मप्र उपचुनाव: 9 जिलो में फिर हो सकेंगी चुनावी रैलियां, सुप्रीम कोर्ट ने फिजिकल रैलियां नहीं कराने के हाईकोर्ट के फैसले पर लगाई रोक
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। मध्यप्रदेश में उपचुनाव के दौरान 9 जिलों में एक बार फिर चुनावी रैलियों का आयोजन किया जा सकेगा। मध्यप्रदेश हाईकोर्ट की ग्वालियर बेंच ने पिछले दिनों राज्य में फिजिकल रैलियों पर रोक लगा दी थी और वर्चुअल रैली कराने का आदेश दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने इसी आदेश पर सोमवार को स्टे लगा दिया और कोरोना के मद्देनजर जरूरी कदम उठाने का फैसला चुनाव आयोग पर छोड़ दिया। उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय के उस आदेश पर रोक लगा दी जिसमें राजनीतिक दलों से कहा गया था कि कोविड-19 के मद्देनजर व तीन नवंबर को होने वाले विधानसभा उपचुनाव के लिए प्रत्यक्ष रैलियां करने के बजाय ऑनलाइन प्रचार करें।
SC की राजनीतिक दलों को फटकार
जस्टिस एएम खानविलकर की बेंच ने कहा कि अगर राजनीतिक दलों ने सही तरह से काम किया होता और प्रोटोकॉल माना होता तो ऐसे हालात बनते ही नहीं। आपको खुद से यह सवाल पूछना चाहिए कि इस हालात के लिए जिम्मेदार कौन है? अपना काम इस तरह कीजिए, जो सभी के हित में हो। अगर आपने ठीक से काम किया होता तो हाईकोर्ट को दखल देने की जरूरत ही नहीं पड़ती। सुप्रीम कोर्ट 6 हफ्ते बाद इस मामले की सुनवाई करेगा।
सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को दिए निर्देश
जस्टिस एएम खानविलकर की अध्यक्षता वाली बैंच ने भारत निर्वाचन आयोग (ECI) से कहा कि कोविड-19 के दिशा-निर्देशों और कानून को ध्यान में रखते हुए राजनीतिक रैलियों के संबंध में उचित निर्णय लिया जाए। शीर्ष अदालत में आयोग तथा मध्यप्रदेश के ऊर्जा मंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर की याचिकाओं की सुनवाई हो रही थी, जिनमें उच्च न्यायालय के 20 अक्टूबर के आदेश को चुनौती दी गई थी।
शीर्ष अदालत ने तोमर की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी से कहा कि वह ईसीआई को बताएं कि उच्च न्यायालय के आदेश के चलते चुनाव प्रचार का कितना वक्त बर्बाद हुआ। चुनाव आयोग ने उच्च न्यायालय के आदेश की पृष्ठभूमि में कहा कि संविधान के तहत चुनावों के आयोजन और प्रबंधन की देखरेख का जिम्मा उसका है और संविधान के अनुच्छेद 329 के तहत चुनावी प्रक्रिया के मध्य में न्यायिक दखल पर रोक है।
चुनाव आयोग भी पहुंचा था उच्चतम न्यायालय
उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देते हुए चुनाव आयोग ने बीते गुरुवार को उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था। चुनाव आयोग ने तर्क दिया था कि उच्च न्यायालय का 20 अक्टूबर का आदेश शीर्ष अदालत द्वारा लगातार दिए गए आदेशों की अवहेलना करता है। आयोग ने कहा सर्वोच्च अदालत अपने आदेशों में यह कहता रहा है कि चुनाव आयोग चुनाव प्रक्रिया के संचालन और पर्यवेक्षण के लिए एकमात्र प्राधिकरण है और बहु-स्तरीय चुनाव प्रक्रिया में अदालतों को हस्तक्षेप करने से रोकता है।
हाईकोर्ट ने 9 जिलों में चुनाव प्रचार पर लगाई थी रोक
मध्यप्रदेश में 28 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव के तहत 3 नवंबर को वोटिंग है। एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट की ग्वालियर बेंच ने 21 अक्टूबर को 9 जिलों के मामले में आदेश जारी किया था। बेंच ने ग्वालियर, गुना, मुरैना, भिंड, अशोक नगर, दतिया, शिवपुरी, श्योपुर और विदिशा के डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट से कहा था कि अगर वर्चुअल इलेक्शन कैम्पेन की गुंजाइश है तो किसी भी उम्मीदवार या पार्टी को फिजिकल रैली की इजाजत न दें।
हाईकोर्ट ने कहा था- नेताओं को प्रचार का हक, तो लोगों को जीने का हक
हाईकोर्ट ने यह भी कहा था, ‘अगर डीएम को चुनावी रैली की इजाजत देनी है तो उन्हें भी पहले चुनाव आयोग से मंजूरी लेनी होगी। चुनाव लड़ रहे कैंडिडेट को इतनी रकम जमा करवानी होगी कि रैली में जुटने वाले लोगों के लिए मास्क और सैनिटाइजर खरीदे जा सकें। अगर नेता को प्रचार का अधिकार है तो लोगों को भी जीने का हक है।’ हाईकोर्ट के इसी आदेश के खिलाफ चुनाव आयोग और भाजपा नेता प्रद्युम्न सिंह तोमर ने सुप्रीम कोर्ट में पिटीशन दायर की थी।
Created On :   26 Oct 2020 9:32 PM IST