धनबाद के पास भू-धंसान की घटनाओं से हावड़ा-नई दिल्ली ग्रैंड कॉर्ड रेलवे लाइन पर बढ़ा खतरा
- अगर सही ढंग से इसकी भराई नहीं कराई गई तो कभी भी बड़ा हादसा हो सकता है।
डिजिटल डेस्क, धनबाद। धनबाद जिले के थापरनगर रेलवे स्टेशन के पास मंगलवार सुबह तेज आवाज के साथ हुए भू-धंसान की एक बड़ी घटना से गया-हावड़ा और हावड़ा-नई दिल्ली ग्रैंड कॉर्ड रेलवे लाइन के लिए खतरा पैदा हो गया है। भू-धंसान स्थल इन दोनों रेलवे लाइन के बेहद करीब है।
बताया गया कि मैथन पावर लिमिटेड को जोड़ने वाले रेलवे ट्रैक के नीचे की जमीन तेज आवाज के साथ धंस गयी। इससे ट्रैक के नीचे लगभग 20 फीट के दायरे में 10 से 15 फीट गहरा गड्ढा बन गया। इस स्थल से भूधंसान स्थल से गया-हावड़ा ग्रैंड कॉर्ड लाइन की दूरी मात्र 35 मीटर है। अगर भू-धंसान का दायरा बढ़ता है तो हावड़ा-नई दिल्ली ग्रैंड कॉर्ड लाइन भी बाधित हो सकती है। इस रूट से होकर हर दिन दर्जनों गाड़ियां गुजरती हैं।
इससे पहले बीते 16 अगस्त को श्यामपुर बस्ती से थापरनगर रेलवे स्टेशन जाने वाले मार्ग में लगभग डेढ़ सौ फीट के दायरे में दरारें पड़ गई थीं और वहीं मुख्य मार्ग लगभग तीन फीट नीचे धंस गया था। इलाके में भू-धंसान की ऐसी घटनाएं लगातार हो रही हैं। पिछले साल 27 अगस्त मैथन पावर लिमिटेड को जाने वाली रेलवे लाइन के आसपास लगभग 100 फीट के दायरे में जमीन धंस गई थी। इस हादसे में रेलवे लाइन के केबिन बॉक्स एवं रेलवे ट्रैक जमींदोज हो गया था। उस वक्त रेलवे, मैथन पावर लिमिटेड , डायरेक्टर जेनरल माइंस सेफ्टी और इस्टर्न कोलफील्ड लिमिटेड की टीमों ने भू-धंसान स्थल का निरीक्षण किया था। भूधंसान वाले इलाके में तात्कालिक तौर पर मिट्टी और फ्लाई ऐश की भराई कराई गई थी। जून 2020 में भी हावड़ा-दिल्ली ग्रैंड कॉड रेल लाइन से 30 मीटर दूर मुगमा और थापरनगर रेलवे स्टेशन के बीच श्यामपुर गांव के समीप 60 मीटर के दायरे में भूधंसान हुआ था और रेलवे लाइन जमीन में धंस गई थी।
भूधसांन की घटनाओं से आसपास के गांवों के लोग दहशत में हैं। श्यामपुर बस्ती के लोगों का कहना है कि जब भी भूधसांन होता है, ईसीएल प्रबंधन ऊपर-ऊपर मिट्टी भरवाकर औपचारिकता पूरी कर लेता है। अगर सही ढंग से इसकी भराई नहीं कराई गई तो कभी भी बड़ा हादसा हो सकता है।
दरअसल, इस इलाके में कोयले का बड़ा भंडार है। कोलियरियों के सरकारीकरण से पहले तक इस स्थान पर प्राइवेट कंपनियों ने अवैज्ञानिक और अंधाधुंध तरीके से कोयले का उत्खनन किया था। खदानों के राष्ट्रीयकरण के बाद भी ईसीएल ने यहां कई वर्षों तक कोलियरी का संचालन किया। इसके बाद बंद खदानों में कोयला चोरों द्वारा असुरक्षित तरीके से कोयले की कटाई की गई, जिसके कारण नीचे की जमीन खोखली होती चली गई तथा आए दिन इस स्थान पर भूधंसान की घटनाएं होती रहती हैं।
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Created On :   23 Aug 2022 6:30 PM IST