मध्यप्रदेश के नीमच में जोर- शोर से उठते है किसानों के मुद्दे, बीजेपी और कांग्रेस में होता है सीधा मुकाबला
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। मध्यप्रदेश का नीमच जिला मालवा रीजन में आता है। नीमच में तीन विधानसभा क्षेत्र नीमच, मनासा और जावद आती है। 19वीं सदी में नीमच ग्वालियर राज्य की सैन्य छावनी का का केंद्र था। यहाँ पर सबसे पहले नार्थ इंडिया माउंटेड आर्टिलरी एंड कैवेलरी हेडक्वार्टर्स (NIMACH) सेना तैनात थी, इसी कारण इस जिले का नाम नीमच पड़ा। प्रशासनिक सुविधाओं को ध्यान में रखते हुए 30 जून 1998 ई. को मंदसौर जिले की कुछ तहसीलों को विभाजित कर इस नए जिले का गठन किया गया था। जिले के अधिकांश मतदाता कृषि करते है। यहां के चुनाव में मुख्य मुकाबला बीजेपी और कांग्रेस के बीच ही होता है। 2018 के विधानसभा चुनाव में तीनों सीट बीजेपी के खाते में आई । किसानों और बेरोजगारी के मुद्दे यहां जोर शोर से उठते है।
नीमच विधानसभा क्षेत्र
नीमच विधानसभा सीट को बीजेपी का मजबूत किला माना जाता है। यहां लगातार चार बार से बीजेपी प्रत्याशी ही जीतता आ रहा है। कांग्रेस यहां कमजोर स्थिति में दिखाई पड़ती है, साथ ही कांग्रेस यहां कम ही जीती है। जातियों का चुनाव तो यहां कम ही दिखाई देता है। किसान आंदोलन के कारण पाटीदार समाज बीजेपी से नाराज नजर आता है। यहां ब्राह्मम वोटर्स का दबदबा है। नीमच में बृाह्मण, परिहार,पाटीदार और सौंधिया समाज में चुनावी लड़ाई देखने को मिलती है।
1957 में कांग्रेस से सीताराम जाजू
1962 में जनसंघ से खुमान सिंह
1967 में जनसंघ से खुमान सिंह
1972में कांग्रेस से रघुनंदन प्रसाद वर्मा
1977में जनता पार्टी से कन्हैयालाल डूंगरलाल
1980में कांग्रेस से रघुनंदन प्रसाद वर्मा
1985में कांग्रेस से संपतसरूप सीताराम जाजू
1990में बीजेपी से खुमान सिंह शिवाजी
1993में बीजेपी से खुमान सिंह शिवाजी
1998 में कांग्रेस से नंदकिशोर पटेल
2003में बीजेपी से दिलीप सिंह परिहार
2008में बीजेपी से खुमान सिंह शिवाजी
2013में बीजेपी से दिलीप सिंह परिहार
2018में बीजेपी से दिलीप सिंह परिहार
मनासा विधानसभा सीट
मनासा क्षेत्र में ज्यादा प्रभाव धनगर गायरी, गुर्जर व बंजारा समाज के मतदाताओं का रहता है। गुर्जर व धनगर गायरी समाज के मतदाताओं की संख्या करीब 40 हजार से अधिक है। इस विधानसभा क्षेत्र में गुर्जर-गायरी व बंजारा समाज का दबदबा है और भाजपा का एक बड़ा वोट बैंक है। यह समाज किसी भी पार्टी के उम्मीदवार को हराने-जिताने अहम रोल अदा करता है। बढ़ती मंहगाई और बेरोजगारी के साथ साथ पलायन की समस्या यहां अधिक देखने को मिलती है। शिक्षा और स्वास्थ्य भी बदहाल स्थिति में है।
1952 में कांग्रेस से रामलाल पोखरना
1957 में जनसंघ से सुंदरलाल पटवा
1962 में जनसंघ से सुंदरलाल पटवा
1967 में कांग्रेस से बालकवि बैरागी
1972 में कांग्रेस से सूरजमल तुगनावत
1977 में जनता पार्टी से रामचंद्र बसेर
1980 में कांग्रेस से बालकवि बैरागी
1985 में कांग्रेस से नरेंद्र नाहटा
1990 में बीजेपी के राधेश्याम लढ़ा
1993 में कांग्रेस के नरेंद्र नाहटा
1998 में कांग्रेस से नरेंद्र नाहटा
2003 में बीजेपी से कैलाश चावला भाजपा
2008 में कांग्रेस से विजेंद्रसिंह मालाहेड़ा
2013 में बीजेपी से कैलाश चावला
2018 में बीजेपी से अनिरूद्ध मारू
जावद विधानसभा सीट
जावद धाकड़ बाहुल्य विधानसभा सीट है। यहां अवैध रेत उत्खनन और जबरन वसूली खूब चलती है। विकास की बजाय प्रत्याशी का चेहरा बहुत अहमियत रखता है। राज्य के आखिरी छोर पर बसा जावद अरावली की खूब सूरत पहाड़ियों से घिरा हुआ है।अफीम और लहसुन के लिए ये प्रचलित है। जाबद पर ओमप्रकाश सखलेचा की मजबूत पकड़ है। चार बार से वो लगातार यहां से चुनाव जीत रहे है। जावद सीट को बीजेपी के अभेद किले के तौर पर देखा जाता है। कांग्रेस को यहां कमलनाथ और मीनाक्षी नटराजन गुट के आपसी झगड़ों के चलते हार का सामना करना पड़ता है।
जावद में चुनाव जातिगत समीकरणों पर टिका रहता है। जातियों की बात की जाए तो यहां 30 फीसदी धाकड़ मतदाता है, जो निर्णायक वोटर्स है। इलाके में 17 फीसदी एसटी, 18 फीसदी अल्पसंख्यक वोटर्स है। 7 फीसदी पाटीदार और 6 फीसदी राजपूत मतदाता है। बेरोजगारी , शिक्षा , स्वास्थ्य और परिवहन सुविधा कम है।
1977 में जेएनपी से वीरेंद्र सखलेचा
1980 में बीजेपी से वीरेंद्र सखलेचा
1985 में कांग्रेस से चून्नीलाल धाकड़
1990 में बीजेपी से डूली चंद
1993 में कांग्रेस से घनश्याम पाटीदार
1998 में कांग्रेस से घनश्याम पाटीदार
2003 में बीजेपी से ओमप्रकाश सखलेचा
2008 में बीजेपी से ओमप्रकाश सखलेचा
2013 में बीजेपी से ओम प्रकाश सखलेचा
2018 में बीजेपी से ओम प्रकाश सखलेचा
Created On :   14 Aug 2023 7:31 PM IST