आदित्य एल 1 से संपर्क में बने रहने के लिए लेनी पड़ेगी यूरोपियन एजेंसी की मदद, जानिए किस तरह विदेशी एजेंसी बनती हैं एक दूसरे की मददगार
- आदित्य एल1 की हुई सफल लॉन्चिंग
- भारत के इस मिशन में यूरोपिय स्पेस एजेंसी कर रहा मदद
डिजिटल डेस्क, श्रीहरिकोटा। चंद्रयान-3 की कामयाबी के बाद भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान यानी इसरो ने आदित्य एल1 की सफल लॉन्चिंग कर दी है। यह इसरो का पहला सोलर सौर उर्जा है। इसी के साथ भारत उन चुनिंदा देशों में शामिल हो गया है जो सूर्य के पास सैलेटेलाइट भेज पाए हैं। इसकी लॉन्चिंग आंध्रप्रदेश के श्रीहरिकोटा में स्थित सतीश धवन स्पेस सेंटर से हुई। जिसका समय इसरो ने सुबह 11.50 बजे रखा था। इसरो के इस मिशन में यूरोपियन स्पेस एजेंसी भी दे रही है ताकि भारत अपने मिशन में कामयाब हो जाए।
मिशन के पेलोड्स को भारत के कई संस्थानों ने मिलकर तैयार किया है। मिशन सूर्य में इसरो की मदद यूरोपियन स्पेस एजेंसी यानी (EAS) भी कर रही है। भारत की मदद ईएस गहरे अंतरिक्ष में करने वाली है। जानकारों का मानना है कि, अतंरिक्ष में यान जाने की वजह से सिग्नल की काफी दिक्कतें आती हैं। उन्हीं से निजात पाने के लिए अन्य स्पेस एजेंसियों की मदद लेनी पड़ती है। भारत भी इस काम के लिए यूरोपियन स्पेस एजेंसी की सहायता ले रहा है, जो अंतरिक्ष में इसरो का मिशन आदित्य एल1 की मदद करेगा।
भारत के इस मिशन में यूरोपियन स्पेस एजेंसी का कितना है योगदान?
आदित्य-एल1 को लेकर यूरोपियन स्पेस एजेंसी ने बताया, इस मिशन में ईएएस इसरो को सपोर्ट करेगा। ईएसए आदित्य एल-1 को 35 मीटर डीप स्पेस एंटिना से ग्राउंड सपोर्ट देगा जो यूरोप की कई जगहों पर मौजूद है। इसके अलावा 'कक्षा निर्धारण' सॉफ्टवेयर में भी यूरोपियन स्पेस एजेंसी मदद करेगी। एजेंसी के मुताबिक, इस सॉफ्टवेयर के जरिए अंतरिक्ष यान के वास्तविक स्थिति की सटीक जानकारी मिल सकेगी।
फिलहाल अन्य स्पेस एजेंसी से कहीं ज्यादा यूरोपियन स्पेस एजेंसी आदित्य -एल1 को सपोर्ट कर रही है। ईएसए ने कहा कि वे इस मिशन की लॉचिंग से लेकर मिशन के एल-1 प्वाइंट पर पहुंचने तक सपोर्ट करेगी। जानकारी के मुताबिक, आदित्य एल1 को अगले दो साल तक यूरोपियन स्पेस एजेंसी कमांड भेजने में इसरो की मदद करेगी।
अन्य स्पेस एजेंसियों की क्यों जरूरत?
जब कोई भी यान अंतरिक्ष में जाता है तो उसका सिग्नल कमजोर पड़ने लगती है। ऐसे में कई स्पेस एजेंसी अपने ताकतवर एंटिनाओं की मदद से भेजे गए यान से संपर्क साधती हैं ताकि सिग्नल को लेकर किसी तरह की कोई समस्या न आए। साथ ही धरती की भौगोलिक स्थिति भी सिग्नल रिसीव में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। कई बार ऐसा होता है कि अन्य देश अंतरिक्ष में अपना यान भेजते हैं लेकिन उसका सिग्नल किसी दूसरे देश की सीमा में बेहतर तरीके से काम करती है जो उस मिशन में निर्णायक साबित हो सकती है। इसलिए भी विदेशी एजेंसियों की जरूरत बढ़ जाती है।
Created On :   2 Sept 2023 1:57 PM IST