के सिवन का NASA को जवाब, बोले- हमने पहले ही ढूंढ लिया था 'विक्रम लैंडर'
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। इंडियन स्पेस ऑफ रिसर्च ऑर्गनाइजेशन (ISRO) के चीफ के सिवन ने अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी "नासा" को जवाब दिया है। के सिवन ने मंगलवार को बताया कि हमारा ऑर्बिटर, विक्रम लैंडर को पहले ही ढूंढ चुका था। उन्होंने कहा कि "हमने पहले ही इसकी जानकारी हमारी वेबसाइट पर दे दी थी, आप उसमें वापस जाकर देख सकते हैं।" गौरतलब है कि सोमवार को नासा ने ट्वीट करते हुए चंद्रयान-2 के विक्रम लैंडर के मलबे की फोटो जारी कर उसे ढूंढने का श्रेय अपनी "मून मिशन" की टीम को दिया था।
Indian Space Research Organisation (ISRO) Chief K Sivan on NASA finding Vikram Lander: Our own orbiter had located Vikram Lander, we had already declared that on our website, you can go back and see. (3.12.19) pic.twitter.com/zzyQWCDUIm
— ANI (@ANI) December 4, 2019
सोमवार को नासा को विक्रम लैंडर का मलबा चांद की सतह पर तय लैंडिंग साइट से 750 मीटर दूर मिला था। नासा ने अपने लूनर टोही यान कैमरा से इसकी क्लिक की गई तस्वीरों को शेयर किया था। फोटो में चंद्रमा पर साइट के परिवर्तन और उसके पहले व बाद के प्रभाव बिंदु को दिखाया गया है। तस्वीरों में नीले और हरे रंग के डॉट्स दुर्घटना से जुड़े हुए मलबे को दर्शाते हैं।
The #Chandrayaan2 Vikram lander has been found by our @NASAMoon mission, the Lunar Reconnaissance Orbiter. See the first mosaic of the impact site https://t.co/GA3JspCNuh pic.twitter.com/jaW5a63sAf
— NASA (@NASA) December 2, 2019
बता दें कि चंद्रयान-2 को 22 जुलाई को दोपहर 2.43 बजे श्रीहरिकोटा (आंध्रप्रदेश) के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से लॉन्च किया गया था। प्रक्षेपण के 17 मिनट बाद ही यान सफलतापूर्वक पृथ्वी की कक्षा में पहुंच गया था। 2 सितंबर को दोपहर 01 बजकर 15 मिनट पर चंद्रयान-2 के ऑर्बिटर को लैंडर "विक्रम" से अलग किया गया था। लैंडर और रोवर को 7 सितंबर को चंद्रमा की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग करनी थी।
चंद्रमा की सतह से 2.1 किलोमीटर की ऊंचाई तक विक्रम सामान्य तरीके से नीचे उतरा। इसके बाद लैंडर का धरती से संपर्क टूट गया। हालांकि चंद्रयान का मुख्य अंतरिक्ष यान "ऑर्बिटर" अभी भी चंद्रमा की कक्षा में है और वह कम से कम 7 वर्ष तक चंद्रमा के चारों ओर चक्कर लगाना जारी रखेगा। ऑर्बिटर में लगे आठ पेलोड 100 किलोमीटर की दूरी से अलग-अलग डाटा इकट्ठा करेंगे।
Created On :   4 Dec 2019 5:07 AM GMT