ज्ञानवापी मंदिर में स्थित शिवलिंग की उम्र पता करने के लिए कार्बन डेटिंग टेस्ट की मांग, जानिए क्या होता है ये टेस्ट और क्यों होता रहा है टेस्ट के नतीजों पर विवाद
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- समय चक्र का पता लगाने में कार्बन डेटिंग टेस्ट का उपयोग किया जाता है
डिजिटल डेस्क, वाराणसी। ज्ञानवापी मामले पर अदालत ने अपना फैसला सुना दिया है। अदालत ने शिवलिंग की कार्बन डेटिंग कराने की इजाजत देने से इंकार कर दिया है।
मुस्लिम पक्ष की मांग की खारिज
हिंदु पक्ष के अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन ने बताया कि अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद कमेटी की ओर से कोर्ट में प्रार्थना पत्र दाखिल किया गया था। जिसमें कहा गया था कि मामले की सुनवाई 8 हफ्ते आगे बढ़ा दी जाए। इसका कारण कमेटी ने सुप्रीम कोर्ट का वो ऑर्डर बताया था जिसमें कोर्ट ने कहा था कि श्रृंगार गौरी केस में जिला जज के आदेश से कोई पक्ष असहमत होता है तो वह उसके खिलाफ उच्च अदालत में जा सकता है। उसे इसके लिए समय मिलना चाहिए। उनकी इस मांग को कोर्ट ने यह कहते हुए खारिज कर दिया कि 20 मई को दिया गया सुप्रीम कोर्ट के ऑर्डर में ट्रायल में स्टे की बात नहीं की गई है।
उधर श्रृंगार गौरी मामले में पार्टी बनने के लिए 16 लोगों ने प्रार्थना पत्र दाखिल किए थे। जिन 16 लोगों ने प्रार्थना पत्र दाखिल किए थे उसमें से कोर्ट में केवल 9 लोग ही उपस्थित थे। इन 9 में से एक प्रार्थनापत्र वापस हो जाने के बाद बचे 8 लोगों से कोर्ट ने कहा है कि वह अपने सबूत और तथ्य प्रस्तुत करें। पक्षकार बनने के लिए आए सभी प्रार्थना पत्रों पर कोर्ट ने 29 सितंबर को सुनवाई की। पार्टी बनने वाली बात पर वादिनी महिलाओं ने कोर्ट में अपनी आपत्ति दर्ज कराई और कहा कि हमारी सहमति से ही कोई इस केस में पार्टी बन सकता है। हम अकेले ही केस लड़ने में सक्षम हैं। अब एक बार फिर सभी पक्षकार अदालत के फैसले का इंतजार कर रहे हैं।
जानिए क्या होता है कार्बन डेटिंग टेस्ट
ज्ञानवापी मामले में हिंदु पक्ष की ओर से सर्वेक्षण में मिले शिवलिंग का कार्बन डेटिंग टेस्ट कराने की मांग की गई है। जिस पर अदालत 29 सितंबर को होने वाली सुनवाई में फैसला सुनाएगी। आइए जानते हैं क्या है ये कार्बन डेटिंग टेस्ट और ज्ञानवापी मामले में ये कैसी उपयोगी साबित हो सकती है।
कार्बन डेटिंग विधि - पुरातत्व में जंतुओं एवं पौधों के प्राप्त अवशेषों के आधार पर जीवनकाल और समय चक्र का पता लगाने में कार्बन डेटिंग टेस्ट का उपयोग किया जाता है। इस टेस्ट की सहायता से वैज्ञानिक लकड़ी, चारकोल, बीज, पत्थर और मिट्टी से भी उसकी बेहद करीबी वास्तविक आयु का पता लगा सकते हैं। दरअसल ऐसी वो हर चीज जिसके कार्बनिक अवशेष हों इस टेस्ट के जरिए उसकी उम्र का पता लगाया जा सकता है।
इस विधी में कार्बन-12 और कार्बन 14 के बीच का अनुपात निकाला जाता है। कार्बन-14 कार्बन का रेडियोधर्मी आइसोटोप है, इसका अर्धआयुकाल 5730 साल का होता है। इस टेक्नीक को रेडियोएक्टिव पदार्थों की उम्र को समझने और तय करने में भी प्रयोग में लाया जाता है। इस विधी की सहायता से आयु का सही पता लगता है जिससे ऐतिहासिक और वैज्ञानिक तथ्यों की जानकारी प्राप्त करने में सहायता मिलती है।
टेस्ट पर सवाल क्यों?
तमाम वजहों से ये विधी विवादों में भी रही है। आजतक की रिपोर्ट के अनुसार वैज्ञानिकों के मुताबिक रेडियो कॉर्बन जितनी तेजी से खत्म होता है, उससे करीब 28 प्रतिशत तेजी के साथ ये बनता भी जाता है। जिसकी वजह से रेडियो कार्बन का बैलेंस गड़बड़ा जाता है। ऐसे वैज्ञानिकों का मत है कि सभी अपनी मृत्यु के बाद भी कार्बन को एब्जॉर्ब करना जारी रखते हैं जबकि अस्थिर रेडियोएक्टिव तत्व धीरे धीरे खत्म होते जाते हैं। यही वजह है कि कार्बन डेटिंग टेस्ट से भी कई बार सही समय का पता नहीं चल पाता।
बता दें कि इस टेस्ट का अविष्कार शिकागो यूनिवर्सिटी में 1949 में हुआ था। यहां पढ़ने वाले विलियर्ड लिबी और उनके साथियों ने इसका अविष्कार किया था। उन्हें अपने इस कार्य के लिए 1960 में नोबेल पुरुस्कार से भी सम्मानित किया था। लिबी और उनके साथियों ने इस टेस्ट के माध्यम से एक लकड़ी की आयु पता की थी।
Created On :   22 Sept 2022 7:24 PM IST