विकास दुबे ऐसा क्या जानता था कि उसका एनकाउंटर ही हुआ?
- तीसरा सवाल- विकास दुबे का नाम उत्तर प्रदेश के 25 मॉस्ट वांटेड लोगों की सूची में शामिल क्यों नहीं किया गया था?
- दूसरा सवाल- विकास दुबे के पास वो क्या राज़ थे जो सत्ता और शासन के गठजोड़ को उजागर कर देते?
- पहला सवाल क्या वो सफेदपोशों और शासन में बैठे लोगों का राजदार था
- उसे उनका संरक्षण प्राप्त था?
डिजिटल डेस्क, कानपुर। अंग्रेजों के जाने के बाद जब एक नए भारत की कल्पना की गई तो उसमें राज्य की विराट शक्तियों को तीन हिस्सों में बांटा गया। "विधायिका" जो कानून बनाती है, "कार्यपालिका" जो कानून पर अमल करती है और "न्यायपालिका" जो न्याय करती है। संविधान निर्माताओं ने पूरी दुनिया की सबसे अच्छी राज्य व्यवस्थाओं का अध्ययन किया और उसके बाद संविधान में लिखा कि राज्य के ये तीनों अंग बराबर हैं। सभी को अपना काम करना है और किसी को दूसरे के काम में दखल नहीं देना है। लेकिन, ये पुरानी भारत हो गई, 2020 का भारत नया भारत है। उसे अब पुराने तरीकों की जरूरत नहीं है।
इसलिए समय आ गया है कि इन तीन अंगों में से एक को रिटायर कर दिया जाए। लेकिन, किसे किया जाए, "विधायिका" को नहीं कर सकते... क्योंकि समय-समय पर सांसदों और विधायकों की तन्ख्वाह बढ़ाने का विधेयक पारित करना होता है। "कार्यपालिका" को भी रखना जरूरी है... क्योंकि नेता अगर पीएम और सीएम नहीं बन पाए तो सत्ता और सरकार का मतलब क्या रह जाएगा? तो ऐसा करते हैं कि, न्यायपालिका को खुद के रिटायरमेंट का काम सौंप देते हैं। क्योंकि, उसका काम तो पुलिस पूरी तत्परता के साथ कर रही है और इस तत्परता का सबसे बड़ा उदाहरण आज पेश किया उत्तरप्रदेश पुलिस ने। क्योंकि, 8 पुलिसवालों को घेरकर मारने वाला कुख्यात अपराधी विकास दुबे मंदिर के गार्ड के हाथ आ गया और कुछ नहीं हुआ, लेकिन जैसे ही उत्तरप्रदेश पुलिस के हाथ आया तो कुछ ही घंटों के भीतर कथित न्याय हो गया। कोई तहरीर नहीं, कोई तारीख नहीं और न ही अदालत की जिरह। पुलिस ने खुद ही फैसला सुना दिया और विकास दुबे को मौत दे दी गई। शुक्रवार सुबह पुलिस की गोली से वह मारा गया। इसलिए ही हम यहां कह रहे हैं कि भारत की न्यायपालिका काम उत्तरप्रदेश पुलिस को देने का वक्त आ गया है?
दरअसल, 9 जुलाई को विकास दुबे उज्जैन के महाकाल मंदिर से पकड़ा गया। या यूं कहें कि उसने पुलिस को सरेंडर कर दिया। जब पुलिस की गिरफ्त में आया तो चारों ओर से पुलिसकर्मियों से घिरे होने के बावजूद लोगों से कहता दिखाई देता है कि, "मैं विकास दुबे हूं कानपुर वाला"। मानों वह पुलिस प्रशासन का मजाक उड़ा रहा हो। जिस किसी ने भी ये तस्वीरें टीवी पर देखीं तो उसे गुस्सा आया ही होगा कि ये अपराधी दुर्दांत होने के साथ-साथ बेशर्म भी है। पुलिस उसे पकड़कर ले जा रही है, लेकिन वह अपनी ठसक के ऐलान में लगा है। लेकिन, इस बात का मतलब बदलने में पूरे 24 घंटे भी नहीं लगे और विकास दुबे पुलिस की गोली से मारा गया? लेकिन, जब यह खबर फैली तो हर कानून का पालन करने वाले व्यक्ति ने कहा कि ऐसा नहीं होना था। हर किसी को उम्मीद थी कि मामले में दोषी को न्यायपालिका से ऐसी सजा मिले जो नजीर बनें, जिसका उदाहरण दिया जा सके। लेकिन, उससे पहले विकास से भरपूर पूछताछ हो ताकि मामले में पूरे गठजोड़ का खुलासा हो। पर, ऐसा नहीं हुआ।
हुआ क्या विकास दुबे का एनकाउंटर। एनकाउंटर जो अपने पीछे कई सवाल छोड़ गया। एनकाउंटर भी ऐसा कि जो किसी बी ग्रेड हिंदी फिल्म की कहानी से अलग नजर नहीं आ रहा। एक अपराधी का कथित एनकाउंटर होता है। पुलिस एक कहानी बुनती है। जिस पर यकीन करना मुश्किल हो रहा है। एनकाउंटर वाली परम्परा हमारे देश में बहुत पहले से है। लेकिन, यह एनकाउंटर जिस तरीके से हुआ या यूं कहें कि जिस बेशर्मी से हुआ, वह कई सवाल खड़े कर रहा है। हर किसी के मन में यह सवाल उठ रहे हैं कि आखिर वो कौन सी मजबूरी थी, जिसके चलते यूपी पुलिस विकास दुबे के कानपुर पहुंचने का इंतजार नहीं कर पाई और विकास दुबे ऐसा क्या जानता था कि जिसकी वजह से उसे खामोश कर दिया गया। जब 8 पुसिसकर्मी शहीद हुए तो हर किसी को लगा कि इन अपराधियों को मुंहतोड़ जवाब देना जरूरी था, लेकिन सोशल मीडिया से लेकर तमाम जगह लोग यह भी सवाल पूछ रहे हैं कि सिर्फ एक अपराधी को मार देने से व्यवस्था की सफाई नहीं हो जाती। इस लिए जरूरी था कि उसके साथ मिली भगत किसकी थी, उसके बारे में जाना जाए। इसके लिए यह जरूरी था कि कुछ समय के लिए ही सही, लेकिन विकास दुबे का जिंदा रहना जरूरी था। कुछ ही समय से तात्पर्य ये है कि इस तरह के अपराध से जुड़े लोगों का अदालत से सर्वोच्च सजा मिलनी चाहिए। लेकिन, वह सजा तो पुलिस ने पहले ही अपने ढंग से दे दी।
विकास दुबे ने अपनी पहचान चिल्लाकर क्यूं बताई
उज्जैन में जब विकास दुबे पकड़ा गया तो वह जोर से चिल्लाकर अपनी पहचान बताता है। तो पुलिसवालों के चेहरे पर ऐसा भाव होता है जैसे उनकी चोरी पकड़ी गई हो। एक पुलिसकर्मी विकास दुबे के सर पर पिछे से मारता है। दूसरा गर्दन पकड़कर उसका मुंह बंद कराने की कोशिश करता है। इतने में ही एक पुलिसकर्मी ने कहा कि शर्माजी मरवाओगे। क्या मतलब रहा होगा इसका। मतलब सोशल मीडिया यूजर्स ने निकाला। मतलब ये कि विकास दुबे को अपने एनकाउंटर का डर था, इसलिए उसने पकड़े जाने के बाद जोर से चिल्लाकर लोगों को अपनी पहचान बताई। ताकि लोगों को पता चल जाए कि उसे पकड़ लिया गया है। खबर मीडिया तक भी पहुंच जाए और उसका एनकाउंटर न हो। पहले भी कई अपराधियों ने ऐसा किया है कि बहुत जोर से हल्ला मचाकर सरेंडर किया है, ताकि पुलिस मार न दे। इस कोशिश में विकास यहां तो सफल हो जाता है और मीडिया के कैमरे उसके पीछे लग गए। लेकिन, तब तक के लिए जब तक मीडिया को रोक न दिया गया।
गुरुवार को ही लोगों ने कहा कि विकास का एनकाउंटर होगा
गुरुवार को लोग दिनभर ट्विटर पर लिखते रहे "पुलिस के गिरफ्तार करने के बावजूद विकास दुबे का एनकाउंटर होगा। एनकाउंटर की कहानी ये होगी कि विकास दुबे हथियार छीनकर भागने की कोशिश करेगा और पुलिस उसे गोली मार देगी।
Keeping RIP Dubey tweet ready.
— Ashish K. Mishra (@akm1410) July 9, 2020
Where does #VikasDubey go from here? What do you think?
— KAMLESH SINGH / BANA (@kamleshksingh) July 9, 2020
1. In transit or later, he tries to snatch the service pistol of a cop. Dies in encounter, fulfilling his mother"s wish.
2. Dies of coronavirus complications.
3. Is tried, jailed and comes out old and frail 15 years later
A retired IPS officer tells me: ‘It’s unlikely Vikas Dubey will be caught; he and associates will be mostly ‘encountered’, they know too many secrets about too many ‘big’ people’” well, it’s day 6 since the gangster escaped after killing 8 policemen. Watch this space!
— Rajdeep Sardesai (@sardesairajdeep) July 9, 2020
लगातार मारे जा रहे थे विकास के साथी, इसलिए यूपी में नहीं रुका विकास
9 जुलाई को विकास के दो साथियों का एनकाउंटर किया गया। उसके एक साथी प्रभात मिश्र की मौत एक एनकाउंटर में हुई। पुलिस के मुताबिक प्रभात भागने की कोशिश कर रहा था। उसे फरीदाबाद में पकड़ा गया था और कानपुर ले जाया जा रहा था। इसके अलावा प्रवीण उर्फ बउआ दुबे भी एक एनकाउंटर में मारा गया। बउआ दुबे के घर से ही पुलिस पर सबसे ज्यादा गोलियां चलाई गईं थीं। इसके अलावा 8 जुलाई को विकास के एक और साथी अमर दुबे भी एनकाउंटर में मारा गया था। इसी पेटर्न को वजह बताया गया कि विकास दुबे उत्तरप्रदेश में नहीं रुका।
पुलिस की कहानी
गैंगस्टर विकास दुबे के एनकाउंटर पर कांग्रेस सहित सभी विपक्षी दल सवाल उठा रहे हैं और न्यायिक जांच की मांग कर रहे हैं। वहीं उत्तर प्रदेश स्पेशल टास्क फोर्स (STF) ने विकास दुबे के एनकाउंटर को लेकर बयान जारी कर बड़ी जानकारी दी है। एसटीफ ने बताया है कि विकास दुबे को लेकर जा रही गाड़ी के सामने सड़क पर अचानक गाय-भैसों का झुंड आ गया था। जानवरों को बचाने के चक्कर में गाड़ी पटल गई। विकास इस मौके का फायदा उठाकर पुलिसकर्मी की पिस्तौल लेकर भागने की कोशिश करने लगा। इस दौरान पुलिस ने उसे आत्मसमर्पण करने को कहा, लेकिन उसने पुलिस पर फायर कर दिया। जवाबी कार्रवाई में उसे चार गोली लगी और वह मारा गया।
विकास दुबे के एनकाउंटर को लेकर उठ रहे बढ़े सवाल
पहला सवाल: यूपी पुलिस ने विकास दुबे की ट्रांजिट रिमांड क्यों नहीं ली?
विकास दुबे उज्जैन में पकड़ा गया था। यूपी के एसटीएफ को विकास को उज्जैन से कानपुर लाना था। दोनों शहरों की दूरी लगभग 670 किलोमीटर है। यह नियम है कि किसी भी अपराधी को जब गिरफ्तार किया जाता है तो 24 घंटे के भीतर मजिस्ट्रेट के सामने उसे पेश किया जाता है। इसलिए जब आरोपी पर जिस थाने में केस दर्ज है और वह किसी अन्य थाने में पकड़ा जाता है तो वहां के मजिस्ट्रेट के सामने उसे पेश किया जाता है। ट्रांजिट रिमांड ली जाती है। इसी प्रावधान के तहत बुधवार को फरीदाबाद में पकड़े गए विकास दुबे के सहयोगियों की ट्रांजिट रिमांड ली गई थी, लेकिन यूपी एसटीएफ ने विकास दुबे की ट्रांजिट रिमांड नहीं ली। इसका यह मतलब यह निकाला जा रहा है कि पुलिस गिरफ्तारी के बाद कोर्ट की तरफ बढ़ना नहीं चाह रही थी और यह पहले से तय था। वहीं पुलिस ने अपने आधिकारिक बयान में कहा है कि वह विकास दुबे को उज्जैन न्यायालय से कानपुर के न्यायालय लेकर आ रही थी। क्या इसका ये मतलब निकाला जाए कि पुलिस ने ट्रांजिट रिमांड लिया था और यदि ट्रांजिट रिमांड लिया था, तब इसका रवैया इतना लापरवाही भरा क्यों था?
दूसरा सवाल: विकास ने उज्जैन में सरेंडर किया तो कानपुर आकर भागने की कोशिश क्यों की?
विकास दुबे ने उज्जैन में कथित तौर पर सरेंडर किया था। उसने खुद चिल्लाकर कहा था कि वह विकास दबुे है। जब वह खुद सरेंडर कर रहा है तो कानपुर पहुंचने के बाद भागने की कोशिश क्यूं करेगा? उसके कई साथियों का पिछले कुछ दिनों में एनकाउंटर हुआ। क्या उसे नहीं पता था कि भागने की कोशिश में उसका भी एनकाउंटर हो जाएगा?
तीसरा सवाल: क्या विकास दुबे को हथकड़ी लगाई गई थी, अगर हां तो पुलिसवालों से पिस्तौल कैसे छीनी?
वह खूंखार किस्म का दुर्दांत अपराधों का आरोपी था। पांच लाख लाख का ईनाम था। जब पुलिस खुद ये प्रेस को बताती फिर रही थी कि विकास के साथियों का एनकाउंटर भागने और हथियार छीनने के चलते हुआ। तो फिर उसने ऐसी व्यवस्था क्यों नहीं की कि विकास के हाथ बंधे रहें। अगर उसने हाथ में हथकड़ी नहीं पहनी हुई थी तो यह पुलिस की संगीन लापरवाही है और अगर पहन रखी थी तो हथकड़ी के बावजूद विकास ने पिस्तौल कैसे छीनी और मौके से भाग गया।
चौथा सवाल: एसटीएफ के जवानों ने अपने हथियार सुरक्षित क्यों नहीं पकड़े थे?
विकास को उज्जैन से कानपुर लाने के लिए यूपी की एसटीएफ गई थी। स्पेशल टास्क फोर्स खास कामों के लिए तैयार फोर्स, हाई प्रोफाइल केस हैंडल करने वाली फोर्स, इस फोर्स के कमांडोज क्या अपने हथियारों की सुरक्षा भी नहीं कर पाए। क्या एसटीएफ को इतना भी नहीं पता था कि हाई प्रोफाइल क्रिमिनल को लाने के लिए क्या प्रोटोकॉल होते हैं। जबकि विकास दुबे के ही एक साथी ने पुलिस के ही मुताबिक पुलिस के हथियार छीनकर हमला किया। ये वाली खबर दो दिन पहले खुद पुलिस ने दी थी। क्या इसके बाद भी एसटीएफ सतत नहीं थी?
पांचवा सवाल: विकास दुबे की गाड़ी कैसे बदल गई?
टीवी न्यूज चेनल आज तक की रिपोर्ट की मुताबिक विकास दबुे को जिस एसयूवी से ले जाया जा रहा था वो टाटा सफारी स्टोम कार थी। आज जक की टीम ने इसका पीछा किया। इसके फुटेज भी मौजूद हैं, लेकिन मीडियाकर्मियों को आगे जाने से रोक दिया गया। बाद में जो एसयूवी कार घटना स्थल पर पलटी मिली वो महिंद्रा टीयूवी 300 थी। ये कार कैसे बदल गई। इस बारे में जब कानपुर के आईजी मोहित अग्रवाल से सवाल किए गए तो उन्होंने कहा कि मैरी पुलिसकर्मियों से बात हुई है। आरोपी इसी गाड़ी में लाया जा रहा था जो घटना स्थल पर पलटी हुई है। कोई गाड़ी बीच में बदली नहीं गई है।
छटवां सवाल: गाड़ी पलट गई तो विकास दुबे को चोट क्यों नहीं आई?
पुलिस के मुताबिक जिस टीयूवी 300 में विकास दुबे था वो अचानक कानपुर के भोती के पास पलट गई। कार पलटी तो 4 पुलिसकर्मियों को चोट आई वो जख्मी हो गए, लेकिन विकास दुबे का बाल भी बाका नहीं हुआ। जख्मी जवानों से ज्यादा उम्र का विकास दुबे हथियार छीनकर भाग निकला। उसके एक पांव में रॉड पड़ी है। वो बहुत तेज नहीं चल सकता, फिर भी भाग निकला। आरंभिक जांच कहती है कि विकास के शरीर पर गोलियों के निशान के अलावा दूसरे जख्म के निशान नहीं हैं। तो कैसे भाग निकला?
सातवां सवाल: सीधी सड़क पर कार पलट कैसे गई?
कार के पलटने की तस्वीरों साफ नजर आ रहा है कि कार बिल्कुल सड़क के किनारे पलटी हुई है। जहां डिवाडर नहीं हैं वहां कार पलटी है। अगर कार तेज रफ्तार के चलते पलटी तो उसने एक ही पलटी क्यों खाई? सड़क पर गाड़ी के पलटने के निशान क्यों नहीं हैं?
Created On :   11 July 2020 12:06 AM IST