सीजेआई ने शिंदे से पूछा - चुने जाने पर राजनीतिक दलों की अनदेखी, लोकतंत्र के लिए खतरा नहीं है?

CJI asked Shinde - Ignoring political parties if elected is not a threat to democracy?
सीजेआई ने शिंदे से पूछा - चुने जाने पर राजनीतिक दलों की अनदेखी, लोकतंत्र के लिए खतरा नहीं है?
नई दिल्ली सीजेआई ने शिंदे से पूछा - चुने जाने पर राजनीतिक दलों की अनदेखी, लोकतंत्र के लिए खतरा नहीं है?

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के वकील से सवाल किया कि चुने जाने के बाद अगर राजनीतिक दलों की पूरी तरह अनदेखी की जाए तो क्या यह लोकतंत्र के लिए खतरा नहीं है? शिंदे के वकील ने कहा कि उनके मुवक्किल अयोग्य नहीं हैं और उन्होंने पार्टी भी नहीं छोड़ी है। इसके साथ ही उन्होंने एक राजनीतिक दल के भीतर असंतोष के पहलू पर जोर दिया।

शिंदे का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे ने कहा कि संविधान की दसवीं अनुसूची के तहत अयोग्यता तभी होती है, जब अध्यक्ष इस निष्कर्ष पर पहुंचता है कि किसी सदस्य ने पार्टी के रुख के खिलाफ मतदान किया है। साल्वे ने कहा कि अगर किसी विधानसभा के अध्यक्ष को विधायकों के खिलाफ अयोग्यता याचिकाओं पर फैसला करने में एक या दो महीने लगते हैं, तो इसका क्या मतलब है? कि वे सदन की कार्यवाही में भाग लेना बंद कर दें? उन्होंने आगे कहा, जब तक अयोग्यता का कोई निष्कर्ष नहीं निकलता है, तब तक कोई भी अवैधता सिद्धांतपूर्ण नहीं है।

न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी और न्यायमूर्ति हिमा कोहली के साथ ही प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) एन. वी. रमना की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा, फिर व्हिप का क्या उपयोग है? क्या दलबदल विरोधी केवल उन्हीं चीजों पर लागू होता है? साल्वे ने जवाब दिया कि दलबदल विरोधी कानून असंतोष विरोधी कानून नहीं हो सकता।

प्रधान न्यायाधीश ने सवाल किया कि निर्वाचित होने के बाद राजनीतिक दलों की पूरी तरह से अनदेखी करना क्या यह लोकतंत्र के लिए खतरा नहीं है? न्यायमूर्ति रमना ने आगे पूछा, आप कहते हैं कि इस अदालत और उच्च न्यायालय को यह नहीं सुनना चाहिए और यह तब है जब आपने हमसे पहले संपर्क किया था।

साल्वे ने कहा कि इस मामले के तथ्यों में ऐसा कुछ भी नहीं है, जिससे यह पता चले कि इन लोगों ने पार्टी छोड़ दी। इस पर प्रधान न्यायाधीश ने साल्वे से कहा, आज आप कहते हैं कि अदालत इस मुद्दे पर नहीं जा सकती, क्योंकि अध्यक्ष के पास शक्ति है। साल्वे ने शिंदे गुट की ओर से कहा, मैं अयोग्य नहीं हूं, मैंने पार्टी नहीं छोड़ी है। उद्धव ठाकरे गुट का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि इस मुद्दे को संविधान पीठ के पास भेजने की कोई आवश्यकता नहीं है।

प्रधान न्यायाधीश ने एक प्रश्न किया, मान लीजिए कि दो समूह हैं, जो कह रहे हैं कि हम वास्तविक राजनीतिक दल हैं और राजनीतिक दल के सामान्य सदस्य यह पहचानने का दावा नहीं कर सकते कि मूल राजनीतिक दल कौन है। सिब्बल ने तर्क दिया कि एक समूह कह सकता है कि उनके पास 50 में से 40 विधायकों का समर्थन है, इसलिए वे असली राजनीतिक दल हैं। उन्होंने कहा, अगर 40 अयोग्य हैं तो? चुनाव आयोग कोई न कोई फैसला करे तो इस दलबदल का क्या होगा?

ठाकरे समूह का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने भी कहा कि जब तक यह अदालत फैसला नहीं करती, तब तक चुनाव आयोग इस मुद्दे को कैसे तय कर सकता है और बाद में वे कहेंगे कि ये कार्यवाही निष्फल हैं?

चुनाव आयोग का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता अरविंद दतार ने कहा कि बागी विधायक की अयोग्यता का मतलब सदन से उनकी अयोग्यता है, न कि राजनीतिक दल से। दातार ने कहा कि यह कोई राजनीतिक मुद्दा नहीं है और दसवीं अनुसूची इस पर रोक नहीं लगा सकती है। दातार ने कहा, मैं केवल यह तय कर सकता हूं कि सबूत पेश करने के बाद किसके पास सिंबल (चिन्ह) हो सकता है।

दलीलें सुनने के बाद, शीर्ष अदालत ने मौखिक रूप से भारत के चुनाव आयोग से शिंदे समूह द्वारा उन्हें असली शिवसेना पार्टी के रूप में मान्यता देने के लिए उठाए गए दावे पर कोई प्रारंभिक कार्रवाई नहीं करने और ठाकरे गुट को अपनी प्रतिक्रिया प्रस्तुत करने की अनुमति देने के लिए कहा। शीर्ष अदालत ने कहा कि वह सोमवार तक फैसला करेगी कि महाराष्ट्र के राजनीतिक परि²श्य से उत्पन्न विधायकों की अयोग्यता में शामिल संवैधानिक सवालों के संबंध में एक बड़ी पीठ को भेजा जाए या नहीं।

 

(आईएएनएस)

डिस्क्लेमरः यह आईएएनएस न्यूज फीड से सीधे पब्लिश हुई खबर है. इसके साथ bhaskarhindi.com की टीम ने किसी तरह की कोई एडिटिंग नहीं की है. ऐसे में संबंधित खबर को लेकर कोई भी जिम्मेदारी न्यूज एजेंसी की ही होगी.

Created On :   4 Aug 2022 3:00 PM IST

Tags

और पढ़ेंकम पढ़ें
Next Story