मध्यप्रदेश में छोटे दल बिगाड़ सकते हैं राष्ट्रीय दलों का बड़ा काम, इन सीटों पर पहले हासिल कर चुके हैं 50 हजार से ज्यादा वोट, इस बार कांग्रेस-बीजेपी को पहुंचाएंगे बड़ा नुकसान

How much will the alliance of small parties in Madhya Pradesh leave an impression in the assembly elections, BJP and Congress may be harmed due to political equation
मध्यप्रदेश में छोटे दल बिगाड़ सकते हैं राष्ट्रीय दलों का बड़ा काम, इन सीटों पर पहले हासिल कर चुके हैं 50 हजार से ज्यादा वोट, इस बार कांग्रेस-बीजेपी को पहुंचाएंगे बड़ा नुकसान
मध्य प्रदेश सियासत इनसाइड स्टोरी मध्यप्रदेश में छोटे दल बिगाड़ सकते हैं राष्ट्रीय दलों का बड़ा काम, इन सीटों पर पहले हासिल कर चुके हैं 50 हजार से ज्यादा वोट, इस बार कांग्रेस-बीजेपी को पहुंचाएंगे बड़ा नुकसान

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली, (डबलू कुमार)। 230 विधानसभा सीटों वाले मध्य प्रदेश में सियासी तपिश बढ़ने लगी है। अब तक राज्य में दो प्रमुख सियासी दल रहे हैं कांग्रेस और बीजेपी। लेकिन इस बार छोटे छोटे राजनीतिक दल सूबे की इन दोनों बड़ी  पार्टियों की नींद उड़ा रहे हैं। मालूम हो कि, साल 2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी और कांग्रेस के बीच जीत हार में सीटों का अंतर 5 था। ऐसे में छोटे राजनीतिक दल राज्य की सियासी समीकरण को बिगाड़ने का काम कर सकते हैं। 

जहां एक तरह राज्य में आम आदमी पार्टी ने सियासी बिगुल फुंक दिया है, तो वहीं दूसरी ओर बहुजन समाज पार्टी, गोंडवाना गणतंत्र पार्टी, समाजवादी पार्टी समेत अन्य पार्टी भी भाजपा और कांग्रेस का खेल बिगाड़ने के लिए पूरी तरह से तैयार बैठे हैं। राजनीतिक जानकारों के मुताबिक, इस साल प्रदेश की सरकार में बनाने में छोटे-छोटे राजनीतिक दलों की अहम भूमिका रहेगी। बता दें कि, पिछले चार-पांच महीनों में प्रदेश की राजधानी भोपाल में तीन बड़े राजनीतिक आयोजन हुए हैं। 

स्वर्णों से नाराजगी

इस साल की शुरूआत से ही छोटे दलों का दबदबा पूरे राज्य में दिखाई दे रहा है। राजधानी भोपाल में 8 से 11 जनवरी 2023 तक करणी सेना ने विशाल प्रदर्शन किया। पहले ही दिन इस सम्मेलन में 2 लाख से अधिक लोग शामिल हुए थे। 

दलितों की सियासत

इसके बाद राजधानी भोपाल में 12 फरवरी को भीम आर्मी ने शक्ति प्रदर्शन किया था। इस प्रदर्शन का नेतृत्व आजाद समाज पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष चंद्रशेखर रावण ने किया था। इस आंदोलन में करीब एक लाख से अधिक प्रदर्शनकारी शामिल हुए थे। पार्टी ने इसे दलितों का आंदोलन करार दिया। 

आम आदमी पार्टी की एंट्री 

इन दोनों जन सभा के बाद राज्य की सियासत में एक बड़ा यू टर्न तब देखने को मिला, जब आम आदमी पार्टी के संस्थापक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान के साथ 14 मार्च को राजधानी भोपाल में एक जनसभा को संबोधित किया। इस दौरे के बाद प्रदेश की सियासत में खलबली मच गई। विकास के वादे साथ अरविंद केजरीवाल ने वोट बैंक को नए सियासी समीकरण देने का काम किया है। 

एक और सियासी समीकरण की शुरूआत

14 अप्रैल को डॉक्टर बाबा साहब भीमराव अंबेडकर की जयंती के अवसर पर उनके जन्म स्थान महू (इंदौर) में आजाद समाज पार्टी, गोंडवाना गणतंत्र पार्टी और समाजवादी पार्टी एक बड़ा आयोजन करने वाली हैं। इस कार्यक्रम के दौरान मंच पर समाजवादी पार्टी नेता और यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव, राष्ट्रीय लोकदल के अध्यक्ष जयंत चौधरी, गोंडवाना गणतंत्र पार्टी और आजाद समाज पार्टी के चंद्रशेखर रावण एक मंच पर दिखाई देंगे।

230 विधानसभा सीटों वाली मध्य प्रदेश में सामान्य वर्ग के लिए 148, अनुसूचित जनजाति के लिए 47 और अनुसूचित जाति के लिए 35 सीटें आरक्षित हैं। राज्य में करीब ओबीसी यानी अन्य पिछड़ा वर्ग मतदाता 48 फीसदी, अनुसूचित जनजाति वोटर 17 फीसदी और अनुसूचित जाति राज्य की आबादी का 21 फीसदी है। ऐसे में यदि इन जातियों  का गठजोड़ छोटे दल निकाल लेते तो भाजपा, कांग्रेस का खेल बिगड़ने की संभावनाएं हैं। 

बता दें कि,राज्य में पिछले कुछ महीनों से ओबीसी आरक्षण का मुद्दा गर्म है। इससे जुड़े कुछ मामले अभी सुप्रीम कोर्ट में लंबित हैं। आरक्षण के मुद्दों को लेकर ओबीसी वर्ग के मतदाता नाराज दिखाई दे रहे हैं। ऐसे में यदि इन छोटे राजनीतिक दलों को ओबीसी का सहयोग मिल जाता है तो देश की राजनीतिक में नया भूचाल देखने को मिल सकता है। 

सपा-बसपा का गठजोड़ कितना प्रभावी

छोटे दलों की शुरूआती रैली के मुताबिक ये दल चुनाव मैदान में दलित आदिवासी और ओबीसी गठजोड़ बना कर उतर सकते हैं। ऐसे में यदि ये गठबंधन हुआ तो दलित आदिवासी सीटों के मामले में बुंदेलखंड की 25, ग्वालियर, चंबल 16 और विंध्य की 12 सीट समेत महाकौशल के करीब 35 सीटों पर नए राजनीतिक आंकड़े नजर आएंगे। साल 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 114 सीटें जीतकर 40.09 फीसदी वोट हासिल किए थे और भाजपा ने 109 सीटों पर जीतकर 41 फीसदी वोट हासिल किए थे। वहीं राज्य में निर्दलीय दलों ने 4 सीटें जीतीं थी। इनका वोट प्रतिशत 5.8 था। इसमें बहुजन समाज पार्टी ने 2 सीट जीतकर 5 फीसदी वोट हासिल किए थे। हालांकि गोंडवाना गणतंत्र पार्टी एक भी सीट हासिल नहीं कर पाई थी लेकिन उस दौरान पार्टी का वोट प्रतिशत 1.3 था। इस चुनाव में नोटा को 1.4 फीसदी मत हासिल हुए थे। लेकिन, इन छोटे दलों ने 7 सीटों को जीतकर कुल 13.9 फीसदी वोट हासिल किए थे। 2018 के चुनाव में अनुसूचित जनजाति की रिजर्व 47 सीटों पर कांग्रेस ने 30 पर अपना कब्जा जमाया। जबकि बीजेपी महज 16 सीटों पर जीत हासिल कर सकी। वहीं अनुसूचित जाति की सीटों की बात करें तो 35 रिजर्व सीटों में से भाजपा ने 18 और कांग्रेस 17 पर विजयी हुई।

मध्य प्रदेश में एससी और एसटी सीटों का प्रभाव बहुत ज्यादा है। उत्तर प्रदेश की सीमा से लगे 14 जिलों में बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी का जनाधार दिखाई देता है। सूबे के सतना, छतरपुर, टीकमगढ़, रायसेन, रीवा, दमोह, पन्ना, बालाघाट, सीधी, अशोकनगर, निवाड़ी में समाजवादी पार्टी का अच्छा खासा दबदबा है। वहीं बहुजन समाज पार्टी के प्रत्याशियों ने भिंड, ग्वालियर पूर्व, रामपुर बघेलान में 50 हजार से अधिक वोट हासिल किए थे। इसके अलावा देवताल, पौहारी, जोरा और सबलगढ़ में पार्टी को 40 हजार से अधिक वोट मिले थे। वहीं सतना, लहार, चंदेरी, गुन्नौर, अमरपाटन, सिमरिया और पथरिया में बसपा प्रत्याशी ने 30 हजार से अधिक वोट मिले थे। साफ है यदि छोटे दल इस साल विधानसभा चुनाव में एक साथ मिलकर चुनाव लड़ते है तो राज्य की दो प्रमुख पार्टी को इसका नुकसान हो सकता है।  

Created On :   5 April 2023 6:31 PM IST

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