उत्तराखंड के आठ और शहर कभी बन सकते हैं जोशीमठ ! शोध में चौंकाने वाला खुलासा, और शहरों में हो सकता है भू-धंसाव
- जोशीमठ के अलावा उत्तराखंड में एक नहीं बल्कि आठ शहर भू-धंसाव की चपेट में
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। उत्तराखंड में जोशीमठ का जख्म अभी भरा भी नहीं है कि आठ और शहर उसी जख्म को झेलने की ओर बढ़ चले हैं। एक शोध में उत्तराखंड के इन शहरों से जुड़ा चौंकाने वाला और चिंताजनक खुलासा किया गया है। उस पर यकीन करें तो उत्तराखंड के आठ और शहर जोशीमठ की तरह कभी भी दरक सकते हैं। शोध में पाया गया है कि राज्य के ये आठ शहर अगले जोशीमठ साबित हो सकते हैं। हालांकि, अभी तक इन क्षेत्रों में जोशीमठ के जितना खतरा नहीं है। लेकिन, इस वक्त राज्य के तीन शहरों पर भूस्खलन का संकट मंडरा रहा है।
यहां हुआ शोध
उत्तराखंड के शहरों पर ये शोध किया है एक प्रोफसर ने। कुमाऊं यूनिवर्सिटी के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो. पीसी तिवारी के शोध के मुताबिक, उत्तराखंड के 11 फीसदी लोग असुरक्षित क्षेत्रों में अपना जीवनयापन कर रहे हैं। इसमें 30 फीसदी लोग गरीब हैं। इसके अलावा पिछले बीस सालों में अति संवेदनशील क्षेत्रों में रहने वाले लोगों में 15 प्रतिशत बढ़ोतरी हुई है। इससे साफ है कि ये लोग भी इन इलाकों में घर निर्माण का भी काम कर रहे होंगे। जिससे खतरा और भी बढ़ सकता है।
शहरीकरण पर रिसर्च करने वाले प्रो. तिवारी ने लाइव हिंदुस्तान से कहा कि, इस वक्त हिमालय पर्वतश्रृंखला विश्व की सबसे घनी आबादी वाला क्षेत्र है। लेकिन हिमालयी राज्यों के उत्तराखंड में सबसे तेजी के साथ शहरीकरण हुआ है। साथ ही 26 फीसदी आबादी इन हिमालयी राज्यों में निवास करती है। जिसमें उत्तराखंड के 30 प्रतिशत लोग हैं। राज्य सरकार ने 94 जगहों को चिन्हिंत करके उसे नगर घोषित किया है। इसके अलावा कुछ दिन पहले ही 12 नए नगर बनाए जाने पर सहमति बनी है। वहीं राज्य में 500 से अधिक ऐसे शहर हैं, जो नगर घोषित नहीं किए गए हैं। उन्होंने कहा कि ठोस नीति नहीं होने की वजह से भूस्खलन अथवा भू-कटाव वाले भूमि क्षेत्र में लगातार निर्माण कार्य होते चले गए।
'लोगों ने केदारनाथ वाली घटना से सबक नहींं लिया'
प्रो. पीसी तिवारी ने कहा कि नैनीताल, उत्तरकाशी के भाटवाड़ी, मुनस्यारी समेत चंपावत के पूर्णागिरी में भी भू-धंसाव हो रहा है। गोपेश्वर, कर्णप्रयाग और श्रीनगर भी खतरे से खाली नहीं है। फिलहाल, इन क्षेत्रों में जोशीमठ जैसी स्थिति नहीं है। उन्होंने आगे कहा कि उत्तराखंड के संवेदनशील इलाकों में लगातार रहने वाले लोगों में काफी ज्यादा इजाफा हो रहा है। जोकि काफी ज्यादा चिंताजनक है। इस मामले में प्रो सुंदरियाल का मानना है कि हम लोगों ने 2013 की केदारनाथ में आई भीषण आपदा से सबक नहीं लिया और हम फिर से आपदा वाली जगहों पर लगातार निर्माण कार्य करते जा रहे हैं।
Created On :   14 Jan 2023 2:19 PM IST