तीन दशक बाद फिर जागेगा मण्डल कमीशन का जिन्न, बीजेपी की बढ़ेगी मुसीबत
- पिछड़ों वर्गों की पॉलिटिक्स
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। कहते हैं इतिहास अपने आपको दोहराता है, करीब तीन दशक बाद मण्डल कमीशन से जो छूट गया था, आने वाले समय वह एक बार फिर भारतीय राजनीति का केन्द्र बिंदु होगा। इसे इस बात से समझ सकते है कि कर्नाटक और तेलंगाना के बाद बिहार में आज से जातीय जनगणना की शुरूआत हो चुकी है।
जातीय जनगणना की रिपोर्ट भले ही कागजों तक सिमट कर रह जाए, जैसा पहले भी हुआ है लेकिन ये बात तो तय है कि आने वाले समय की राजनीति की धुरी जातीय जनगणना पर आधारित ओबीसी की आबादी, हिस्सेदारी और उसके आरक्षण में बढ़ोत्तरी को लेकर होगी। मध्यप्रदेश में भी पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने ओबीसी महासभा में खुले तौर पर साफ कर दिया कि यदि हमारी सरकार केंद्र में बनती है तो जातीय जनगणना होगी। यदि ओबीसी की आबादी सामने आती है तो पिछड़ों वर्गों की पॉलिटिक्स करने वाले दल आबादी के हिसाब से आरक्षण बढ़ाने की भी सियासत करेंगे। इसे नकारा नहीं जा सकता है। और यदि ऐसा होता है तो जातीय जनगणना से सबसे ज्यादा नुकसान बीजेपी को होगा। राजनीतिक पंडितों का मानना बीजेपी की वर्तमान दौर की सियासत के पीछे ओबीसी वोट बैंक का बहुत बड़ा योगदान है। जातीय जनगणना, ओबीसी आबादी और ओबीसी आरक्षण की मांग यदि देश में बढ़ती है तो अभी तक जो बीजेपी जातीय जनगणना की मांग से मना करती आ रही, या फिर उसका स्पष्ट रूख नहीं है तब आने वाले समय में ओबीसी वोट बीजेपी से छिटक सकता है। क्योंकि अभी तक बीजेपी जातीय जनगणना पर असमंजस की स्थिति में है।
मोदी सरकार ने संसद में भी जातीय जनगणना कराने से मना कर दिया था. मोदी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा देकर कहा था कि जाति आधारित विभिन्न तरह के ब्योरे जुटाने के लिए जनसंख्या जनगणना उपयुक्त साधन नहीं है. बीजेपी तकनीकी कारणों का हवाला देकर भले ही मना कर रही हो, लेकिन उसके पीछे सियासी मकसद है. मंडल कमीशन के आंकड़ों के आधार पर पिछड़े समुदाय की आबादी 52 फीसदी है, लेकिन उन्हें 27 फीसदी आरक्षण मिलता है।
Created On :   9 Jan 2023 4:35 PM IST