लिंगायत व वोक्कालिगा समुदाय पर टिका कर्नाटक राज्य का सियासी समीकरण, आगामी चुनावों में बीजेपी की बढ़ सकती मुश्किलें

BJP may face problem in this region of Karnataka, all parties focus on Lingayat and Vokkaliga
लिंगायत व वोक्कालिगा समुदाय पर टिका कर्नाटक राज्य का सियासी समीकरण, आगामी चुनावों में बीजेपी की बढ़ सकती मुश्किलें
विधानसभा चुनाव 2023 लिंगायत व वोक्कालिगा समुदाय पर टिका कर्नाटक राज्य का सियासी समीकरण, आगामी चुनावों में बीजेपी की बढ़ सकती मुश्किलें

डिजिटल डेस्क, बेंगलुरु। दक्षिण भारत के एक मात्र राज्य कर्नाटक में बीजेपी सरकार को 2023 के चुनाव में भारी मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है। आगामी चुनावों में बीजेपी को कर्नाटक में अपना किला बचाना चुनौतीपूर्ण हो सकता है। हालांकि साल के अंत में होने वाले चुनावों को देखते हुए बीजेपी ने सभी समाजों को साधना शुरू कर दिया है। प्रदेश में सर्वाधिक संख्या में मौजूद लिंगायत व वोक्कालिगा समुदाय पर सभी दलों की नजर टिकी हुई है। राज्य में दोनों ही समुदायों की आबादी  34 फीसदी के करीब है। जो आधी से अधिक सीटों पर असर डालती है। हालांकि 28 लोकसभा सीटों वाली कर्नाटक में बीजेपी के पास कुल 25 सीटें है। 

कर्नाटक के सियासी समीकरण पर नजर डालें तो ये प्रदेश 6 इलाकों में बंटा हुआ है।  जिनमें बेंगलुरू, मध्य कर्नाटक, हैदराबाद कर्नाटक, तटीय कर्नाटक, बांबे कर्नाटक व पुराना मैसूर कर्नाटक आते है। चुनावी लिहाज से  पुराने मैसूर में भाजपा की कमजोर स्थिति है। यहां  कि 64 विधानसभा सीटें में से भाजपा के पास 13 सीटें है। जिनमें से 11 विधायक अन्य दल से आए है। इस क्षेत्र में वोक्कालिगा समाज का प्रभाव है। इस क्षेत्र में जनता दल (सेक्युलर) यानी जद (एस) ने सबसे ज्यादा 23 सीटों पर कब्जा जमाए हुए है। पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा वोक्कालिगा समुदाय से ही ताल्लुक रखते है, और इलाके में उनका काफी ज्यादा प्रभाव है। 

चुनाव में जद (एस) भी बीजेपी के लिए बड़ी मुश्किल

भाजपा अपने जनाधार को बढ़ाने के लिए वोक्कालिगा समुदाय पर काफी ज्यादा जोर दे रही है। अब तक के चुनावी इतिहास में  भाजपा को इस समुदाय से कम ही वोट मिला हैं। हालांकि बोम्मई सरकार में सात मंत्री वोक्कालिगा समुदाय से आते है। केंद्र की मोदी सरकार में भी इस समुदाय से 1 मंत्री शामिल है। जो इस समाज का नेतृत्व कर रहे हैं।  भाजपा के बड़े नेताओं का कहना है कि वह किसी भी हालत में जद(एस) से समझौता नहीं करेंगे। यह पार्टी के लिए बड़ी चुनावी समस्या बन सकती है। हालांकि कुछ जानकारों का मानना है कि जद (एस)  चुनाव बाद बीजेपी  में शामिल हो सकती है। भारत जोड़ो यात्रा के दौरान कांग्रेस ने दोनों ही समुदायों में अपनी पैठ बढ़ा ली। राहुल गांधी की  यात्रा के समय दोनों  ही समुदायों के कई नेता उनके साथ कदमताल करते हुए दिखाई दिए थे।

सामाजिक समीकरण

सामाजिक  समीकरणों की बात करें तो राज्य में लिंगायत करीब 18 फीसदी, वोक्कालिगा 16 फीसदी, दलित लगभग 23 फीसदी, आदिवासी समाज करीब 7 फीसदी और मुस्लिम 12 फीसदी हैं। इसके अलावा कुर्वा करीब चार फीसदी हैं। यहां की सियासत इन्हीं समीकरणों पर चलती है। पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा और वर्तमान समय के मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई की वजह से लिंगायत समुदाय का समर्थन इस बार के विधानसभा चुनाव में भी बीजेपी को मिल सकता है, लेकिन बीजेपी की सबसे कमजोर कड़ी यह है कि कांग्रेस के पास कई वोक्कालिगा नेताओं का सर्मथन है। इनमें डीके के प्रमुख शिवकुमार भी है। जो मुख्यमंत्री पद के दावेदारों में से एक हैं। ऐसे में वोक्कालिगा में सेंध लगाना भाजपा की नई रणनीति के लिए काफी ज्यादा जरूरी है। बता दें कि, राज्य में सिद्धरमैया के चलते अधिकांश कुर्वा समाज कांग्रेस को वोट कर सकती है।

बीजेपी का आरक्षण प्लान

विपक्ष की निगाहें दलित आदिवासी, मुस्लिम व कुर्वा पर टिकी हुई है। जिनकी आबादी राज्य में 45 फीसदी है। भाजपा सरकार इन वोटों पर सेंध लगाने के लिए आरक्षण में बढ़ोतरी की है। राज्य सरकार ने अनुसूचित जाति के लिए 15 से बढ़ाकर 17 फीसदी और अनुसूचित जनजाति के लिए 3 से बढ़ाकर 7 फीसदी आरक्षण किया है। इन सब के अलावा राज्य की राजनीति में माहौल भी काफी अहम योगदान रखता है। सरकार के खिलाफ सत्ता विरोधी माहौल और पार्टी के अंदरूनी समीकरण भी चुनाव को प्रभावित कर सकते हैं। सभी दल न केवल यहां पर विधानसभा चुनाव की तैयारी में लगी हुई है बल्कि आगामी लोकसभा चुनाव को भी देखते हुए भी सभी दलों ने तैयारियां तेज कर दी है।  

Created On :   19 Jan 2023 12:06 PM IST

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