जब दूर-दूर तक नहीं थी चर्चा, तब मध्यप्रदेश के सीएम बने थे दिग्विजय सिंह, क्या अब कांग्रेस अध्यक्ष  बन दोहराएंगे इतिहास 

जब दूर-दूर तक नहीं थी चर्चा, तब मध्यप्रदेश के सीएम बने थे दिग्विजय सिंह, क्या अब कांग्रेस अध्यक्ष  बन दोहराएंगे इतिहास 
कांग्रेस अध्यक्ष चुनाव जब दूर-दूर तक नहीं थी चर्चा, तब मध्यप्रदेश के सीएम बने थे दिग्विजय सिंह, क्या अब कांग्रेस अध्यक्ष  बन दोहराएंगे इतिहास 

डिजिटल डेस्क, भोपाल। कांग्रेस अध्यक्ष की रेस में सबसे आखिर में शामिल होने वाले दिग्विजय सिंह अचानक रेस में सबसे आगे नजर आ रहे हैं। ठीक उसी तरह जिस तरह कई साल पहले वो विधायक न होते हुए भी सीएम बनने की रेस में सबसे आगे निकल गए थे। इस बार उनके सामने अशोक गहलोत और शशि थरूर जैसे नाम हैं। जबकि उस वक्त राजनीति के दिग्गज खिलाड़ियों से उनका मुकाबला था। सबसे जूनियर होते हुए भी मध्यप्रदेश की कुर्सी पर काबिज होने में दिग्विजय न सिर्फ कामयाब भी हुए। बल्कि आंकड़ों की ऐसी बाजगरी दिखाई कि सबसे ज्यादा विधायक भी उन्हें के खेमे में खड़े नजर आए। एक बार फिर दिग्विजय सिंह का सियासी इतिहास कांग्रेस में दोहराता नजर आ रहा है।

राजस्थान के सियासी घटनाक्रम के बाद कांग्रेस अध्यक्ष पद का चुनाव हर बढ़ते दिन के साथ और भी ज्यादा दिलचस्प होता जा रहा है। वहीं कांग्रेस अध्यक्ष पद के चुनाव में गुरुवार (29 सितंबर) को बड़ा उलटफेर देखने को मिला। कभी कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद चुनाव के लिए "ना" "ना" करने वाले मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विज सिंह ने आखिरकार पार्टी के प्रमुख पद के लिए दावा ठोक दिया है। इसकी वजह मानी जा रही है बड़े नेताओं के नामों का ऐलान होना और फिर उनका पीछे हट जाना। फिलहाल कांग्रेस अध्यक्ष पद की रेस में एक और बड़ा उलटफेर देखने को तब मिला जब राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अपना नामांकन वापस ले लिया। वहीं अब दिग्विजय सिंह 30 सितंबर को अपना नामांकन दाखिल करेंगे।

मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री के रुप में किस तरह उभर कर आए दिग्विजय सिंह
 
उस समय एक तरफ अयोध्या मंदिर को लेकर आंदोलन चल रहे थे तो वही दूसरी ओर बाबरी विध्वंस जैसी धटना ने देश का माहौल एकदम अलग कर दिया था। उस वक्त 1993 में, जब मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव हुए तो बाजी कांग्रेस ने मारी। चुनाव के बाद मुख्यमंत्री पद को लेकर कई नेताओं के बीच कशमकश चल रही थी, जिसमें कमलनाथ, माधवराव सिंधिया, श्यामचरण शुक्ल जैसे नेता शामिल थे। जिसके बाद विधायक दल की बैठक हुई तो मुख्यमंत्री पद के प्रबल दावेदार के रूप में श्यामचरण शुक्ल का नाम तेजी से ऊपर आया लेकिन उन सभी के बीच अर्जुन सिंह ने पिछडे़ समाज से आने वाले नेता सुभाष यादव का नाम सभी नेताओं के समक्ष रखी गई। हालांकि अर्जून सिंह को इस बात का पता जल्द लग गया कि सुभाष यादव ज्यादा विधायकों का समर्थन हासिल नहीं कर पाएंगे। ऐसे में उन्होंने माधव राव सिंह को अपना समर्थन देने का फैसला कर लिया। 

मुख्यमंत्री पद की रेस से कोसों दूर थे दिग्विजय सिंह

 बता दें कि उस समय मुख्यमंत्री पद की रेस में  दिग्विजय सिंह का नाम दूर दूर तक नहीं था। उस समय दिग्विजय सिंह ने विधायक पद का चुनाव भी नहीं लड़ा था, उस वक्त वह सांसद थे। वहीं माधवराव सिंधिया को ग्वालियर और चंबल के विधायकों का समर्थन मिला हुआ था लेकिन वे मुख्यमंत्री पद को लेकर चुप्पी साधे हुए थे। इसके आलावा कांग्रेस के नए नेता के तौर पर कमलनाथ मुख्यमंत्री पद की रेस में कूद चुके थे। ऐसे कांग्रेस पार्टी के दिग्गज नेताओं के लिए एक बड़ा सिरर्दद  बना हुआ था कि आखिर किसे मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री बनाया जाए। ऐसे में विधायक दल की एक बैठक आयोजित हुई जिसमें पर्यवेक्षक के रुप में पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी, जनार्दन पुजारी और दिग्गज नेता सुशील कुमार शिंदे शामिल हुए। यह बैठक करीब 4 घंटे तक चली।

कमलनाथ ने किया मुख्यमंत्री पद से किनारा 

लगातार चार घंटे तक चली इस बैठक में कमलनाथ यह समझ चुके थे कि वह मुख्यमंत्री पद के लिए  प्रबल दावेदार नहीं है। ऐसे मे कमलनाथ ने अपने आप को पीछे हटने में भलाई समझी। दरअसल, इसके पीछे पार्टी मीटिंग से पहले कमलनाथ और दिग्विजय सिंह की मुलाकात को जिम्मेदार बताया जाता है, जिसमें यह तय किया गया मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री पद के लिए उसी नेता का नाम आगे किया जाए, जिसपर आम जनता सहमति दें। इस चर्चा का नतीजा यह हुआ कि विधायक दल की मीटिंग में पहली बार दिग्विजय सिंह के नाम पर चर्चा हुई। कमलनाथ और सुरेश पचौरी ने भी दिग्विजय सिंह को मुख्यमंत्री पद के लिए हामी भरी। 

एक फोन कॉल से बदली दिग्विजय की किस्मत

पार्टी की इतनी बैठकों के बाद भी किसी नेता के नाम पर कोई सहमति नहीं बन सकी। हालांकि, तब तक कमलनाथ और माधव राव सिंधिया सीएम पद की रेस बाहर हो चुके थे और मैदान में केवल दो नेता श्यामचरण शुक्ल और दिग्विजय सिंह बच गए थे। ऐसे में प्रबण मुखर्जी ने गुप्त मतदान कराना मुनासिब समझा, जिसके नतीजे बेहद ही चौकाने वाले आए । पार्टी में मुख्यमंत्री पद की रेस में सबसे आगे चल रहे श्यामचरण शुक्ल को 174 विधायकों में से 56 विधायकों ने अपना समर्थन दिया, वहीं दिग्विजय सिंह को 100 विधायकों ने अपना समर्थन दिया। कमलानाथ ने इस मतदान की जानकारी कांग्रेस पार्टी के आलाकमान को दिया। इसके बाद उस समय के तत्कालिन प्रधानमंत्री और कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष पीवी नरसिम्हा राव ने प्रणब मुखर्जी को फोन किया और कहा पार्टी बैठक में जिसे ज्यादा वोट मिला है ,उन्हे मुख्यमंत्री बना दीजिए। इस तरह विधानसभा चुनाव नहीं लड़ने के बावजूद भी  दिग्विजय सिंह मध्यप्रदेश के नए मुख्यमंत्री के तौर पर चुने गए। 


 

Created On :   29 Sept 2022 5:56 PM GMT

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