आइंस्टीन ने क्यों कहा था, गांधी पर यकीन नहीं होगा?
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन ने गांधी जी के बारे में कहा था कि “भविष्य की पीढ़ियों को इस बात पर विश्वास करने में मुश्किल होगी कि हाड़-मांस से बना ऐसा कोई व्यक्ति भी कभी धरती पर आया था।” आइंस्टीन ने गांधी जी के बारे जो बातें कही वो अपने आप में बड़ी बात थी। गांधी अपने में एक विचार थे, गांधी युवा पीढ़ियों के लिए प्रेरणा श्रोत है। गांधी के विचारों ने दुनिया भर के लोगों को न सिर्फ प्रेरित किया बल्कि करुणा, सहिष्णुता और शांति के दृष्टिकोण से भारत और दुनिया को बदलने में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
आज 2 अक्टूबर के दिन ऐसे ही महापुरूष का जयंती पूरे देश में धूमधाम से मनाया जा रहा है। पोरबंदर मे जन्में गांधी जी के पिता करमचंद गांधी,पोरबंदर रियासत में दीवान थे और उनकी माता का नाम पुतलीबाई था। गांधी जी ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा राजकोट से प्राप्त की और बाद में वे वकालत की पढ़ाई करने के लिये लंदन चले गए। बता दें कि लंदन में ही उनके एक दोस्त ने उन्हें भगवद् गीता से परिचित कराया और इसका प्रभाव गांधी जी की अन्य गतिविधियों पर स्पष्ट रूप से देखने को मिलता है। वकालत की पढ़ाई के बाद जब गांधी भारत वापस लौटे तो उन्हें वकील के रूप में नौकरी प्राप्त करने में काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा था।
वर्ष 1893 में दादा अब्दुल्ला (एक व्यापारी जिनका दक्षिण अफ्रीका में शिपिंग का व्यापार था) ने गांधी जी को दक्षिण अफ्रीका में मुकदमा लड़ने के लिये आमंत्रित किया, जिसे गांधी जी ने स्वीकार कर लिया और गांधी जी दक्षिण अफ्रीका के लिये रवाना हो गए थे। गौरतलब है कि गांधी जी के इस निर्णय ने उनके राजनीतिक जीवन को काफी प्रभावित किया था। आज के दिन लोग गांधी जी के उस योगदान को याद करते है, जिनकी बदौलत हम सभी आजाद भारत में सांस ले रहे हैं। गांधी जी देश में ही नहीं बल्कि विदेश में भी पूजनीय है, हाल ही अमेरिका के दौरे पर गए प्रधानमंत्री मोदी से मुलाकात के दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने गांधी जी का जिक्र किया था। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि गांधी विश्व में एक विचार बन गए। जब-जब सत्य अहिंसा की बात आती है, तब-तब गांधी को याद किया जाता है।
बापू ने अपने समस्त जीवन में सिद्धांतों और प्रथाओं को विकसित करने पर ज़ोर दिया और साथ ही दुनिया भर में हाशिये के समूहों और उत्पीड़ित समुदायों की आवाज़ उठाने में भी अतुलनीय योगदान दिया। साथ ही महात्मा गांधी ने विश्व के बड़े नैतिक और राजनीतिक नेताओं जैसे- मार्टिन लूथर किंग जूनियर, नेल्सन मंडेला और दलाई लामा आदि को प्रेरित किया तथा लैटिन अमेरिका, एशिया, मध्य पूर्व तथा यूरोप में सामाजिक एवं राजनीतिक आंदोलनों को प्रभावित किया था।
दक्षिण अफ्रीका में महात्मा गांधी
दक्षिण अफ्रीका में गांधी ने अश्वेतों और भारतीयों के प्रति नस्लीय भेदभाव को महसूस किया। उन्हें कई अवसरों पर अपमान का सामना करना पड़ा जिसके कारण उन्होंने नस्लीय भेदभाव से लड़ने का निर्णय लिया। उस समय दक्षिण अफ्रीका में भारतीयों और अश्वेतों को वोट देने तथा फुटपाथ पर चलने तक का अधिकार नहीं था, गांधी ने इसका कड़ा विरोध किया और अंततः वर्ष 1894 में "नटाल इंडियन कांग्रेस" नामक एक संगठन स्थापित करने में सफल रहे। दक्षिण अफ्रीका में 21 वर्षों के लंबे सफर के बाद वे वर्ष 1915 में वापस भारत लौट आए थे।
भारत में गांधी जी का आगमन
बता दें कि दक्षिण अफ्रीका में लंबे समय तक रहने और अंग्रेजों की नस्लवादी नीति के खिलाफ सक्रियता के कारण गांधी जी ने एक राष्ट्रवादी, सिद्धांतवादी और आयोजक के रूप में ख्याति अर्जित कर ली थी। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गोपाल कृष्ण गोखले ने गांधी जी को ब्रिटिश शासन के खिलाफ स्वतंत्रता हेतु भारत के संघर्ष में शामिल होने के लिये आमंत्रित किया था। वर्ष 1915 में गांधी भारत आए और उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम की रणनीति तैयार करने हेतु देश के गाँव-गाँव का दौरा किया था।
गांधी और सत्याग्रह
गांधी जी ने अपनी संपूर्ण अहिंसक कार्य को ‘सत्याग्रह’ का नाम दिया था। उनके लिये सत्याग्रह का अर्थ सभी प्रकार के अन्याय, अत्याचार और शोषण के खिलाफ शुद्ध आत्मबल का प्रयोग करने से था। गांधी जी का कहना था कि सत्याग्रह को कोई भी अपना सकता है, उनके विचारों में सत्याग्रह उस बरगद के वृक्ष के समान था जिसकी असंख्य शाखाएँ होती हैं।
शिक्षा पर गांधीवादी नजरिया
गांधी जी एक महान शिक्षाविद थे, उनका मानना था कि किसी देश की सामाजिक, नैतिक और आर्थिक प्रगति अंततः शिक्षा पर निर्भर करती है। उनकी राय में शिक्षा का सर्वोच्च उद्देश्य आत्म-मूल्यांकन है। उनके अनुसार, छात्रों के लिये चरित्र निर्माण सबसे महत्त्वपूर्ण है और यह उचित शिक्षा के अभाव में संभव नहीं है।
Created On :   1 Oct 2021 11:26 PM IST