधानसभा कार्यकाल में सीएम रहें। 2018 में कांग्रेस ने 71 विधानसभा सीटों पर जीत दर्ज कर सरकार बनाई और कांग्रेस का पंद्रह साल का वनवास खत्म हो गया। और एक बार फिर सत्ता से दूर कांग्रेस सियासी गद्दी पर बैठी। कांग्रेस ने भारी बहुमत से जीत हासिल की और सरकार बनाई।

Created On :   12 Sept 2023 7:42 PM IST

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