भास्कर एक्सक्लूसिव: क्या बीजेपी के लिए आसान है 370 सीटें जीतना? ये राज्य बनेंगे पीएम मोदी के सपने को साकार करने में रोड़ा!

क्या बीजेपी के लिए आसान है 370 सीटें जीतना? ये राज्य बनेंगे पीएम मोदी के सपने को साकार करने में रोड़ा!
  • लोकसभा चुनाव होने में कुछ दिन है बाकी
  • 370 सीटें जीतना नहीं होगी का आसान
  • ये पांच राज्य बनेंगे भाजपा की जीत का कांटा

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। इस साल देश में लोकसभा चुनाव होने वाले हैं। जिसके लिए कई राजनीतिक दल ने जोरों-शोरों से चुनावी मैदान में उतरने की तैयारियां शुरू कर दी हैं। ऐसे में भाजपा ने अभी से आगामी चुनाव में "अब की बार 400 पार" का नारा लगाना शुरू कर दिया है। सोमवार को संसद में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चुनावी दावा करते हुए पार्टी की ओर से 370 सीटों पर जीत दर्ज करने का लक्ष्य तय किया है। हालांकि, इस टारगेट को अचीव कर पाना भी पार्टी के लिए काफी कठिन रहेगा। ऐसे में यदि हम पीएम मोदी के नेतृत्व वाले शासन पर नजर डालें। तो साल 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने 303 सीटों पर 37 प्रतिशत वोट के बदौलत जीत दर्ज की थी। वहीं, साल 2014 में लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी के बतौर पीएम फेस और फेम पर भारी बहुमत के साथ केंद्र की सत्ता में आई थी। दोनों वर्ष के लोकसभा चुनावों में भी काफी अंतर देखने को मिलता है। दरअसल, बीजेपी ने साल 2019 में 2014 के चुनाव की तुलना में 6 प्रतिशत ज्यादा वोट प्राप्त हुए थे। उस दौरान पार्टी ने अपने खाते में 21 सीटों से ज्यादा पर जीत हासिल की थी। इन पूर्व चुनावों में बीजेपी के रिकॉर्ड को देखते हुए इस साल का चुनाव में पार्टी के लिए काफी चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। फिलहाल, चुनावी साल में भाजपा ने देश में जिस तरह की लहर बनाई हुई है। उस लिहाज से पार्टी को ऐसा जरूर लग रहा है कि वह अपने 370 वाले दावे को जरूर प्राप्त कर लेगी। मगर, पहले के चुनावों में जीत के रिकॉर्ड देखने पर यह प्रतीत होता है कि बीजेपी अपनी जीत की हैट्रिक को पूरा कर पाएगी या नहीं। इसके लिए बीजेपी को जीतने के लिए देश के पांच राज्य में आ रही अड़चनों को अपनी राह से दूर करना होगा। तब जाकर वह 2024 में केंद्र की सत्ता में बरकरार रहेगी।

ये पांच राज्य बीजेपी के लिए बनेंगे मुसीबत

पीएम मोदी की नेतृत्व वाली भाजपा सरकार को केंद्र की सत्ता में बने हुए 10 साल पूरे हो चुके हैं। ऐसे में साल 2014 के चुनाव में पार्टी ने पूरे देश में जबरदस्त लोकप्रियता हासिल की थी। तो वहीं, उत्तर भारत में पार्टी को पंजाब और दिल्ली में जनता बीजेपी से नाखुश दिखाई दी थी। इसके बाद से ही पार्टी की यह कोशिश रही थी कि वह वहां पर अपनी पकड़ मजबूत बना पाएं। यदि अन्य राज्यों के मुकाबले देखा जाए तो ये राज्य इतनी बड़े नहीं है। मगर, जीत के दृष्टिकोण से पार्टी को चाहे छोटे हो या फिर बड़े, हर राज्य की हर एक सीट पर जीत पाना काफी महत्वपूर्ण है। अगामी चुनावों में पंजाब की आम आदमी पार्टी से भाजपा टक्कर लेने जा रही है। जहां बीजेपी को वहां के पूर्व सहयोगी दल शिरोमणी अकाली दल का समर्थन भी प्राप्त नहीं है। ऐसे में भाजपा का हाल यह हो गया है कि उसका राज्य की 13 में से 2 सीटों पर भी जीत पाना काफी कठिन साबित हो रहा है।

इस बार कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटने के बाद यहां पहली बार चुनाव होने जा रहे हैं। लद्दाख की ओर रुख करें तो हाल ही में केंद्र पर वहां के लोगों ने जमकर विरोध प्रदर्शन किया था। ऐसे में अगामी चुनाव के नजरीये से भाजपा के लिए वहां की सीट को लेकर खतरा मंडराना शुरू हो गया है। उधर, हिमाचल की सत्ता में कांग्रेस ने वापसी कर ली है। साफ है कि, प्रदेश में जिसकी सरकार होती है उसकी पार्टी को फायदा तो जरूर मिलता है। 2019 के चुनाव में भाजपा को हिमाचल को 4 में से 4 सीटों पर जीत प्राप्त हुई थी। मगर, 2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को कड़ी टक्कर मिल सकती है। राजधानी दिल्ली में पूर्व चुनाव के दौरान बीजेपी के पाले में सभी 7 सीटें आई थीं। लेकिन दिल्ली की सत्ताधारी आम आदमी पार्टी ने यहां पर जबरदस्त पकड़ बनाई हुई है। साथ ही, उसने नगर निगम पर भी अपना दबदबा बना लिया है। जिसके चलते उसने बीजेपी के लिए टेंशन बढ़ा दी है। यही नहीं, बल्कि भाजपा के लिए एक चुनौती यह भी है कि यहां पर कांग्रेस और आम आदमी पार्टी साथ मिलकर एलायंस बना रही हैं। यानी कि लोकसभा चुनाव में दिल्ली की सभी सीटों पर भाजपा को कड़ी टक्कर मिलने वाली है।

उत्तरप्रदेश में भाजपा को मिलेगा तगड़ा मुकाबला

साल 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने यूपी की 80 सीटों में से 62 सीटें जीती थीं। वहीं, सहयोगी दलों ने 2 सीटों पर जीत हासिल की थी। इस चुनाव में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी गठबंधन के रूप में चुनावी मैदान में उतरे थे। मगर, इस चुनाव में दोनों ही पार्टी राज्य में सरकार नहीं बना सकीं। जिसके चलते बहुजन पार्टी 10 सीटें ही जीत पाई, तो वहीं समाजवादी पार्टी को केवल 5 सीटें पर ही जीत मिली। ऐसे में इस बार के लोकसभा चुनाव की शुरुआत इंडिया गठबंधन की छांव तले होने वाला है। इसके लिए अखिलेश यादव और जयंत चौधरी में आपसी सहमति भी हो चुकी है। साथ ही, राज्य में सीट बंटवारे को लेकर बातचीत का दौर भी जारी है। जानकारी के अनुसार, समाजवादी पार्टी की ओर से कांग्रेस के सामने 11 सीटों का प्रस्ताव पेश किया गया है। ऐसे में यदि इसको लेकर कोई बात बनती है। तो इससे बीजेपी को अपने पुराने फॉर्म में आकर पिछले चुनावों की तरह यूपी की सीटों पर जीत हासिल करनी होगी।

पिछले चुनाव के दौरान, भाजापा पूर्वी उत्तरप्रदेश के कई जिलों की सीटों पर हार गई थी। यूपी में कुछ समय पहले घोसी उपचुनाव चुनाव हुए थे। जो बीजेपी के लिए मुसीबत बनी हुई है। दरअसल, घोसी के उपचनुाव के वक्त समाजवादी पार्टी से पिछड़े समाज के नेता दारा सिंह चौहान ने पार्टी छोड़ दी थी। इसके बाद उन्होंने बीजेपी के टिकट पर यहां से चुनाव लड़ा था। इस दौरान यहां पर नेता ओमप्रकाश राजभर ने चुनाव प्रचार के लिए पूरी ताकत लगा दी थी। मगर, इसके बावजूद बीजपी को हार का सामना करना पड़ा था। ऐसे में उत्तरप्रदेश की 10 सीटें यानी 72 सीटें को बढ़ाए बिना 2024 के चुनाव में भाजपा का 370 पार का दावा साबित भी हो सकता है।

भारत के पूर्वी राज्य बढ़ाएंगे पार्टी की मुश्किलें

आगामी चुनाव में भाजपा के लिए बंगाल, बिहार और उड़ीसा में अपनी जीत को रिपीट करना थोड़ा कठिन साबित हो रहा है। ओडिशा से भाजपा के कुल 8 सांसद हैं। वहीं, बीजेडी के पाले में कुल 20 सीटें हैं। ओडिशा में अभी तक भाजपा की सरकार इसलिए नहीं बन पाई है। क्योंकि राज्य में पार्टी की ओर से आक्रामक राजनीति नहीं की गई है। वहीं, राज्य के सीएम नवीन पटनायक और भाजपा के बीच दोस्ताना मुकाबला जारी है। ऐसे में नवीन पटनायक प्रदेश में बीजेपी की राजनीति करने में जुटे हुए हैं। एक तरफ जहां भाजपा चुनाव में राम मंदिर का श्रेय ले रही है। तो वहीं, दूसरी ओर नवीन पटनायक पुरी के कॉरिडोर को लेकर चुनाव प्रचार कर रहे हैं। आंध्र प्रदेश की तरह ही पश्चिम बंगाल में भी 370 सीटों का दावा करने वाली भाजपा की मुश्किलें कम होती दिखाई नहीं दे रही है। बंगाल में बीजेपी को अपने 19 सीटों वाले पुराने रिकॉर्ड को तोड़ने के लिए कुछ खास उम्मीद नहीं है। पिछले विधानसभा चुनाव में बंगाल में टीएमसी की जीत को देखने से साफ जाहिर होता है कि यहां भाजपा अपनी जीती हुई सीट बचाने में कामयाब होगी।

दक्षिण में भाजपा के सामने कई चुनौती

पिछले चुनाव में बीजेपी को आंध्र प्रदेश में लोकसभा की 25 सीटें में से एक पर भी जीत हासिल नहीं हुई थी। वहीं, तमिलनाडु की भी 39 सीटों पर भी पार्टी की यही स्थिति रही थी। इसे देखते हुए 2024 के लोकसभा चुनाव में पार्टी की टेंशन बनी हुई है। केरल की 20 सीटों पर भाजपा का एक भी सीट पर जीत पाना काफी मुश्किल है। इन सभी राज्यों की सीटों को जोड़ दिया जाए तो इसकी संख्या 84 बैठ रही है। भाजपा नीत गठबंधन एनडीए को 400 सीटों के टारगेट तक पहुंचने के लिए इन सीटों को जीतना होगा। जिसके लिए पार्टी को यहां पर बेहतरीन प्रदर्शन करने की जरूरत होगी।

बीजेपी को 370 के आकड़े को छूने के लिए केरल, तमिलनाडू, तेलंगाना और आंध्रप्रदेश में कम से कम 30 सीटों पर जीत दर्ज करनी होगी। जो पार्टी के लिए आसान नहीं होगा। गौरतलब है कि, दक्षिण में इन प्रदेशों की कुल 101 सीटों में से भाजपा के खाते में केवल 4 ही सीटें हैं। यह सीटें भी बीजेपी को तेलंगाना से हासिल हुई थी। विधानसभा चुनाव में तेलंगाना में कांग्रेस की जीत हो चुकी है। ऐसे में, भाजपा के खाते से यह पुरानी सीटें भी निकल सकती हैं। वहीं, कर्नाटक में भी भाजपा की जीत की राह में कांटे बो रहा है। भाजपा ने पिछले आम चुनाव में यहां कि 28 में से 25 सीटें पर जीत दर्ज की थी। 2024 के चुनाव में बीजेपी ने जेडीएस के साथ गठबंधन किया है। हालांकि, ये 4 सीटें भी बीजेपी को जेडीएस के दम पर ही मिली थी। कर्नाटक में भाजपा का शासन समाप्त हो चुका है। सत्ता परिवर्तन के बाद राज्य में कांग्रेस की स्थिति काफी सशक्त हो गई है। ऐसे में अब माना जा रहा है कि बीजेपी तमिलनाडु और केरल में चमत्कार के जरिए ही ज्यादा सीटें जीत सकती है। लेकिन, भाजपा जिस तरह से इन राज्यों में परिश्रम कर रही है। उससे पार्टी को जरूर उम्मीद बनी हुई है।

महाराष्ट्र में भाजपा की स्थिति

लोकसभा में सबसे अधिक सासंद उत्तरप्रदेश के बाद अगर कही से आते हैं तो वे महाराष्ट्र से आते हैं। महाराष्ट्र की 48 सीटों में से भाजपा ने 23 सीटें जीती थीं। पिछले सालों की स्थिति के मुकाबले महाराष्ट्र का चुनावी समीकरण काफी बदल हो चुका है। महाराष्ट्र में हाल ही के सालों में देखा गया कि कैसे भाजपा ने शिवसेना और एनसीपी में दरार डाली। ताकि वह अपने दुश्मनों को कमजोर करने का काम कर सके। हालांकि, यहां अब भी पार्टी खुद को कमजोर समझ रही है। इसके पीछे कारण है कि शरद पवार और उद्धव ठाकरे दोनों ही नेता बिना किसी पार्टी के समर्थन के भी दमदार स्थिति में हैं। आने वाले दिनों में यदि इंडिया गठबंधन में सीट बंटवारे पर फैसला हो जाता है। तो यहां पर बीजेपी का जीतना मुश्किल हो सकता है।

Created On :   6 Feb 2024 7:28 PM IST

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