विधानसभा चुनाव 2023: छत्तीसगढ़ के जांजगीर चांपा में चुनावी केंद्र में होता है ओबीसी और एससी वोटर्स

छत्तीसगढ़ के जांजगीर चांपा में चुनावी केंद्र में होता है ओबीसी और एससी वोटर्स
  • विधानसभा चुनाव 2023
  • जांजगीर चांपा में तीन सीट
  • त्रिकोणीय मुकाबला

डिजिटल डेस्क,नई दिल्ली। छत्तीसगढ़ के जांजगीर-चांपा जिले की स्थापना 25 मई 1998 को हुई थी। छत्तीसगढ राज्य के मध्य स्थित होने के कारण जांजगीर-चांपा को छत्तीसगढ का हृदय कहा जाता है। ये जांजगीर कलचुरी वंश के महाराजा जाज्वल्य देव की नगरी है। हसदेव परियोजना को जिला जांजगीर-चांपा के लिए जीवन वाहिनी के रूप में माना गया है। छत्तीसगढ़ के जांजगीर चांपा जिले में तीन विधानसभा सीट अकलतरा,जांजगीर चांपा,पामगढ़ है। पामगढ़ विधानसभा सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है। बाकी दोनों सीट सामान्य के लिए सुरक्षित है।

अकलतरा विधानसभा सीट

2018 में बीजेपी से सौरभ सिंह

2013 में कांग्रेस से चुन्नीलाल साहू

2008 में बीएसपी से सौरभ सिंह

2003 में कांग्रेस से रामाधार

सामान्य वर्ग के लिए सुरक्षित इस सीट से एक मिथ्य जुड़ा हुआ है. कहा जाता है कि यहां मुख्यमंत्री आने से बचते है। इसके पीछे की वजह बताई जाती है कि जो भी सीएम यहां आया है वह सत्ता के सुख से वंचिच हो जाएंगा। सीएम भूपेश बघेल यहां पांच साल में एक भी बार नहीं गए। जिस पार्टी का नेता यहां से जीता है वह सत्ता से बाहर हो जाती है। 15 साल तक रमन सिंह भी अकलतरा नहीं गए थे, लेकिन 2018 में रमन सिंह यहां गए थे और सत्ता से बाहर हो गए । अविभाजित मध्यप्रदेश में भी 1958 में कैलाशनाथ काटजू और 1973 में प्रकाश चंद्र सेठी अकलतरा गए , इसके बाद दोनों ही नेता दोबारा सीएम नहीं बन सके। 2002 में अजीत जोगी भी अकलतरा गए थे , उसके बाद वो दोबारा सीएम नहीं बन पाए।

2003 से 2018 तक यहां एक ही राजनैतिक पार्टी के चुनाव चिह्न पर कोई चेहरा दोबारा चुनाव नहीं जीता है। सौरभ सिंह बीएसपी और बीजेपी दोनों ही पार्टियों से चुनाव जीत चुके है।

यहां 40 फीसदी ओबीसी ,33 फीसदी एससी और 15 फीसदी एसटी वोटर्स अधिक है। दोनों ही वर्ग के मतदाता चुनाव में अहम भूमिका निभाते है। 50 हजार से अधिक अनुसूचित जाति मतदाता यहां किंगमेकर के रोल में रहता है।

प्रदूषण का बढ़ता स्तर,सड़क की असुविधा,रोजगार की कमी, मुरूम का अवैध खनन यहां की प्रमुख समस्या है। यहां बीएसपी, कांग्रेस और बीजेपी तीनों ही पार्टियों का बर्चस्व है।

जांजगीर चांपा विधानसभा सीट

2018 में बीजेपी से नारायण प्रसाद चंदेल

2013 में कांग्रेस से मोतीलाल देवांगन

2008 में बीजेपी से नारायण प्रसाद चंदेल

कोसा, कांसा और कंचन की नगरी कही जाने वाली जांजगीर चांपा का चुनावी समीकरण कुछ अलग है। यहां ओबीसी और एससी वर्ग के वोटर्स का दबदबा है। जो जीत और हार का समीकऱण तय करते है। यहां बीएसपी , कांग्रेस और बीजेपी के बीच त्रिकोणीय मुकाबला देखने को मिलता है। चुनाव में बीएसपी दोनों दलों के मुसीबत खड़ा कर देती है। किसान बाहुल्य इलाका होने के चलते यहां की चुनावी फिजाओं में किसान, सिंचाई के लिए पानी, फसल के उचित दाम और उनसी जुड़ी समस्याएं होती है। पेयजल, शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं की यहां बदहाल स्थिति है। यहां की राजनीति में हसदेव नदी का बड़ा रोल है। क्योंकि नदी के बाई ओर चांपा नगर पालिका और दाई ओर जांजगीर नगर पालिका है। बाई ओर वोटर्स कम है।

पामगढ़ विधानसभा सीट

2018 में बीएसपी से इंदु बंजारे

2013 में बीजेपी से अंबेश जांगरे

2008 में बीएसपी से दुजराम बौद्ध

2003 में कांग्रेस से रामसुंदर दास

पामगढ़ को माता शबरी की नगरी के रूप में पहचाना जाता है।इसे गुप्त प्रयाग के नाम से भी जाना जाता है। एससी आरक्षित पामगढ़ सीट को बीएसपी के गढ़ के तौर पर देखा जाता है। फिलहाल यहां बीएसपी का ही कब्जा है। पिछले कई चुनावों में हाथी यहां मजबूत स्थिति में है। सीट गठन के बाद से बीजेपी को पहली बार और एकमात्र 2013 में पामगढ़ सीट पर जीत मिली थी।

नवनिर्मित छत्तीसगढ़ में 2003 में कांग्रेस के रामसुंदर दास ने यहां तीन बार से जीतते आ रहे बीएसपी के दाउराम रत्नाकर को मात दी थी। इसके बाद सीट को अनुसूचित वर्ग के लिए आरक्षित कर दिया था। 2008 में बीएसपी ,2013 में बीजेपी और फिर 2018 में बीएसपी प्रत्याशी ने यहां से जीत दर्ज की थी। विधानसभा क्षेत्र में करीब 45 फीसदी ओबीसी,35 फीसदी एससी वर्ग के मतदाता है। जो चुनाव में निर्णायक भूमिका निभाते है। बढ़ती महंगाई और बेरोजगारी के चलते यहां से ओबीसी और एससी के लोक पलायन करने को मजबूर हैं।

छत्तीसगढ़ का सियासी सफर

1 नवंबर 2000 को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 3 के अंतर्गत देश के 26 वें राज्य के रूप में छत्तीसगढ़ राज्य की स्थापना हुई। शांति का टापू कहे जाने वाले और मनखे मनखे एक सामान का संदेश देने वाले छत्तीसगढ़ की सियासी लड़ाई में कई उतार चढ़ाव देखे। छत्तीसगढ़ में 11 लोकसभा सीट है, जिनमें से 4 अनुसूचित जनजाति, 1 अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं। विधानसभा सीटों की बात की जाए तो छत्तीसगढ़ में 90 विधानसभा सीट है,इसमें से 39 सीटें आरक्षित है, 29 अनुसूचित जनजाति और 10 अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है, 51 सीट सामान्य है।

प्रथम सरकार के रूप में कांग्रेस ने तीन साल तक राज किया। राज्य के पहले मुख्यमंत्री के रूप में अजीत जोगी मुख्यमंत्री बने। तीन साल तक जोगी ने विधानसभा चुनाव तक सीएम की गग्गी संभाली थी। पहली बार विधानसभा चुनाव हुए और बीजेपी की सरकार बनी। उसके बाद इन 23 सालों में 15 साल बीजेपी की सरकार रहीं। 2003 में 50,2008 में 50 ,2013 में 49 सीटों पर जीत दर्ज कर डेढ़ दशक तक भाजपा का कब्जा रहा। बीजेपी नेता डॉ रमन सिंह का चौथी बार का सीएम बनने का सपना टूट गया। रमन सिंह 2003, 2008 और 2013 के विधानसभा कार्यकाल में सीएम रहें। 2018 में कांग्रेस ने 71 विधानसभा सीटों पर जीत दर्ज कर सरकार बनाई और कांग्रेस का पंद्रह साल का वनवास खत्म हो गया। और एक बार फिर सत्ता से दूर कांग्रेस सियासी गद्दी पर बैठी। कांग्रेस ने भारी बहुमत से जीत हासिल की और सरकार बनाई।

Created On :   19 Sept 2023 2:39 PM IST

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