एक ऐसा राष्ट्रपति, जिसके कार्यकाल में दोषियों के लिए 'दया' को जगह नहीं
- 2019 में उन्हें भारत के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार 'भारत रत्न' से सम्मानित किया गया
- प्रणब मुखर्जी ने भी लगभग 35 दया याचिकाओं को खारिज किया था
- प्रणब मुखर्जी भारत के 13वें राष्ट्रपति थे
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। भारत के सर्वश्रेष्ठ राष्ट्रपतियों में से एक "भारत रत्न" प्रणब मुखर्जी की आज 86वीं जयंती है। एक उत्कृष्ट राजनीतिज्ञ जिसने भारत के विकास में एक महत्वपूर्ण योगदान दिया।
तो आइये आज हम आपको लिए चलते हैं इस महान व्यक्तित्व के जीवन के सफर पर -
कौन थे प्रणब मुखर्जी?
प्रणब मुखर्जी भारत के 13वें राष्ट्रपति थे, जिनका कार्यकाल 25 जुलाई, 2012 से लेकर 25 जुलाई, 2017 तक रहा। भारतीय राजनीति में एक अनुभवी चेहरा, जिसने कई दशकों के लंबे और शानदार राजनीतिक करियर के दौरान अलग-अलग समय पर विदेश, रक्षा, कमर्शियल और वित्त मंत्री जैसे मंत्रालयों को संभाला। वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता थे और 23 वर्षों तक उन्होंने सर्वोच्च नीति बनाने वाली संस्था, कांग्रेस कार्य समिति के सदस्य के रूप में कार्य किया।
11 दिसंबर 1935 को उनका जन्म श्री कामदा किंकर मुखर्जी और राजलक्ष्मी के पुत्र के रूप में हुआ। उनका पिता श्री कामदा किंकर मुखर्जी एक स्वतंत्रता सेनानी थे और वह भी लंबे समय तक भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सदस्य रहे थे।
प्रणब मुखर्जी ने कलकत्ता विश्वविद्यालय से लॉ डिपार्टमेंट से इतिहास और राजनीति विज्ञान साथ-साथ कानून की डिग्री हासिल की। उन्होंने अपने करियर की शुरुआत एक शिक्षक और पत्रकार के रूप में की थी, लेकिन इसके बाद उन्होंने अपने पिता के नक्शेकदम पर चलते हुए राजनीति में कदम रखा।
उन्हें राजनीति में एक बड़ा ब्रेक तब मिला जब प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उन्हें कांग्रेस के टिकट पर राज्यसभा के लिए चुना। इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा और 2012 में उन्होंने भारत के सर्वोच्च पद, भारत के 13वें राष्ट्रपति के रूप में कार्यभार संभाला। देश में उनके योगदान के लिए, 2019 में उन्हें भारत के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार "भारत रत्न" से सम्मानित किया गया।
उत्कृष्ट काम
कांग्रेस सत्ता के दौरान अलग-अलग मंत्रालयों के दायित्व का निर्वाहन करते हुए प्रणब मुखर्जी ने देश हित के लिए कुछ अहम फैसले लिए, जिनमे शामिल है -
भारत के विदेश मंत्री के रूप में अपने दूसरे कार्यकाल के दौरान, प्रणब मुखर्जी ने अमेरिकी सरकार के साथ और फिर परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह के साथ अमेरिका-भारत असैन्य परमाणु समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। इस समझौते ने भारत को परमाणु अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर न करने के बावजूद असैन्य परमाणु व्यापार में भाग लेने की अनुमति दी।
1980 की शुरुआत में वित्त मंत्री के रूप में अपने पहले कार्यकाल के दौरान, उन्हें भारतीय अर्थव्यवस्था के शुरुआती सुधारक होने का श्रेय दिया गया। 2009 में एक बार फिर इस पद को संभालने के बाद उन्होंने 2009, 2010 और 2011 में वार्षिक बजट पेश किया। उन्होंने जवाहरलाल नेहरू राष्ट्रीय शहरी नवीकरण मिशन सहित कई सामाजिक क्षेत्र की योजनाओं के लिए धन का विस्तार भी किया।
दया याचिका के लिए जगह नहीं
राष्ट्रपति के रूप में, प्रणब मुखर्जी ने भी लगभग 35 दया याचिकाओं को खारिज कर दिया था। उनसे पूर्व द्वारा खारिज किए गए संयुक्त कुल से अधिक। जब वह जुलाई 2012 में कार्यालय में आए, तो इनमें से 10 याचिकाएं लंबित थीं।
उन्होंने जिनकी दया याचिका खारिज की थी, उनमे कुछ बड़े नाम थे 26/11, मुंबई हमले में तबाही मचाने वाले आमिर अजमल कसाब, 2001 संसद हमले के अफजल गुरु और निर्भय कांड के दोषी।
किताबे
प्रणब की बेटी शर्मिष्ठा मुखर्जी ने एक इंटरव्यू में कहा था, उनके पिता उनके लिए सिर्फ बहुत सारी किताबे और स्मोकिंग पाइप्स छोड़ कर गए है। आपको शर्मिष्ठा एक प्रशिक्षित कथक डांसर और राजनितज्ञ है।
उन्होंने कहा था कि उनके प्रणब मुखर्जी को पढ़ने-लिखने का बहुत शौक था। वह 18-18 घंटे काम करते थे और दुर्गा पूजा के अलावा कभी छुट्ठी नहीं लेते थे।
प्रणब मुखर्जी ने काफी किताबे लिखी है, जिसमें से कुछ है -
- Beyond Survival: Emerging Dimensions of Indian Economy
- Off the Track: A Few Comments on Current Affairs
- Challenges Before the Nation: Saga of Struggle and Sacrifice (Indian National Congress)
- A Centenary History of the Indian National Congress – Volume V: 1964–1984 (co-authored with Aditya Mukherjee)
- Congress and the Making of the Indian Nation
Created On :   11 Dec 2021 2:33 AM IST