आईआईटी का स्टूडेंट कैसे बना संत?: जीवन का मतलब तलाशते-तलाशते शिव की भक्ति में रमा आईआईटी का ब्रिलियंट स्टूडेंट, इंजीनियरिंग से ज्यादा भाया अध्यात्म
- शिव की भक्ति में रमा आईआईटी का ब्रिलियंट स्टूडेंट
- छात्र के बाद नौकरी की, फिर बन गया संत
- इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से एयरोस्पेस इंजीनियरिंग की
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में महाकुंभ का मेला जारी है। ऐसे में देश-विदेश के साधु-संत प्रयागराज में आ रहे हैं। इस बीच एक साधु चर्चा का विषय बने हुए हैं। जिन्हें सोशल मीडिया पर आईआईटीयन बाबा का नाम दिया गया है। बाबा की कहानी दिलचस्प है। एक मीडिया पत्रकार ने जब बाबा का इंटरव्यू लिया, तो उन्होंने अपनी कहानी बताई। कैसे वह साधु बने? साथ ही, उनका क्या उद्देश्य है जीवन को लेकर?
पत्रकार से बात करते हुए बाबा ने कहा कि वह बॉम्बे के इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से एयरोस्पेस इंजीनियरिंग की है। जिसके बाद उन्होंने साइंस का रास्ता छोड़कर शांति की राह पर निकल पड़े। उन्होंने अपना नाम अभय सिंह बताया। वह हरियाणा के झज्जर के रहने वाले हैं।
कौन हैं आईआईटीयन बाबा?
आईआईटीयन बाबा ने बताया कि बॉम्बे IIT से पढ़ाई पूरी करने के बाद उनका सिलेक्शन हुआ था। जिसके बाद उन्होंने करीब एक साल तक नौकरी भी की। जिसमें उनकी पैकेज लाखों की थी। उन्होंने इंटरेस्ट डिजाइनिंग की, इसके लिए उन्होंने एक साल कोचिंग में फिजिक्स पढ़ाया। नौकरी और कोचिंग पढ़ाने में उनका मन नहीं लगता था। ऐसे में वह आध्यात्म के रास्ते पर चल पड़े।
मीडिया इंटरव्यू में अभय सिंह ने बताया कि इंजीनियरिंग के दौरान ह्यूमैनिटी, फिलॉसॉफी से जुड़े हुए अलग-अलग विषय पढ़े। उन्होंने जिंदगी का मतलब समझने के लिए नवउत्तरावाद, सुकरात और प्लेटो के आर्टिकल जैसे किताबें पढ़ीं।
आईआईटीयन बाबा की कहानी
बाबा अभय सिंह ने बताया कि दो साल डिजाइनिंग की पढ़ाई करने के बाद उनकी नौकरी फोटोग्राफी के काम में लग गई। जिसमें उनको अलग-अलग जगहों पर घूमना पड़ता था। उनको यह काम अच्छा भी लगा था। हालांकि, एक समय बाद उनका मन इससे भी हट गया। एक वह डिप्रेशन में रहने लगे थे। उनकी बहन ने उनको संभालने की कोशिश की। उन्हें उनकी बहन ने कनाडा भी बुलाया था। वहांं एक बार फिर उनकी नौकरी लग गई थी। लेकिन उन्हें जिंदगी जीने और जीवन का उद्देश्य नहीं मिल रहा था।
कोरोना ने बदली राह
इसके बाद साल 2020 में कोरोना आया। वह डिप्रेशन में चले गए। कोरोना के बाद वह भारत वापस आए। देश वापस लौटने के बाद उन्होंने अलग-अलग विधा पढाई करना शुरू कर दिया। फिर उनको जीवन की नई राह मिली। समय मिलने पर उन्होंने चारों धामों की पैदल यात्रा भी की। उन्होंने पैदल उत्तराखंड और हिमाचल के अलग-अलग तीर्थस्थल की भी यात्रा की। इस दौरान उनका उद्देश्य जीवन को जानने को लेकर रहा।
बाबा ने बताया कि उन्होंने अब अपना पूरा जीवन भगवान शिवशंकर को समर्पित कर दिया है। उन्होंने बताया, "अब अध्यात्म में मजा आ रहा है। मैं साइंस के जरिए अध्यात्म को समझ रहा हूं। इसकी गहराइयों में जा रहा हूं। सब कुछ शिव है। सत्य ही शिव है और शिव ही सुंदर है।"
Created On :   15 Jan 2025 4:38 PM IST