ऋषिकेश से यमुनोत्री धाम की दूरी 26 किमी होगी कम, डबल लेन सुरंग का किया जा रहा निर्माण

The distance from Rishikesh to Yamunotri Dham will be reduced by 26 km, double lane tunnel is being constructed
ऋषिकेश से यमुनोत्री धाम की दूरी 26 किमी होगी कम, डबल लेन सुरंग का किया जा रहा निर्माण
उत्तराखंड ऋषिकेश से यमुनोत्री धाम की दूरी 26 किमी होगी कम, डबल लेन सुरंग का किया जा रहा निर्माण
हाईलाइट
  • सुरंग के तैयार होने पर वाहनों को पहाड़ी से नहीं गुजरना पड़ेगा

डिजिटल डेस्क, देहरादून। आने वाले दिनों में यमुनोत्री धाम की यात्रा न केवल सुरक्षित होगी, बल्कि सुगम भी हो जाएगी। यमुनोत्री धाम से 50 किलोमीटर दूर एक डबल लेन सुरंग का निर्माण किया जा रहा है। आलवेदर रोड प्रोजेक्ट के तहत तैयार की जा रही सुरंग की लंबाई 4.5 किमी है। इसमें से 3.1 किमी तक निर्माण पूरा कर लिया गया है। इस सुरंग के तैयार होने के बाद ऋषिकेश से यमुनोत्री की दूरी 26 किलोमीटर घट जाएगी। अभी यह दूरी 256 किलोमीटर है। सुरंग निर्माण पर 853 करोड़ रुपये खर्च होंगे।

यमुनोत्री धाम के पास सिलक्यारा और जंगल चट्टी के बीच बनने वाली प्रदेश की सबसे बड़ी सुरंग के निर्माण का जिम्मा राष्ट्रीय राजमार्ग और अवसंरचना विकास निगम लिमिटेड (एनएचआइडीसीएल) के पास है। एनएचआइडीसीएल के महाप्रबंधक कर्नल दीपक पाटिल ने बताया कि अभी ऋषिकेश से यमुनोत्री धाम की यात्रा में आठ घंटे लगते हैं, लेकिन इस सुरंग के बन जाने से यात्रा अवधि 45 मिनट कम हो जाएगी। उन्होंने बताया कि पहले सुरंग निर्माण पूर्ण करने का लक्ष्य सितंबर 2023 था, लेकिन अब कुछ समय अतिरिक्त लग सकता है। उन्होंने उम्मीद जताई कि मार्च 2024 तक इसका निर्माण पूरा हो जाएगा। बताया कि जनवरी 2019 से इस डबल लेन सुरंग पर कार्य शुरू किया गया था।

क्षेत्र की दो लाख आबादी को भी मिलेगा लाभ दरअसल, यमुनोत्री धाम पहुंचने के लिए वाहनों को राडी टाप नामक पहाड़ी से गुजरना पड़ता है। यह पहाड़ी यमुनोत्री से 70 किलोमीटर दूर है। समुद्र तल से सात हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित यह पहाड़ी शीतकाल में बर्फ से ढकी रहती है। भारी बर्फबारी से यातायात भी बाधित रहता है। सुरंग के तैयार होने पर वाहनों को इस पहाड़ी से नहीं गुजरना पड़ेगा। इससे क्षेत्र की दो लाख की आबादी भी लाभान्वित होगी।

आगजनी पर सुरंग के अंदर होगी पानी की बौछार एनएचआइडीसीएल के महाप्रबंधक कर्नल दीपक पाटिल बताते हैं कि सुरंग में आने और जाने के लिए अलग-अलग लेन होंगी। एकीकृत नियंत्रण प्रणाली के तहत सुरंग के अंदर की गतिविधि के स्वचालन में सहायता मिलेगी। इसमें सांख्यिकीय डेटा का रखरखाव, संग्रह और विश्लेषण, आपातकालीन सेंसर, वायु गुणवत्ता और वेंटिलेशन सिस्टम सुनिश्चित करना शामिल है। सुरंग के बाहर नियंत्रण कक्ष होगा। आगजनी की स्थिति में सुरंग के भीतर स्वत: पानी की बौछार होने लगेगी और पंखे बंद हो जाएंगे। इसकी सूचना वाहन चालकों को भी एफएम के जरिये दी जाएगी। 

न्यू आस्ट्रियन टनलिंग मेथड से तैयार हो रही सुरंग कर्नल दीपक पाटिल के अनुसार न्यू आस्ट्रियन टनलिंग लग मेथड वर्तमान में सुरंग बनाने की विश्व प्रचलित पद्धति है। इसमें चट्टान तोड़ने के लिए ड्रिलिंग और ब्लाटिंग दोनों की जाती है। खोदाई के दौरान चट्टानों का अध्ययन और निगरानी कंप्यूटराइज्ड मशीनों से होती है। इससे इंजीनियरों को सुरंग के अंदर आने वाली अगली कोमल व कठोर चट्टान की स्थिति मालूम पड़ जाती है। इस सुरंग का व्यास 15.095 मीटर है।

(आईएएनएस)

Created On :   25 April 2022 3:31 PM IST

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