देश के ऐसे जिले जहां 15 अगस्त 1947 से पहले पहुंच गई थी आजादी

Such districts of the country where independence was reached before 15 August 1947
देश के ऐसे जिले जहां 15 अगस्त 1947 से पहले पहुंच गई थी आजादी
आजादी की अनसुनी कहानियां देश के ऐसे जिले जहां 15 अगस्त 1947 से पहले पहुंच गई थी आजादी
हाईलाइट
  • बलिया में पहले ही पहुंच गई थी आजादी
  • भारतीय तिरंगा शान से लहराया गया

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। देश इस बार आजादी की 75वीं वर्षगांठ पर आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है। देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अपील पर सोशल मीडिया पर सभी अपनी प्रोफाइल पिक्चर बदल कर तिरंगा लगा रहे हैं। जिसकी शुरूआत पीएम मोदी ने खुद ट्विटर पर अपनी डीपी चेंज कर तिरंगा लगाकर की। यहां तक कि सभी सरकारी ऑफिस, अधिकारियों व कर्मचारियों को भी ऐसा करने के लिए कहा गया है। देश में इस बार आजादी को एक उत्सव के रूप में मनाया जा रहा है। जिसको लेकर 13-15 अगस्त तक हर घर तिरंगा की मुहिम चलाई जा रही है।

इस अभियान के तहत ये लक्ष्य रखा गया है कि देश का हर नागरिक अपने घर पर तिरंगा झंडा लगाए ताकि 15 अगस्त के दिन देश तिरंगामय रहे। इसके पीछे बड़ा कारण है, जिसे हम और आप अच्छी तरह जानते है कि सैकड़ों सालों की अंग्रेजी हुकूमत को देश के वीर बलिदानियों की बदौलत उखाड़ फेंका गया और 15 अगस्त 1947 को भारत ने स्वतंत्रता की सांस ली थी। आजादी के इस पर्व पर हम बात करेंगे देश के ऐसे जिलों की जहां पर आजादी 15 अगस्त 1947 से पहले पहुंच गई थी। 

बलिया में पहले ही पहुंच गई थी आजादी

उत्तर प्रदेश के बलिया जिले की पहचान 1857 की क्रांति का बिगुल फूंकने वाले देश के वीर सपूत मंगल पांडे से है। मंगल पांडे का जन्म बलिया के नगवा गांव में हुआ था। बलिया ऐसे महापुरूष की धरती है जिसने अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिए थे। गंगा व घाघरा के दोआब में बसा बलिया अपने बगावती सुर व तेवरों के लिए जाना जाता है। बलिया को ऋषि-मुनियों से लेकर क्रांतिकारियों ने हमेशा आगे रखा। अंग्रेजों के खिलाफ अपने विद्रोही तेवरों की वजह से बलिया को बागी बलिया के नाम से जाना जाता है। अगर बात करे तो बलिया ने ही स्वतंत्रता की पहली करवट ली और पहली सुबह भी देखी। भारत अंग्रेजों की गुलामी से 15 अगस्त 1947 को आजाद हुआ। लेकिन बलिया ने अपने दम पर 1942 को ही स्वतंत्रता की सांस ली थी।

गौरतलब है कि गांधी जी ने 1942 को अंग्रेजों के खिलाफ एक बड़ा मुहिम छेड़ा और उस समय देशवासियों के सामने एक नारा दिया करो या मरो। बलिया के लोगों ने इस प्रण को पूरा करने में पूरी ताकत लगा दी और दो हफ्तों के अंदर बलिया को अंग्रेजी से आजाद करा लिया। इस तरह भारत में सबसे पहले 19 अगस्त 1942 को बलिया आजाद हो गया। उधर गांधी के आवाहृन पर पूरे देशभर में अंग्रजों भारत छोड़ों का नारा गूंज रहा था। अंग्रेजों ने गांधी-नेहरू कई क्रांतिकारी नेताओं को गिरफ्तार कर लिया। इसकी जैसी ही खबर बलिया वासियों को मिली। बलिया का बागी खून उबाल मारने लगा।

10 अगस्त को पूरे शहर में हड़ताल का ऐलान हो गया। आजादी की मांग को लेकर छात्र स्कूल छोड़कर इस आंदोलन पर अड़ गए। व्यापारियों ने भी दुकानें बंद कर हड़ताल शुरू कर दिए। बगिला का बागी खून उबाल मारने लगा, इसका अंदाजा अंग्रेजों को भी नहीं था। 10 अगस्त के जुलूस ने तो अंग्रेजों के होश उड़ा दिए। यहां तक कलेक्टर जगदेश्वर निगम ने अंग्रेजी हुकूमत के लिखकर दे दिया कि बलिया को आजाद करना ही एक मात्र विकल्प बचा है।

इससे साफ अंदाजा लगाया जा सकता है कि बलिया की बगावती तेवर कितने आक्रामक रहे होंगे। बलिया वालों में एक जुनून था कि ब्रिटिश हुकूमत को उखाड़ फेकेंगे। 19 अगस्त 1942 को करीब 25 लोग मुख्यालय की तरफ बढ़े और जेल में बंद चित्तू पांडेय की रिहाई की मांग करने लगे। उग्र लोगों के सामने तत्कालीन कलेक्टर का प्रशासन पर नियंत्रण नहीं रह गया और उसने हार मानकर जेल के दरवाजे खोलने पड़े और वह चित्तू पांडेय से यह कहने को मजबूर हुआ कि पंडित जी अब आप ही इस भीड़ को संभालें और शांति व्यवस्था कायम रखने की जिम्मेदारी लें। इस तरह चित्तू पांडेय ने बलिया की बागडोर संभाली और तीन दिनों के लिए बलिया स्वतंत्र हो गया। हनुमान गंज इलाके में 24 घंटे के लिए ही सही, लेकिन भारतीय तिरंगा शान से लहराया गया।  हालांकि बाद में प्रशासन ने क्रांति को चरम पर पहुंचने से रोक लिया और फिर से बलिया की बागडोर अपने हाथों में ले ली।

1857 की क्रांति में सुल्तानपुर इतने दिन तक आजाद रहा

गौरलतब है कि देश की आजादी के लिए सन् 1857 में मेरठ से भारत माता के वीर सपूत मंगल पांडे ने क्रांति की बिगुल फूंक दिया था और इसकी चिंगारी सुल्तानपुर में फैल गई। देश की आजादी के मतवाले लोगों ने जंग फूंक दिया और देखते ही देखते शहर से सटे सटे अमहट स्थित पुलिस लाइन में भी हिन्दुस्तानी सिपाहियों का विद्रोह शुरू हो गया। विद्रोह इतनी तेज हो गया कि उसे संभाल पाना अंग्रेजों के लिए मुश्किल था।

इस विद्रोह में ब्रिटिश फौज का मुखिया कर्नल फिश, अफसर दोयम, कैप्टन गिविंग्स समेत कई अंग्रेजों को हमारे सिपाहियों ने मौत के घाट उतार दिया और जिले को आजाद करवा दिया। इस तरह 9 जून 1857 को सुल्तानपुर जिले पर देश के जाबांजों ने तिरंगा फहरा दिया। इस तरह से सुल्तानपुर सवा साल तक आजाद रहा। हालांकि बाद में अक्टूबर 1858 आते-आते सुल्तानपुर पर ब्रिटिश सरकार ने फिर से कब्जा जमा लिया।

नंदीग्राम 1947 से पहले ही आजाद हो गया था

नंदीग्राम एक गांव ही नहीं बल्कि आने वाले समय में बंगाल की राजनीति में बदलाव का प्रतीक भी माना जाता है। पं. बंगाल के इतिहास में इसका अपना महत्वपूर्ण स्थान है। स्वतंत्रता के पहले ही नंदीग्राम ने अपने बगावती सुर से अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिए थे। नंदीग्राम को अंग्रेजों से दो बार आजादी मिली थी। 1947 में देश की स्वतंत्रता से पहले अजय मुखर्जी, सुशील कुमार धारा, सतीश चंद्र सामंत और उनके मित्रों ने नंदीग्राम के निवासियों की मदद से अंग्रेजों से इसे मुक्त लिया था और ब्रिटिश शासन से इस क्षेत्र को मुक्त करा लिया था। 

हिसार इतने दिनों तक रहा आजाद

भारत को आजादी 15 अगस्त 1947 को मिली थी लेकिन हरियाणा के हिसार जिले को इससे पहले ही आजादी मिल गई थी। महज 73 दिनों के लिए ही सही लेकिन हिसार ने स्वतंत्रता का स्वाद चख कर ही माना था। 29 मई 1857 को क्रांतिकारियों ने डिप्टी कलेक्टर वेडरबर्न समेत कई अंग्रेजों की हत्या कर दी और फिर नागोरी गेट पर आजादी का झंडा लहराया। इस हार के बाद बौखलाई अंग्रेजी हुकूमत ने बीकानेर से फौज बुलाकर फिर से शहर पर कब्जे के लिए लोगों पर हमला बोल दिया।

हालांकि, हिसार और आस-पास के लोगों ने अंग्रेजों को मुंहतोड़ जवाब दिया और कड़ी टक्कर दी। बाद में फिर 19 अगस्त 1857 को हिसार पर अंग्रेजी हुकूमत का दोबारा कब्जा हो गया। बगावत के रंग और भी इसलिए चढ़ा क्योंकि इसमें सरकारी कर्मचारी भी शामिल हो गए। उनकी सक्रिय भूमिका की वजह से ही हिसार ने 73 दिनों तक आजादी की सांस ली। आगे चलकर अंग्रेजी हुकूमत ने इस विद्रोह के आरोप में सात कर्मचारियों को फांसी पर लटका दिया।

Created On :   13 Aug 2022 4:11 PM IST

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