आदिवासी व दलितों को वन अपराधी बनाने वाली अधिसूचना को राष्ट्रपति निरस्त करें - तिवारी

डिजिटल डेस्क, रायपुर। अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सचिव राजेश तिवारी ने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को पत्र लिखकर केन्द्र सरकार के केन्द्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा जारी अधिसूचना को देश के दलित, शोषित, पीड़ित अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति वर्गों के हितों के विपरीत बताते हुए निरस्त करने की मांग की है।
राष्ट्रपति कोविंद को लिखे पत्र में तिवारी ने कहा है, देश के दलित, शोषित, पीड़ित अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति के संरक्षक होते हैं। राष्ट्रपति का दायित्व है कि केन्द्र सरकार इन वर्गों के हितों के विपरीत कानून या नियम बनाए तो उसको लागू होने से रोके। आप स्वयं इस वर्ग से आते हैं इसलिए आपको इन वर्गों की पीड़ा का एहसास होगा।
अनुसूचित जाति व जनजाति वर्ग के हितों के विपरीत केन्द्र सरकार के केन्द्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा 28 जून 2022 को अधिसूचना क्रमांक 459 जारी किया है, जिससे इस वर्ग के हितों पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा एवं उनके मौलिक अधिकार समाप्त हो जाएंगे। आदिवासी एवं दलितों को बेघर बार होना पड़ेगा और उनको वन अपराधी बना दिया जाएगा।
तिवारी ने अपने पत्र में कहा है, अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006, एक ऐतिहासिक कानून है जिसे संसद द्वारा सर्वसम्मति से पारित किया गया था। यह देश के वन क्षेत्रों में रहने वाले आदिवासी, दलित और अन्य परिवारों को व्यक्तिगत और सामुदायिक दोनों स्तर पर भूमि और आजीविका के अधिकार प्रदान करता है।
इस परिपत्र के अनुसार, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा वन और पर्यावरण मंजूरी पर कोई भी निर्णय लेने से पहले आदिवासी और अन्य समुदायों के अधिकारों का निपटान करना जरुरी होगा।
कांग्रेस नेता तिवारी ने बताया है कि 28 जून 2022 को मोदी सरकार द्वारा जारी नियमों के अनुसार अंतिम रुप से वन मंजूरी मिलने के बाद वन अधिकारों के निपटारे की अनुमति दे दी है, इसका आशय है कि इस अधिसूचना के चलते वन भूमि पर रहने वालों को मिले अधिकार शून्य हो जाएंगे। पूर्व के कानून की चर्चा करें तो वन संरक्षण अधिनियम, 1980 के तहत वन भूमि के अन्यत्र उपयोग के लिए किसी भी मंजूरी पर तब तक विचार नहीं किया जाएगा, जब तक वन अधिकार अधिनियम 2006 के अंतर्गत प्रदत्त अधिकारों का सर्वप्रथम निपटान नहीं कर लिया जाता है।
तिवारी ने अपने पत्र में कहा है कि इस अधिसूचना के प्रावधान कुछ चुनिंदा लोगों को जंगल बेचने या जंगल का निजीकरण करने के नाम पर किया गया है, परंतु यह निर्णय उस विशाल जन समुदाय के लिए जीवन की सुगमता को समाप्त कर देगा, जो आजीविका के लिए वन भूमि पर निर्भर है। यह वन अधिकार अधिनियम, 2006 के मूल उद्देश्य और वन भूमि के अन्यत्र उपयोग के प्रस्तावों पर विचार करते समय इसके सार्थक उपयोग के उद्देश्य को नष्ट कर देता है। एक बार वन मंजूरी मिलने के बाद, बाकी सब कुछ एक औपचारिकता मात्र बनकर रह जाएगा, और लगभग किसी भी दावे को स्वीकार नहीं किया जाएगा और उसका निपटान नहीं किया जाएगा। वन भूमि के अन्यत्र उपयोग की प्रक्रिया में तेजी लाने के लिए राज्य सरकारों पर केंद्र की ओर से और भी अधिक दबाव होगा। कांग्रेस नेता तिवारी ने राष्ट्रपति से इस अधिसूचना को तत्काल संज्ञान में लेकर इस जनविरोधी अधिसूचना को निरस्त करने का आग्रह किया है।
(आईएएनएस)
डिस्क्लेमरः यह आईएएनएस न्यूज फीड से सीधे पब्लिश हुई खबर है. इसके साथ bhaskarhindi.com की टीम ने किसी तरह की कोई एडिटिंग नहीं की है. ऐसे में संबंधित खबर को लेकर कोई भी जिम्मेदारी न्यूज एजेंसी की ही होगी.
Created On :   20 July 2022 7:01 PM IST