2014 के बाद से 27 लोकसभा उपचुनाव, बीजेपी सिर्फ 5 ही जीती
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। साल 2014 में नरेंद्र मोदी का जादू इस कदर था कि बीजेपी ने लोकसभा चुनावों में पहली बार 282 सीटों का आंकड़ा छुआ। बीजेपी और नरेंद्र मोदी ने विकास की बात कही और जनता ने इस बात को माना और पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में बैठा दिया। नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने और पूरे देश में "मोदी लहर" का असर देखने को मिला। अकेले उत्तर प्रदेश में बीजेपी 80 में से 71 लोकसभा सीटें जीतने में कामयाब रही, लेकिन 2014 के बाद हुए उपचुनाव के नतीजे मोदी लहर पर मुहर लगाते नहीं दिखते। गुरुवार को 4 लोकसभा सीटों पर हुए उपचुनाव के नतीजे आ गए। जिनमें बीजेपी यूपी की कैराना और महाराष्ट्र की भंडारा-गोंदिया सीट हार गई है। इन दोनों सीटों पर 2014 में पार्टी उम्मीदवारों को जीत हासिल हुई थी। वहीं पालघर सीट पर बीजेपी ने कब्जा बरकरार रखा है, जबकि नागालैंड में बीजेपी के समर्थन वाली एनडीपीपी को जीत हासिल हुई है।
इससे पहले मार्च में हुए उपचुनाव में बीजेपी अपनी गोरखपुर और फूलपुर सीटें गंवा चुकी है। उससे पहले राजस्थान की अलवर और अजमेर सीट पर भी उसे हार का सामना करना पड़ा। ये वो सीटें हैं, जहां बीजेपी 2014 में लाखों मतों से जीती थी। आइए सिलसिलेवार देखते हैं 2014 के बाद से अब तक हुए उपचुनावों में कौन कहां से जीता और बीजेपी को कितना नुकसान हुआ।
2014 में 5 सीटों पर उपचुनाव
2014 के लोकसभा चुनावों के बाद इसी साल 5 लोकसभा सीटों पर उपचुनाव हुए। इनमें सबसे पहले ओड़िशा की कंधमाल लोकसभा सीट के लिए उपचुनाव हुए थे, जिसमें बीजू जनता दल (BJD) ने बीजेपी को हराया था। इसके बाद तेलंगाना के मेढक में उपचुनावों में TRS और उत्तर प्रदेश की मैनपुरी सीट पर हुए उपचुनाव में समाजवादी पार्टी ने बीजेपी को हराया। हालांकि 2014 में ही गुजरात की वडोदरा सीट पर भी उपचुनाव हुए और बीजेपी अपनी सीट बचाने में कामयाब रही। इसके साथ ही महाराष्ट्र के बीड में भी उपचुनाव हुए, जिसमें बीजेपी ने जीत दर्ज की थी।
2015 में बीजेपी को कोई फायदा नहीं
लोकसभा चुनाव के बाद अगली ही साल यानी 2015 में दो लोकसभा सीट पर उपचुनाव हुए। इनमें पहली सीट तेलंगाना की वारंगल सीट थी और दूसरी वेस्ट बंगाल की। इसमें वारंगल में तेलंगाना राष्ट्र समिति (TRS) ने जीत दर्ज की, तो वहीं वेस्ट बंगाल में ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस (TMC) ने उपचुनाव जीता। इस साल बीजेपी कोई फायदा नहीं हुआ। इसके साथ मध्य प्रदेश की रतलाम-झाबुआ लोकसभा सीट पर भी उपचुनाव हुए। 2014 में पहली बार बीजेपी ने यहां से जीत दर्ज की थी। 2014 में कांग्रेस से बीजेपी में आए दिलीप सिंह भूरिया ने कांग्रेस के कांतिलाल भूरिया को 1 लाख से ज्यादा वोटों के अंतर से हराया। जून 2015 में दिलीप सिंह भूरिया के निधन के बाद यहां उपचुनाव हुए और एक बार फिर से कांग्रेस के कांतिलाल भूरिया ने यहां जीत दर्ज की। कांतिलाल भूरिया पहले भी इसी सीट से 4 बार कांग्रेस के टिकट पर जीत चुके थे।
2016 में 5 में से सिर्फ 2 सीट जीती बीजेपी
इसके बाद 2016 में लोकसभा की 5 सीटों के लिए उपचुनाव हुए, जिसमें बीजेपी सिर्फ 2 सीट ही जीत पाई थी। इसमें पहली सीट मध्य प्रदेश की शहडोल लोकसभा और दूसरी असम की लखीमपुर सीट जीतने में बीजेपी कामयाब हुई थी। जबकि वेस्ट बंगाल की दो सीटें तामलूक और कूचबिहार में TMC ने ही कब्जा किया। वहीं मेघालय की तुरा सीट पर NPP ने जीत हासिल की।
2017 में 4 उपचुनाव, बीजेपी को एक भी नहीं
साल 2017 में लोकसभा की 4 सीट पर उपचुनाव हुए थे, जिसमें बीजेपी एक भी सीट नहीं जीत पाई थी। इसमें पंजाब की दो लोकसभा- अमृतसर और गुरुदासपुर में उपचुनाव हुए और दोनों ही जगह कांग्रेस ने जीत हासिल की। इसके साथ ही केरल की मलप्पुरम लोकसभा में भी उपचुनाव हुए, जिसमें IUML ने कब्जा किया। इसके अलावा कश्मीर की श्रीनगर लोकसभा सीट शामिल थी। 2014 के लोकसभा चुनावों में इस सीट से PDP के तारिक हमीद ने चुनाव जीता था, लेकिन बाद में इस्तीफा दे दिया। इस सीट पर 2017 में हुए उपचुनाव में नेशनल कॉन्फ्रेंस के फारूक अब्दुल्ला की जीत हुई थी।
2018 में 10 उपचुनाव, महज 1 पर अपने दम पर जीती बीजेपी
साल 2018 बेहद खास है, क्योंकि अगले ही साल लोकसभा चुनाव होने हैं। हालांकि बीजेपी के लिए ये साल लोकसभा उपचुनावों के लिहाज से बेहद ही खराब रहा। इस साल 10 लोकसभा सीटों पर उपचुनाव हुए और बीजेपी महज एक सीट पालघर ही अपने दम पर जीत पाई। पालघर में बीजेपी के राजेंद्र गावित ने शिवसेना के श्रीनिवास वनगा को 29572 वोटों से हराया। वहीं नागालैंड में बीजेपी के समर्थन वाली एनडीपीपी को जीत हासिल हुई है। इसके अलावा यूपी की कैराना और महाराष्ट्र की भंडारा-गोंदिया सीट बीजेपी ने गंवा दी। कैराना से विपक्ष के समर्थन से मैदान में उतरीं RLD की उम्मीदवार तबस्सुम हसन ने बीजेपी उम्मीदवार मृगांका सिंह को हराया। वहीं भंडारा गोंदिया सीट पर कांग्रेस-एनसीपी के उम्मीदवार मधुकर राव कुकड़े ने बीजेपी के हेमंत पटले को हराया। दोनों ही सीटें 2014 में बीजेपी ने जीती थी। 2018 में सबसे पहले बंगाल की उलुबेरिया सीट पर उपचुनाव हुए, जिसमें TMC ने जीत दर्ज की। इसके बाद राजस्थान की अजमेर और अलवर लोकसभा सीटों पर उपचुनाव हुए और इन दोनों ही सीटों पर कांग्रेस ने कब्जा किया। जबकि 11 मार्च को 3 लोकसभा सीटों के आए उपचुनावों के नतीजों में बिहार की अररिया सीट पर राष्ट्रीय जनता दल (RJD) ने जीत दर्ज की, तो वहीं यूपी की गोरखपुर और फूलपुर में समाजवादी पार्टी ने कब्जा किया।
2019 में दिखेगा असर?
2014 के लोकसभा चुनावों के बाद से बीजेपी भले ही विधानसभा चुनावों में जीतने में कामयाब रही हो, लेकिन लोकसभा उपचुनावों में बीजेपी की हालत बेहद खराब रही। 2014 के बाद से लोकसभा उपचुनावों में मोदी का जादू फीका पड़ गया। इसके साथ ही 2014 के बाद से नरेंद्र मोदी एक भी लोकसभा सीट बढ़ाने में भी नाकामयाब रहे, उल्टा अपनी ही सीटों को गंवा बैठे। उपचुनावों के नतीजों से साफ है कि 2014 में जनता के ऊपर मोदी का जो जादू था, वो अब उतर रहा है और इसका असर 2019 में देखने को जरूर मिलेगा। माना जा रहा है कि 2019 में बीजेपी भले ही सत्ता में लौट आए, लेकिन उसे 2014 के मुकाबले कुछ सीटों का नुकसान जरूर होगा। गोरखपुर, फूलपुर, कैराना, भँडारा-गोंदिया इसका ताजा उदाहरण है। आम चुनावों से एक साल पहले ही अपने गढ़ में हारने से बीजेपी को नुकसान उठाना पड़ेगा।
Created On :   15 March 2018 9:02 AM IST