सुप्रीम कोर्ट चुनावी बॉन्ड योजना के खिलाफ याचिका पर जल्द विचार करने पर सहमत

Supreme Court agrees to consider the petition against the electoral bond scheme soon
सुप्रीम कोर्ट चुनावी बॉन्ड योजना के खिलाफ याचिका पर जल्द विचार करने पर सहमत
नई दिल्ली सुप्रीम कोर्ट चुनावी बॉन्ड योजना के खिलाफ याचिका पर जल्द विचार करने पर सहमत
हाईलाइट
  • मामले की शीघ्र सूची बनाने का मिला आश्वासन

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट मंगलवार को चुनावी बॉन्ड योजना के जरिए राजनीतिक दलों को फंडिंग की अनुमति देने वाले कानूनों के खिलाफ एक याचिका पर सुनवाई के लिए राजी हो गया।

एनजीओ एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स का प्रतिनिधित्व करने वाले अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने प्रधान न्यायाधीश एन.वी. रमना की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष कहा कि यह एक महत्वपूर्ण मुद्दा है, जिस पर तत्काल सुनवाई की जरूरत है। उन्होंने एक समाचार रिपोर्ट का हवाला दिया, जिसके मुताबिक कलकत्ता स्थित एक कंपनी ने चुनावी बॉन्ड के माध्यम से 40 करोड़ रुपये का भुगतान किया, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि उस पर कोई एक्साइज रेड या विभागीय छापा नहीं पड़ेगा।

प्रधान न्यायाधीश ने जवाब दिया कि अगर कोविड को लेकर समस्या नहीं होती, तो अदालत मामले की सुनवाई करती। न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी और न्यायमूर्ति हेमा कोहली की पीठ ने भूषण को मामले की शीघ्र सूची बनाने का आश्वासन दिया। एनजीओ ने 2017 में सभी राजनीतिक दलों के खातों में पारदर्शिता की कमी और अवैध गतिविधियों के माध्यम से लोकतंत्र को नष्ट करने का आरोप लगाते हुए एक याचिका दायर की थी। सरकार ने 2 जनवरी, 2018 को चुनावी बॉन्ड योजना को अधिसूचित किया था।

पिछले साल मार्च में एनजीओ ने अपनी लंबित याचिका में एक अंतरिम आवेदन दायर किया, जिसमें दावा किया गया था कि एक गंभीर आशंका है कि पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, केरल और असम में आगामी राज्य चुनावों से पहले चुनावी बॉन्ड की बिक्री और शेल कंपनियों के माध्यम से राजनीतिक दलों को अवैध फंडिंग में और वृद्धि होगी। याचिका में तर्क दिया गया था, चुनावी बॉन्ड योजना ने राजनीतिक दलों को असीमित कॉर्पोरेट चंदे और भारतीय और विदेशी कंपनियों द्वारा गुमनाम वित्त पोषण के लिए द्वार खोल दिए हैं, जो भारतीय लोकतंत्र पर गंभीर असर डाल सकते हैं। शीर्ष अदालत ने पिछले साल जनवरी में 2018 चुनावी बॉन्ड योजना पर अंतरिम रोक लगाने से इनकार कर दिया था। इसने एनजीओ की याचिका पर केंद्र सरकार और चुनाव आयोग से भी जवाब मांगा था।

याचिका में कहा गया है कि 2017 के वित्त अधिनियम ने चुनावी बॉन्ड के उपयोग की शुरुआत की थी, जो कि जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 के तहत प्रकटीकरण से मुक्त है, राजनीतिक दलों के लिए अनियंत्रित, अज्ञात धन के दरवाजे खोल रहा है। इसने तर्क दिया कि इन संशोधनों ने कंपनियों द्वारा अभियान दान पर पिछले 3 वर्षो में शुद्ध लाभ के 7.5 प्रतिशत की मौजूदा सीमा को हटा दिया है और गुमनाम दान को वैध कर दिया है। याचिका में तर्क दिया गया है, यहां तक कि घाटे में चल रही कंपनियां भी अब राजनीतिक दलों को अपनी पूंजी या भंडार में से किसी भी राशि का दान करने के लिए योग्य हैं। इसके अलावा, यह गुमनाम और अपारदर्शी साधनों के माध्यम से राजनीतिक दलों को धन भेजने के लिए बेईमान तत्वों द्वारा कंपनियों को अस्तित्व में लाने की संभावना को खोलता है।

 

(आईएएनएस)

Created On :   5 April 2022 10:00 PM IST

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