इस नेशनल पार्क में साल दर साल घटी बाघों की संख्या, कभी 38 थे...अब एक भी नहीं

Jharkhand: There is not even a tiger in the Palamu Swaagh Sanctuary
इस नेशनल पार्क में साल दर साल घटी बाघों की संख्या, कभी 38 थे...अब एक भी नहीं
इस नेशनल पार्क में साल दर साल घटी बाघों की संख्या, कभी 38 थे...अब एक भी नहीं
हाईलाइट
  • 2014 में बचे थे मात्र तीन बाघ
  • टाइगर रिजर्व है व्याघ्र अभ्यारण्य

रांची, (आईएएनएस)। जंगल के लिए प्रसिद्ध झारखंड राज्य में बाघों के संवर्धन और विकास के लिए समर्पित एकमात्र पलामू व्याघ्र अभयारण्य में एक भी बाघ नहीं है। बाघों की जारी सूची में झारखंड में पांच बाघ जरूर बताए गए हैं, लेकिन पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र रहे पलामू व्याघ्र अभयाण्य में एक भी बाघ नहीं बताए गए हैं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को दिल्ली में भारत में बाघों की स्थित 2018 की रिपोर्ट जारी की थी, जिसमें झारखंड के पलामू व्याघ्र अभयारण्य में बाघों की संख्या शून्य बताई गई है। पलामू वन विभाग के एक अधिकारी ने नाम न प्रकाशित करने की शर्त पर बताया, यह कोई बड़ी बात नहीं है। यहां बाघों के संवर्धन के नाम पर खर्च तो किए जाते हैं, परंतु आंकड़े ने सबकुछ साफ कर दिया है। यहां आने वाले पर्यटकों को भी बहुत दिनों से बाघ के दर्शन नहीं हुए हैं।

पलामू के बेतला राष्ट्रीय उद्यान में वर्ष 1974 में पलामू व्याघ्र अभयारण्य की शुरुआत की गई थी। सरकारी आंकड़ों पर गौर करें तो वर्ष 2005 में पलामू अभयारण्य में कुल 38 बाघ थे, और 2006 में यहां 17 बाघ रह गए थे। बाघों की संख्या यहां दिन प्रतिदिन कम होती गई। वर्ष 2008 और 2010 में यहां छह बाघ बचे, जबकि 2014 में यहां मात्र तीन बाघ थे, और 2018 में यह संख्या शून्य हो गई।

झारखंड वन्य जीव बोर्ड के सदस्य और जाने माने वन्य जीव विशेषज्ञ डॉ. डी. एस. श्रीवास्त्व ने मंगलवार को आईएएनएस से कहा, बाघों की कमी का सबसे बड़ा कारण नक्सलवाद है। नक्सल प्रभावित क्षेत्र होने के कारण नक्सलियों की आवाजाही और पुलिस के साथ नक्सलियों की मुठभेड़ के कारण बाघ पलामू छोड़कर पास के अन्य क्षेत्रों में निकल जाते हैं।

उन्होंने कहा कि बाघ इस क्षेत्र में आते हैं, परंतु खुद को महफूज नहीं पाते। श्रीवास्त्व कहते हैं, पलामू की आबोहवा बाघ के लिए पूरी तरह अनुकूल है। यहां वर्षों से बाघ पाए जाते हैं। जब पलामू व्याघ्र अभयारण्य की शुरुआत हुई थी तब भी यहां 22 बाघ थे। उन्होंने स्पष्ट कहा, जंगली क्षेत्र में लोगों की बढ़ती घुसपैठ से स्थिति बिगड़ी है। ऊपर से एंटी नक्सल अभियान के चलते बाघों ने अन्य क्षेत्रों का रुख कर लिया।

राज्य के प्रमुख वन संरक्षक पीके वर्मा भी मानते हैं कि यहां के बाघ अन्य जंगलों में चले जाते हैं और कुछ दिनों बाद फिर लौट आते हैं। उन्होंने कहा, बाघ की 87 प्रतिशत गणना प्रत्यक्ष (कैमरा फूटेज) और 13 प्रतिशत अप्रत्यक्ष (मल-मूत्र, पदचिह्न्, शिकार) के आधार पर की गई है। पलामू व्याघ्र अभयारण्य में हो सकता है कि साक्ष्य नहीं मिले हों, लेकिन अप्रत्यक्ष साक्ष्यों के आधार पर आज भी पलामू में पांच बाघ हैं।

 

 

 

 

 

 

 

Created On :   30 July 2019 4:00 PM IST

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