असम में मुठभेड़ में मौतों के खिलाफ जनहित याचिका पर सुनवाई करेगा
- वरिष्ठ वकील ने एनएचआरसी में भी शिकायत दर्ज कराई थी
डिजिटल डेस्क, गुवाहाटी। गुवाहाटी उच्च न्यायालय बुधवार को वरिष्ठ वकील आरिफ जवादर द्वारा दायर एक जनहित याचिका (पीआईएल) पर सुनवाई के लिए सहमत हो गया, जिसमें दावा किया गया है कि असम में मई से अब तक 80 से अधिक पुलिस मुठभेड़ हुई, जिसमें 28 लोग मारे गए और अन्य 48 लोग घायल हो गए। वरिष्ठ वकील ने पहले राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) में इसी तरह की शिकायत दर्ज कराई थी। उन्होंने अपनी जनहित याचिका में सीबीआई जांच या अदालत की निगरानी में जांच के लिए विशेष जांच दल (एसआईटी) के गठन की मांग की, जिसमें दूसरे राज्य के पुलिस अधिकारी शामिल हों।
जवादर ने बुधवार को मीडिया से कहा, मुठभेड़ के समय सभी पीड़ित निहत्थे और हथकड़ी पहने हुए थे। जो लोग मारे गए या घायल हुए हैं, वे खूंखार अपराधी नहीं थे। यह याचिका कानून के शासन के उल्लंघन और कानूनों के संरक्षण के मुद्दे को उठाती है। पुलिसकर्मियों के पास किसी को जान से मारने का लाइसेंस नहीं है, सीआरपीसी का मकसद अपराधियों को पकड़ना और उन्हें न्याय के कटघरे में लाना है, जान से मारना नहीं। जनहित याचिका में कहा गया है कि इस तरह की मुठभेड़ में हत्याएं पीड़ितों को व्यक्तिगत स्वतंत्रता और जीवन के अधिकार से वंचित करती हैं।
मुठभेड़ हत्याओं के रूप में जाने जाने वाले को सक्षम करने वाला कोई कानून नहीं है और असम पुलिस किसी भी अन्य व्यक्तियों की तरह सीआरपीसी के प्रावधानों से बंधी हुई है। अपराधियों को पकड़ने और उन्हें न्याय दिलाने में विफलता पूरे देश की विफलता है। राज्य में पुलिस व्यवस्था की इस न्यायालय द्वारा जांच की आवश्यकता है। जवादर ने कहा कि एनएचआरसी ने पहले उनकी शिकायत का संज्ञान लिया और असम पुलिस से कार्रवाई रिपोर्ट (एटीआर) मांगी।
जनहित याचिका में कहा गया है कि सभी घायल या मारे गए लोग उग्रवादी नहीं थे और इसलिए उन्हें हथियारों का इस्तेमाल करने के लिए प्रशिक्षित नहीं किया गया था और यह बहुत कम संभावना है कि वे सर्विस रिवॉल्वर का इस्तेमाल पुलिस बल से छीनने के बाद कर सकते हैं, जो उनसे अधिक संख्या में थे और भारी हथियारों से लैस थे।
जवादर ने कहा, ऐसा नहीं हो सकता कि सभी कथित आरोपी एक प्रशिक्षित पुलिस अधिकारी से सर्विस रिवॉल्वर छीन सकते हैं, जिसकी पिस्तौल आमतौर पर उस अधिकारी की कमर की बेल्ट से बंधी होती है। इन मुठभेड़ों में शामिल व्यक्तिगत पुलिसकर्मियों के खिलाफ मामले दर्ज हो। जब से (10 मई को) हिमंत बिस्वा सरमा मुख्यमंत्री बने, उन्होंने अपराध और अपराधियों के प्रति शून्य सहिष्णुता नीति पर जोर दिया, जिससे पुलिस को कानून के दायरे में पूर्ण परिचालन की स्वतंत्रता मिली। कांग्रेस सहित सभी विपक्षी राजनीतिक दलों ने मुठभेड़ों के माध्यम से लोगों को मारने और घायल करने की भाजपा सरकार की नीति की आलोचना की।
(आईएएनएस)
Created On :   23 Dec 2021 12:30 AM IST