जातिगत चुनाव की ओर बढ़ा मध्यप्रदेश का विधानसभा चुनाव, छोटे दल बन रहे हैं बड़ी चुनौती, अलग अलग जातियों का दिल जीत कौन बनेगा सूबे का सरताज?
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। एक समय दो दलीय राजनीति कही जाने वाली मध्यप्रदेश की सियासत पिछले कुछ सालों से बिहार और उत्तरप्रदेश की तरह जातिगत राजनीति की ओर आगे बढ़ रही है। राज्य में जाति और वर्ग के आधार पर राजनीति करने वाली पार्टियों की सक्रियता बढ़ी है। जिसके चक्रव्यूह में भाजपा और कांग्रेस फंसती चली जा रही हैं। फिलहाल चुनाव आने से पहले दोनों पार्टियां सभी जातियों को साधने में लगी हुई है। लेकिन ऐसे में उन्हें डर है कि कहीं दूसरा वर्ग उनसे नाराज न हो जाए। इस साल मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव को देखते हुए भाजपा और कांग्रेस सत्ता हासिल करने के लिए एससी-एसटी और ओबसी की छोटी जातियों पर फोकस कर रही है।
भाजपा के शीर्ष नेताओं की नजर
राज्य में एससी-एसटी और ओबसी की वोट बैक सबसे अधिक है। प्रदेश में हमेशा से ही सत्ता की चाबी एससी-एसटी के हाथो में रही है। इसके पीछे सबसे बड़ी वजह इन दोनों वर्गों के लिए 36 फीसदी यानी 82 विधानसभा सीटें आरक्षित हैं। ऐसे सत्ता की बागडोर संभालने के लिए इन वर्गों का बहुमत मिलना काफी ज्यादा जरूरी हो जाता है। बीते चुनाव में कांग्रेस ने आदिवासी, अनुसूचित जाति और आरक्षित सीटों पर कांग्रेस ने बेहतर प्रदर्शन किया था।
यही वजह रही कि कांग्रेस पार्टी 2018 का विधानसभा चुनाव जीतने के साथ सूबे की सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी। इसी को देखते हुए भाजपा पिछले दो सालों से एससी-एसटी और ओबीसी की छोटी जातियों को साधने की कोशिश में जुट गई है। खास बात यह है कि भाजपा के दो प्रमुख चेहरे इसके लिए कैंपेन कर रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह लगातार आदिवासी क्षेत्रों में रैली और जनसभाएं कर रहे हैं। राजधानी भोपाल से इन दोनों नेताओं ने आदिवासी वोटरों को लुभाने के लिए कई सारे वादे भी कर दिए हैं।
सफलता की चाबी लगेगी किसके हाथ
इस वक्त भले ही मध्य प्रदेश में सियासत में जातिवाद हावी नहीं है, लेकिन इस बार की चुनावी माहौल में जातिवाद की हवा तेजी से बह रही है। जातिवाद की सियासत करने वाली पार्टियां प्रदेश में तेजी से अपने पैर पसार रही है। साथ ही ये सभी पार्टियों ने अभी से ही जातियों के आधार पर चुनावी रंग घोलना शुरू कर दिया है। गौरतलब है कि एट्रोसिटी एक्ट, पदोन्नति में आरक्षण और आदिवासी हित जैसे विषयों ने जातिवादी संगठन खड़े कर दिए है। ये सभी संगठन इन्ही मुद्दों की वजह से चुनाव लड़ने का दम भर रहे हैं।
अजाक्स (अजा-अजजा कर्मचारियों का संगठन), सपाक्स (सामान्य और ओबीसी वर्ग की संस्था), जयस (आदिवासी युवाओं का राजनीतिक संगठन) और भीम आर्मी की आजाद समाज पार्टी जैसे संगठन विधानसभा चुनाव को प्रभावित करने के प्रयास में जुटे हैं। वैसे प्रदेश की राजनीतिक इतिहास की बात करें तो यहां जातिवादी राजनीति करने वाले दल बहुजन समाज पार्टी, गोंडवाना पार्टी और सवर्ण समाज पार्टी कभी भी ज्यादा सफल नहीं हो पाए हैं, लेकिन इस बार का चुनावी मिजाज बिलकुल अलग नजर आ रहा है। राजधानी भोपाल में अब तक करणी सेना, भीम आर्मी और जयस जैसे संगठनों ने भारी तादाद में लोगों को एकत्र कर शक्ति प्रदर्शन किया है। ये दल किसका चुनावी समीकरण बिगाड़ेंगे इसका आंकलन करना फिलहाल आसान नहीं है। इन दलों की मौजूदगी के साथ किस पार्टी के हाथ सत्ता की चाबी लगती है ये चुनावी नतीजे ही बताएंगे।
Created On :   23 Feb 2023 7:28 PM IST