भारत के इतिहास में सुनहरे अक्षरों में लिखा जाएगा आज का दिन: उद्धव
डिजिटल डेस्क, मुंबई। अयोध्या में विवादित राम जन्मभूमि पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने बयान जारी कर कहा कि आज का दिन भारत के इतिहास में सुनहरे अक्षरों में लिखा जाएगा। सभी ने फैसला स्वीकार कर लिया है। मैं 24 नवंबर को अयोध्या जाऊंगा।
उन्होंने कहा कि मैं लालकृष्ण आडवाणी से मिलने और उनका अभिनंदन करने के लिए भी जाऊंगा। उन्होंने इसके लिए रथ-यात्रा निकाली थी। मैं उनसे जरूर मिलूंगा और उनका आशीर्वाद लूंगा।
Shiv Sena chief Uddhav Thackeray: I will also visit LK Advani ji to thank him congratulate him. He had taken out "Rath-Yatra" for this. I will surely meet him and seek his blessings. #AyodhyaJudgement https://t.co/MMuMddk7mt
— ANI (@ANI) 9 नवंबर 2019
उन्होंने कहा कि अयोध्या में विवादित भूखंड पर मंदिर बनाने का रास्ता साफ करने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले को सभी ने स्वीकार किया है।
उद्धव ने अयोध्या के फैसले पर अपनी प्रतिक्रिया के लिए असदुद्दीन ओवैसी को फटकार लगाते हुए कहा कि वह सर्वोच्च न्यायालय नहीं हैं। असदुद्दीन ओवैसी ने अयोध्या विवादित भूमि के फैसले पर असंतोष व्यक्त किया था, सुप्रीम कोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस जेएस वर्मा के हवाले से कहा था कि "वास्तव में सर्वोच्च, लेकिन अचूक नहीं"।
गौरतलब है कि संविधान पीठ के अन्य सदस्यों में न्यायमूर्ति एसए बोबड़े, न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चन्द्रचूड़, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर शामिल हैं। संविधान पीठ ने अपने 1045 पन्नों के फैसले में कहा है कि विवादित स्थान पर मंदिर निर्माण के लिए 3 महीने के भीतर एक ट्रस्ट गठित किया जाना चाहिए, जिसके प्रति हिन्दुओं की यह आस्था है कि भगवान राम का जन्म यहीं हुआ था। अदालत ने शनिवार को दो फैसले सुनाए। पहला फैसला शिया वक्फ बोर्ड की ओर से विवादित स्थल पर मालिकाना हक को लेकर थी, जिसे अदालत ने खारिज कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने निर्माेही अखाड़े के दावे को भी खारिज करते हुए पार्टी मानने से इनकार कर दिया। अदालत दूसरे फैसले और प्रमुख अयोध्या केस में फैसला दिया कि सुन्नी वक्फ बोर्ड विवादित स्थल पर अपना एकतरफा हक साबित नहीं कर सका। साथ एएसआई की रिपोर्ट भी बताती है ढांचे का निर्माण पहले से पहले किसी स्थल पर किया गया है। हालांकि 12 और 16 वीं सदी के बीच यहां कोई मंदिर था यह बात भी एएसआई की रिपोर्ट में साबित नहीं होती।
अदालत ने रामलला विराजमान न्यास के दावे को सही माना और सरकार को आदेश दिया रामजन्मभूमि की पूरी जमीन रामलला न्यास को सौंप दी जाए और एक ट्रस्ट बनाकर मंदिर का निर्माण कराया जाए। इसके पीछे अदालत ने विभिन्न यात्रियों द्वारा लिखी गई किताबों व लेखों को सबूत के तौर पर लिया जिसमें हिन्दू श्रद्धालुओं द्वारा विवादित स्थल पर पूजा अर्चना की बात कही गई है। इतना ही नहीं एएसआई की रिपोर्ट समेत अन्य सभी रिपोर्टों में राम चबूतरा और सीता रसोई का जिक्र किया गया है।
वहीं अदालत ने आदेश कि दिया कि सुन्नी वक्फ बोर्ड को अयोध्या में ही किसी स्थान पर 5 एकड़ जमीन दी जाए। अदालत के इस फैसले का सभी पक्षों ने स्वागत किया और इसी के साथ ही दशकों पुराने विवाद का अंत हो गया। इस स्थान पर 16वीं सदी की बाबरी मस्जिद थी जिसे कार सेवकों ने 6 दिसंबर, 1992 को गिरा दिया था।
Created On :   9 Nov 2019 5:26 PM IST