स्कूलों में भगवद् गीता, महाभारत बनेंगी नैतिक शिक्षा का हिस्सा

Bhagvad Gita, Mahabharata will be part of moral education in schools
स्कूलों में भगवद् गीता, महाभारत बनेंगी नैतिक शिक्षा का हिस्सा
कर्नाटक सरकार स्कूलों में भगवद् गीता, महाभारत बनेंगी नैतिक शिक्षा का हिस्सा

डिजिटल डेस्क, बेंगलुरु। कर्नाटक सरकार अगले शैक्षणिक वर्ष से अपने स्कूली पाठ्यक्रम में हिंदू महाकाव्य-कथाओं भगवद् गीता और महाभारत को शामिल करने के लिए पूरी तरह तैयार है। हालांकि इस संबंध में कुछ समय पहले एक प्रस्ताव रखा गया था, लेकिन सत्ताधारी भाजपा सरकार ने विपक्ष के रुख को देखते हुए इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया था। सरकार का रुख स्पष्ट करते हुए शिक्षा मंत्री बी.सी. नागेश ने मंगलवार को कहा, अगले साल से नैतिक शिक्षा को स्कूली पाठ्यक्रम में जोड़ा जाएगा। भगवद् गीता, महाभारत और पंचतंत्र कहानियां भी नैतिक शिक्षा का हिस्सा होंगी।

उन्होंने कहा, जो भी विचारधाराएं बच्चों को उच्च नैतिकता की ओर बढ़ने में मदद करती हैं, उन्हें नैतिक शिक्षा में अपनाया जाएगा। यह एक धर्म तक ही सीमित नहीं होगा। विभिन्न धार्मिक ग्रंथों के पहलुओं को अपनाया जाएगा जो बच्चों के लिए फायदेमंद हैं। हालांकि, एक विशेष धर्म के पहलुओं का पालन किया जाएगा। 90 प्रतिशत बच्चों को अधिक वरीयता मिलेगी और यह अपरिहार्य है।

मंत्री नागेश ने यह भी स्पष्ट किया कि मैसूर साम्राज्य के पूर्व शासक टीपू सुल्तान की जीवनी भी मैसुरु हुली (मैसूर का शेर) शीर्षक से पाठ्यपुस्तकों में रखा जाएगा। भाजपा विधायक अप्पाचू रंजन ने टीपू सुल्तान पर पाठ्यपुस्तकों से पाठ हटाने की मांग की है। रंजन ने कहा कि उन्होंने अपने दावे की पुष्टि के लिए सबूत पेश किए हैं।

विधायक रंजन आग्रह कर रहे हैं कि अगर टीपू सुल्तान पर पाठ पढ़ाया जाए तो सभी पहलुओं को पढ़ाया जाना चाहिए। टीपू एक कन्नड़ विरोधी शासक था, जिसने प्रशासन में फारसी भाषा थोप दी थी। कोडागु में उसके अत्याचार के बारे में भी बच्चों को पढ़ाया जाना चाहिए। लेकिन, टीपू पर पाठ नहीं छोड़ा गया है, अनावश्यक विवरण बरकरार रखा जाएगा। किन पहलुओं को छोड़ दिया जाएगा, इसका विवरण बाद में साझा किया जाएगा।

मंत्री नागेश ने आगे कहा कि उर्दू स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों के माता-पिता ने उनसे उन स्कूलों में समकालीन पाठ्यक्रम शुरू करने का अनुरोध किया है। उन्हें डर है कि उनके बच्चे इस प्रतिस्पर्धी दुनिया में पिछड़ जाएंगे। हालांकि, मदरसों या अल्पसंख्यक कल्याण विभाग की ओर से ऐसी कोई मांग नहीं है।

(आईएएनएस)

Created On :   19 April 2022 6:30 PM IST

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