शिवसेना को 18 साल बाद मिला था चुनाव चिन्ह 'तीर-कमान', जानें कैसे बाला साहेब ने रखी थी पार्टी की नींव और अब छिन गया चुनाव चिन्ह

शिवसेना को 18 साल बाद मिला था चुनाव चिन्ह तीर-कमान, जानें कैसे बाला साहेब ने रखी थी पार्टी की नींव और अब छिन गया चुनाव चिन्ह
उपचुनाव में शिवसेना के शिंदे और ठाकरे गुट होंगे आमने-सामने शिवसेना को 18 साल बाद मिला था चुनाव चिन्ह 'तीर-कमान', जानें कैसे बाला साहेब ने रखी थी पार्टी की नींव और अब छिन गया चुनाव चिन्ह

डिजिटल डेस्क मुंबई,राजा वर्मा। केंद्रीय चुनाव आयोग ने आखिरकार शिवसेना का धनुष और तीर चुनाव चिन्ह को फ्रीज कर दिया। ठाकरे और शिंदे गुट की ओर से अपने दावे से संबंधित दस्तावेज पेश करने के बाद चुनाव आयोग ने शनिवार को मामले पर लंबी बैठक करने के बाद यह फैसला लिया। चुनाव आयोग ने दोनों गुटों को नए चुनाव चिन्ह के लिए सोमवार तक का समय दिया है। इस फैसले के बाद 3 नवंबर को होने जा रहे अंधेरी पूर्व विधानसभा उपचुनाव में दोनों गुटों को नए चुनाव चिन्ह के साथ जाना होगा।

लेकिन कम ही लोग जानते हैं कि शिवसेना को स्थापना के 18 साल बाद चुनाव चिन्ह "तीर कमान" मिला था।आइए जानते हैं शिवसेना के संस्थापक दिवंगत नेता बाला साहेब ठाकरे और शिवसेना की स्थापना से लेकर उसके चुनाव चिन्ह मिलने तक की कहानी।  

कार्टूनिस्ट थे बाला साहेब ठाकरे

शिवसेना के संस्थापक बाला साहेब ठाकरे राजनीति में आने से पहले कार्टूनिस्ट का काम किया करे थे। वह "प्री प्रेस जर्नल" (अंग्रेजी अखबार) के लिए कार्टून बनाने का काम करते थे। बाला साहेब देश की वर्तमान राजनीति और समसामयिक मु्द्दों को लेकर कार्टून की मदद से तीखा वयंग्य करने के लिए जाने जाते थे। किसी कारणवश प्री प्रेस जनर्ल से उन्होंने नौकरी छोड़ दी । जिसके बाद उनके कार्टून टाइम्स ऑफ इंडिया के संडे एडिशन में छपने लगे।  13 अगस्त1960 में बाला साहेब ने अपनी साप्ताहिक पत्रिका "मार्मिक" शुरूआत की। बाल ठाकरे ने करीब 46 साल तक सार्वजनिक जीवन काम किया लेकिन उन्होंने न तो कभी कोई चुनाव लड़ा और न ही कोई राजनीतिक पद स्वीकार किया। फिर भी महाराष्ट्र की राजनीति में वह अहम भूमिका निभाते रहे।  

गैर मराठियों को जमकर घेरा

अपनी साप्ताहिक पत्रिका में बाला साहेब ने गैर मराठियों के विरोध में जमकर लिखा। उनके भाई श्रीकांत ठाकरे भी साथ में काम करते थे। गैर मराठियों पर लिखने की वजह से भी महाराष्ट्र में ठाकरे की लोकप्रियता बढ़ती गई। कहा जाता है कि मुंबई में 60 के दशक में गैर-मराठियों का दबदबा था। जिसमें गुजराती,दक्षिण भारतीय और मुस्लिम सबसे ज्यादा थे। उस दौर में महाराष्ट्र में मराठियों की जनसंख्या लगभग 43 फीसदी के करीब थी लेकिन कारोबार और नौकरियों से लेकर फिल्म इंडस्ट्री में उनकी संख्या बहुत कम हुआ करती थी। 

भारत के अन्य राज्यों से मुंबई आकर बसने वालों के खिलाफ भी बाल ठाकरे बेहद कड़े शब्दों का इस्तेमाल करते थे। विशेषकर बिहार और उत्तरप्रदेश से रोजगार के लिए मुंबई आने वाले लोगों के प्रति उनके दिल में साफ तौर पर नफरत दिखाई देती थी। बाला साहेब का कहना था कि मराठियों का हक दूसरे राज्य के लोग मार रहे हैं। बाद में ठाकरे ने महाराष्ट्र में पहले मराठियों को काम दिए जाने की मुहिम छेड़ दी। 

शिवसेना की स्थापना

बाला साहब ठाकरे ने 19 जून 1966 को शिवसेना की स्थापना की।शिवसेना को उन्होंने राजनीतिक पार्टी के रूप में दो बर्ष बाद पंजीकृत करवाया। इसके बाद से ही शिवसेना की राजनैतिक सफर की शुरूआत हुई  और 1971 के लोकसभा चुनाव में पहली बार उम्मीदवार उतारे लेकिन हार का सामना करना पड़ा। 

चुनाव चिन्ह तीर-कमान कब मिला

शिवसेना को चुनाव चिन्ह के रूप में तीर कमान 18 साल बाद मुंबई में हुए 1985 के नगर निकाय चुनाव में मिला। इससे पहले शिवसेना ने खजूर का पेड़,ढाल-तलवार और रेल का इंजन जैसे चुनाव चिन्ह पर चुनाव लड़ा। शिवसेना साल 1984 में एक बार बीजेपी के चुनाव चिन्ह कमल के फूल पर भी चुनाव लड़ चुकी थी। 

सामना की शुरूआत

शिवसेना ने पार्टी को विस्तार देने के लिए मराठियों के हित में बात तो की साथ ही कट्टर हिंदुत्ववादी छवि बनाने का प्रयास भी किया। शिवसेना के मुखपत्र "सामना" ने इसमें अहम भूमिका निभाई। बता दें बाल ठाकरे ने सामना के मराठी संस्करण की स्ठापना 23 जनवरी 1933 में और हिंदी में  "दोपहर का सामना" के नाम से मुखपत्र की शुरूआत 23 फरवरी 1993 में किया था। 

शिवसेना और बीजेपी 
शिवसेना और बीजेपी दोनों ही पार्टी हिंदुत्व की बात को शुरूआत से ही प्रमुखता से उठाते रही है। महाराष्ट्र ही नहीं बल्कि पूरे देश में बाला साहेब को कट्टर हिंदूवादी नेता के रूप में देखा जाता था। शिवसेना ने 1989 के लोकसभा चुनाव से पहली बार भारतीय जनता पार्टी के साथ गठबंधन किया। इस चुनाव उसके चार उम्मीदवार जीतकर संसद पहुंचे थे। इस चुनाव के बाद से ही  पार्टी का सियासी सफर चल पड़ा।
 
शिवसेना ने कई विधानसभा और लोकसभा चुनाव बीजेपी के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ा और राजनीति में अपनी गहरी पेठ बनाने में कामयाब हुई और सत्ता भी हासिल की।  
 
2014 में अलग होकर लड़ा चुनाव फिर सत्ता में बनी भागीदार

शिवसेना ने 2014 विधानसभा के चुनाव में बीजेपी से गठबंधन तोड़ दिया और अलग होकर चुनाव लड़ा। इस चुनाव में शिवसेना को 63 सीट पर जीत मिला वहीं बीजेपी के खाते में 122 सीटें आई थी। बाद में शिवसेना ने फिर से बीजेपी के साथ गठबंधन कर लिया और मिलकर सरकार चलाई। 


2019 चुनाव नतीजे आने के बाद अलग हुई शिवसेना 

2019 में शिवसेना और बीजेपी ने मिलकर महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव लड़ा। 288 सीटों वाली महाराष्ट्र विधानसभा में बीजेपी को 105 सीटें मिली और शिवसेना को 56 सीट। लेकिन चुनाव नतीजे आने के बाद दोनों ही पार्टी के बीच सीएम पद को लेकर विवाद शुरू हुआ और बाद में गठबंधन टूट गया। कांग्रेस और एनसीपी की  मदद से शिवसेना ने महाविकास अघाड़ी गठबंधन बनाकर सरकार बना ली और उद्धव ठाकरे सीएम बनाए गए। 

शिंदे गुट ने बागवत कर गिरा दी सरकार 
गौरतलब है कि एकनाथ शिंदे और शिवसेना के अन्य 39 विधायकों ने जून में शिवसेना के पार्टी नेतृत्व के खिलाफ विद्रोह कर दिया था। नतीजा ये हुआ कि महाराष्ट्र में चल रही उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली महा विकास आघाड़ी सरकार गिर गई। इसके बाद शिंदे ने बीजेपी के सहयोग से सरकार बना ली। 

बता दें गत 30 जून को एकनाथ शिंदे ने मुख्यमंत्री और भाजपा नेता देवेंद्र फडणवीस ने उपमुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली थी। वर्तमान में शिंदे गुट में सीएम सहित 40 विधायक और 12 लोकसभा सदस्य शामिल हैं। वहीं ठाकरे गुट के पास 15 विधायक और छह लोकसभा सदस्य हैं। 

शिंदे और उद्धव गुट आमने सामने 
बता दें उद्धव ठाकरे और शिंदे गुट के बीच शिवसेना पार्टी के नाम और उसके चुनाव चिन्ह को लेकर लड़ाई चल रही है। दोनों ही गुट अपने आप को असली शिवसेना होने का दावा कर रहा है। शिंदे गुट का कहना है कि उनके पास शिवसेना के विधायकों और लोकसभा सदस्यों की संख्या ज्यादा है। इसलिए शिवसेना पर उनका अधिकार होना चाहिए। वहीं ठाकरे गुट का कहना है कि एकनाथ शिंदे तो पार्टी छोड़कर जा चुके हैं तो ऐसे में वह पार्टी के नाम और चुनाव चिन्ह पर कैसे दावा कर सकते हैं। 
 

Created On :   9 Oct 2022 7:16 PM IST

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