Rafale Deal: चीन से सीमा विवाद के बीच 29 जुलाई को वायुसेना में शामिल हो सकते हैं पांच राफेल, अंबाला एयरबेस पर तैनात होंगे 5 विमान
- 58 हजार करोड़ रुपए की राफेल डील
- फाइनल इंडक्शन सेरेमनी 20 अगस्त को होगा
- लद्दाख में तैनात होंगे राफेल
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। चीन से पूर्वी लद्दाख में एलएसी पर चल रहे सीमा विवाद के बीच भारत को राफेल फाइटर जेट की पहली खेप जल्द ही मिलने वाली है। वायुसेना ने सोमवार को एक आधिकारिक बयान में बताया कि वायुसेना ने कहा कि राफेल विमानों को अंबाला वायुसेना स्टेशन में 29 जुलाई को शामिल किए जाने की संभावना है। इन विमानों को शामिल किए जाने से संबंधित फाइनल इंडक्शन सेरेमनी 20 अगस्त को होगा। न्यूज एजेंसी एएनआई ने सूत्रों के हवाले से बताया कि इन राफेल की तैनाती लद्दाख सेक्टर में संभव है। वायुसेना चीन के साथ बढ़ते हुए तनाव को देखते हुए लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (LAC) के पास अपनी क्षमताएं बढ़ाना चाहती है।
भारतीय वायुसेना ने कहा कि वायुसेना के हवाई चालक दल और जमीनी चालक दल के सदस्यों ने अत्याधुनिक अस्त्र प्रणालियों सहित विमान से संबंधित समग्र प्रशिक्षण हासिल किया है। अब ये पूरी तरह परिचालित हैं। विमानों के पहुंचने के बाद के प्रयास विमान को जल्द से जल्द अभियानगत रूप से परिचालित करने पर केंद्रित होंगे।
एयर फोर्स अधिकारियों ने ली है गहन ट्रेनिंग
इंडियन एयर फोर्स ने कहा है कि भारतीय वायुसेना के ऑफिसर्स ने राफेल की तकनीकी पेचीदगियों को समझने के लिए इसकी व्यापक ट्रेनिंग ली है। एयरफोर्स के अधिकारियों ने इस फाइटर विमान की उच्च मारक क्षमता का गहराई से अध्ययन किया है और अब वे इस पर काम करने के लिए पूरी तरह से तैयार हैं। वायुसेना के मुताबिक राफेल के आते ही कोशिश की जाएगी कि विमान को जल्द से जल्द ऑपरेशन लेवल तक ले लाया जाए, यानि कि इस विमान का अलग-अलग उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल किया जाए।
पोटेंट मेट्योर और स्कैल्प मिसाइल प्रणाली से लैस
राफेल लड़ाकू विमान मेटेओर, स्कैल्प और मिका जैसे विजुअल रेंज मिसाइलों से सुसज्जित होगा, जोकि दूर से ही अपने लक्ष्य को भेद सकती हैं। ये भारतीय वायुसेना की मारक क्षमता में व्यापक इजाफा करेंगे। मेट्योर सिस्टम दुश्मन को हवा से हवा में ही मार गिराने की तकनीक है, जबकि स्कैल्प लंबी दूरी का क्रूज मिसाइल है। इसे इस विमान से ही लॉन्च किया जा सकता है ये मिसाइल दुश्मन के स्थिर और गतिशील लक्ष्यों को अंदर तक जाकर भेद सकता है।
भारत की जरूरतों के मुताबिक किए गए बदलाव
राफेल लड़ाकू विमान में भारत की जरूरतों के मुताबिक कई और बदलाव और संवर्धन किए गए हैं. इन खासियतों पर एयर फोर्स के ऑफिसरों को विशेष रूप से ट्रेनिंग दी गई है। उन्हें न सिर्फ इसकी ऑपरेशनल जानकारी दी गई है, बल्कि रख-रखाव और मरम्मत के बारे में भी बताया गया है।
58 हजार करोड़ रुपए की राफेल डील
भारतीय वायुसेना ने एक अलग बयान में कहा कि बल के शीर्ष कमांडर बुधवार से शुरू हो रहे तीन दिवसीय सम्मेलन में मौजूदा अभियान परिदृश्य और तैनाती का जायजा लेंगे। वायुसेना ने कहा कि अगले दशक में भारतीय वायुसेना की अभियानगत क्षमता में वृद्धि करने के लिए कार्ययोजना पर भी चर्चा की जाएगी। अधिकारियों ने कहा कि राफेल विमानों के आने के बाद वायुसेना की लड़ाकू क्षमताओं में और वृद्धि होगी। भारत ने लगभग 58 हजार करोड़ रुपए में 36 राफेल लड़ाकू विमान खरीदने के लिए सितंबर 2016 में फ्रांस के साथ एक अंतर-सरकारी समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। इन 36 राफेल विमानों में से 30 लड़ाकू विमान और छह प्रशिक्षण देने वाले विमान होंगे।
भारत और चीन की वायु सेना की ताकत
भारत-चीन की वायु शक्ति की बात करें तो, पश्चिमी कमांड में, चीन की पीएलए वायुसेना ने 157 लड़ाकू विमान और 20 जीजे-1 डब्ल्यूडी-1के को तैनात किया है। चीन दावा करता है कि इसके घर में बने जे-10सी और जे-16 लड़ाकू विमान, रूस में बने मिग-29, सु-30एस और फ्रांस में बने मिराज 2000 जेट से ज्यादा उन्नत हैं। चीन का यह भी दावा है कि जे-20 लड़ाकू विमान के पास भारतीय लड़ाकू विमान के मुकाबले पीढ़ीगत लाभ है और इस गैप को किसी भी तरह भरपाना मुश्किल है। वहीं दूसरी ओर भारत दावा करता है कि मिराज 2000 और सुखोई 30 चीन के जे10, जे11 और सु-27 विमानों से अधिक ताकतवर हैं।
Created On :   21 July 2020 1:45 AM IST