लोकसभा चुनाव 2024: बीजेपी के लिए क्यों जरूरी हैं नीतीश? ताजा घटनाक्रम से कैसे प्रभावित होगी आगामी लोकसभा चुनाव रणनीति
- बिहार में बीजेपी के लिए क्यों जरूरी हैं नीतीश?
- इंडिया अलायंस को कमजोर करने का मौका
- जाती समीकरण के लिए अहम हैं नीतीश कुमार
डिजिटल डेस्क, पटना। रविवार को नीतीश कुमार ने बिहार के मुख्यमंत्री के तौर पर 9वीं बार शपथ ली। महागठबंधन से अलग होने के सवाल पर नीतीश ने कहा कि वहां कुछ ठीक नहीं चल रहा था, जिसकी वजह से उन्हें यह फैसला लेना पड़ा। नीतीश के पाला बदलने की आशंका पहले से ही जताई जा रही थी। महागठबंधन से नीतीश के अलग होने से पहले, यह भी कहा जा रहा था कि तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री बनाने के लिए लालू यादव कुछ खेला करने वाले हैं। अब यह कह पाना मुश्किल है कि नीतीश ने पाला बदलने का फैसला मुख्यमंत्री की कुर्सी पर खतरे को देखते हुए किया या इस फैसले के पीछे की वजह कुछ और है। हालांकि, इससे नीतीश की इमेज धूमिल जरूर हुई है।
नीतीश ने इससे पहले भी एनडीए का दामन थामा था लेकिन कुछ समय बाद पाला बदलकर महागठबंधन की सरकार बना ली थी। इसके बावजूद भाजपा ने आखिरकार जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) को गठबंधन में दोबारा मौका देने का फैसला क्यों लिया? इस फैसले के पीछे आखिर क्या कारण हो सकता है। फिलहाल, इस सवाल का जवाब देश की जनता सहित बड़े बड़े राजनीतिक एक्सपर्ट्स ढूंढने की कोशिश में जुटे हुए हैं। लेकिन एक आम विचार, जो सामने आ रहा है, वह यह है कि भाजपा को लोकसभ चुनाव में इस फैसले से एक साथ कई हितों को साधने में मदद मिलने की संभावना है।
जातीय समीकरण के लिए अहम हैं नीतीश
बिहार की राजनीति में जाति एक अहम फैक्टर है। राज्य में 'एक्सट्रीमली बैकवर्ड क्लास' (ईबीसी) की आबादी लगभग 30 प्रतिशत है। इस कैटेगरी में मुख्य तौर पर कुर्मी, निषाद, नाई, तेली और कोयरी जैसी जातियां आती हैं। ईबीसी जातियों का ज्यादातर वोट नीतीश कुमार की पार्टी को ही जाता है जिस वजह से आगामी लोकसभा चुनाव में जातीय समीकरण की दृष्टि से एनडीए के लिए नीतीश का साथ काफी अहम है।
इंडिया अलायंस को कमजोर करने का मौका
फिलहाल इस बाद की संभावना कम दिखाई दे रही है कि इंडिया गठबंधन एनडीए के सामने आगामी लोकसभा चुनाव में कुछ खास चुनौती पेश कर पाएगी। बिहार में नीतीश के पाला बदलने से पहले ममता बनर्जी भी बंगाल में लोकसभा चुनाव अकेले लड़ने का ऐलान कर चुकी हैं। हालांकि, शुरूआत में इंडिया गठबंधन में शामिल विपक्षी दल अगर एकता बनाए रखते हुए चुनावी मैदान में उतरते तो भाजपा को मुश्किल हो सकती थी। इस लिहाज से इंडिया गठबंधन का कमजोर होना एनडीए के हित में है जो नीतीश के साथ आने से सधता हुआ नजर आ रहा है।
आंतरिक सर्वे में कमजोर दिखाई दी भाजपा
कुछ मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो भारतीय जनता पार्टी ने कुछ समय पहले लोकसभा चुनाव 2024 के परिप्रेक्ष्य में बिहार में एक आंतरिक सर्वे करवाया। इस सर्वे का उद्देश्य आगामी चुनाव के मद्देनजर राज्य में भाजपा की स्थिति का आंकलन करना था। सर्वे में चुनाव को लेकर मिले फीडबैक से पार्टी संतुष्ट नहीं थी। वहीं केंद्रीय नेतृत्व इस बार चुनाव में 400 से ज्याद सीटें जीतने का लक्ष्य बना रही है। पार्टी के इस रणनीति में बिहार और महाराष्ट्र चिंता का सबब बना हुआ था। नीतीश के साथ आने से बिहार में भाजपा की चिंता दूर हो गई है।
पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा ने नीतीश के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था और पार्टी को इसका भरपूर फायदा भी मिला। एनडीए ने बिहार के 40 लोकसभा सीटों में से 39 पर जीत हासिल की थी। 39 में से भाजपा के खाते में 17 तो जेडीयू के पास 16 और लोजपा को 6 सीटें हासिल हुई थी। भाजपा नीतीश के साथ मिलकर एक बार फिर ऐसे ही प्रदर्शन के साथ 'इस बार 400 पार' के नारे को बुलंद करना चाहती है।
Created On :   29 Jan 2024 4:59 PM IST