अजमेर शरीफ के मंदिर होने का दावा: कौन सी है वो किताब जिसमें अजमेर शरीफ के मंदिर होने का मिलता है जिक्र? महादेव मंदिर और पंडित परिवार के चंदन चढ़ाने का उल्लेख
- पंडित परिवार के चंदन चढ़ाने का उल्लेख
- अजमेर शरीफ के मंदिर होने का दावा
- एक किताब में मंदिर होने का मिलता है जिक्र
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। अजमेर शरीफ दरगाह की चर्चा एक बार फिर देश की सियासत का बड़ा मुद्दा बन गया है। इस बार इसके पीछे कारण एक किताब बनी है। यह किताब अजमेर को लेकर है। जिसके चलते ही स्थानीय अदालत ने दरगाह का सर्वेक्षण कराने को लेकर केंद्रीय अल्पसंख्यक मामले के मंत्रालय, भारतीय पुरात्व सर्वेक्षण (ASI) और अजमेर दरगाह समिति को नोटिस जारी किया है। दीवान बहादुर हर बिलास सारदा ने 'अजमेर: ऐतिहासिक और वर्णनात्मक' नाम की एक किताब लिखी थी। इसी किताब के लिखी बातों को लेकर अदालत में एक याचिका दायर की गई है। इसमें ऐतिहासिक रूप से अहम अजमेर शरीफ दरगाह के सर्वेक्षण कराने की मांग की गई थी। अदालत की ओर से नोटिस इसी याचिका का एक हिस्सा है।
महादेव की प्रतिमा के बारे में जिक्र
हर बिलास सारदा ने अपनी किताब में दावा किया है कि अजमेर शरीफ दरगाह जहां स्थित है, वहां पहले कभी हिंदू मंदिर हुआ करता था। हर बिलास सारदा ब्रिटिश काल के न्यायाधीश, राजनीतिज्ञ और शिक्षाविद के रूप में जाने जाते हैं। साल 1910 में उन्होंने यह किताब प्रकाशित की थी। जिसमें सारदा ने अजमेर शरीफ दरगाह स्थित स्थान को प्रचीन हिंदू मंदिर होने के अस्तित्व के बारे में सावधानीपूर्वक बताया है। किताब में ऐसा दावा किया है कि दरगाह परिसर में महादेव को समर्पित एक प्राचीन मंदिर रहा होगा। दस्तावेजीकरण में सारदा ने एक ब्राह्मण परिवार के बारे में भी जिक्र किया है, जो दरगाह में घंटा बजाने के लिए नियुक्त किए गए थे। इस ब्राह्मण परिवार का काम प्रतिदिन महादेव की प्रतिमा पर चढ़ाने का था।
किताब में बड़ा दावा
किताब में बताया गया है कि चंदनखाने के पीछे एक दरवाजा है। जो भूमिगत मार्ग से तहखाने तक जाता है। जहां ख्वाजा के अवशेष दफनाए गए थे। इसके ऊपर सबसे पहले ईंटों से बना एक साधारण कच्चा मकबरा बनाया गया था। पुरानी परंपराओं के मुताबिक, तहखाने के अंदर एक मंदिर में महादेव की मूर्ति है। जहां ब्राह्मण परिवार द्वारा हर दिन चंदन चढ़ाने का काम किया जाता था। मौजूदा समय में भी दरगाह की ओर से घड़ियाली (घंटी बजाने वाला) रखा जाता है। सारदा ने अपनी किताब में दावा किया है कि पूरी दरगाह पुराने हिंदू मंदिरों के स्थल पर बनाई गई लगती है। 'अजमेर: ऐतिहासिक और वर्णनात्मक' किताब के मुताबिक, बलांद दरवाजा और भीतरी आंगन के मौजूद जगह के नीचे पुरानी हिंदू मंदिरों के तहखाने हैं। जिसमें से कई कमरे अभी भी मौजूद हैं। वास्तव में पूरी दरगाह, जैसा कि शुरुआती मुसलमान शासकों के समय में आम था। पुराने मंदिरों में आंशिक परिवर्तन करके और आंशिक रूप से पहले से मौजूद संरचनाओं को जोड़कर बनाई गई प्रतीत होती है।
अढ़ाई दिन का झोपड़ा के बारे में भी खुलासा
हर बिलास सारदा ने अढ़ाई दिन का झोपड़ा (मस्जिद) उल्लेख किया है। उन्होंने किताब में बताया है कि इसे भी मंदिर तोड़कर बनाया गया था। यहां सरस्वती मंदिर था। इसकी तुलना उन्होंने मध्य प्रदेश के घार में स्थित राज भोज की पाठशाला से की है। उन्होंने बताया है कि यह इमारत एक ऊंची छत पर खड़ी थी और मूल रूप से पहाड़ी की खुरचनी चट्टान के सामने बनाई गई थी। इसमें पश्चिमी की ओर सरस्वती मंदिर (शिक्षा का मंदिर) था। इसके अलावा दक्षिण और पूर्व की तरफ प्रवेश द्वार था। इसमें आंतरिक भाग के बारे में भी जिक्र किया गया है। आंतरिक भाग के बारे में बताया गया है कि यह 200 फीट गुणा 175 फीट का एक चतुर्भुज शामिल था।
चौहान सम्राट वीसलदेव ने कराया था शिक्षा के मंदिर का निर्माण
उन्होंने बताया है कि इस शिक्षा मंदिर को भारत के पहले चौहान सम्राट वीसलदेव ने 1153 ई. में बनवाया था। जिसकी तुलना मध्य प्रदेश के धार में स्थित राज भोज की पाठशाला से की जाती है। जिसे अब मस्जिद में बदल दिया गया है। उसे आज भी राजा भोज की पाठशाला के रूप में भी जाना जाता है।
किताब के मुताबिक, अगर इस शिक्षा के मंदिर की तुलना धार में स्थित राज भोज की पाठशाला से करेंगे तो इसकी उत्पत्ति को लेकर सारे संदेह दूर हो जाएंगे। मीनारें, स्तंभों की उत्कृष्ट रूप से डिजाइन की गई नक्काशी और सजावटी पट्टियां तथा चतुर्भुज के आकार के अद्भुत मठ, जो मूल रूप से 770 फीट तक फैले हुए थे। अब केवल 164 फीट ही बचे हैं। साथ ही, गौरी के अफगानों की अज्ञानतापूर्ण कट्टरता और धर्मांधता के कारण नष्ट हो गए। 1192 ई. में शहाबुद्दीन गौरी के नेतृत्व में अफगानों ने अजमेर पर हमला किया था। जिसके बाद गौरी ने मंदिरों को मस्जिदों में बदलना शुरू किया।
Created On :   28 Nov 2024 7:41 PM IST