अमेरिकी सांसदों के ताइवान दौरे से फिर आगबबूला हुआ चीन, बढ़ी युद्ध की आशंका
- चीन ने ताइवान जलसंधि की मीडियन लाइन को पार किया
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। ताइवान और चीन के बीच तकरार बढ़ती जा रही है। इसके साथ ही दोनों के बीच युद्ध की आशंका भी बढ़ती जा रही है। इसका कारण अमेरिकी सांसदों प्रतिनिधिमंडल है जो कि ताइवान दौरे पर आया है। दरअसल, इससे पहले ताइवान दौरे पर आईं अमेरिका स्पीकर नैंसी पेलोसी आईं थीं और उस समय चीन ने उनके दौरे को लेकर घोर आपत्ति जताई थी। इसके साथ ही ड्रेगन ने ताइवान को चेतावनी देते हुए भी कहा था कि दोबारा कोई भी अमेरिकी स्पीकर या सांसद ताइवान दौरे पर न आए।
नैंसी के दौरे से नाराज चीन ने तब ताइवान का सीमा के आसपास मिलिट्री ड्रिल शुरु करके ताइवान को धमकाया था। अब ताइवान की राष्ट्रपति त्साई-इंग-वेन द्वारा चीन की चेतावनी को दरकिनार करते हुए अमेरिकी सांसदों के दल से मुलाकात की है। इससे चीन आगबबूला हो गया है और उसने ताईवान के आसपास अपने 30 से ज्यादा लड़ाकू विमान के जरिए मिलिट्री ड्रिल शुरु कर दी है। ताइवान सरकार ने खुद इस बात की पुष्टि की है कि अमेरिकी सांसदों के दौरे के बाद चीन की गतिविधियां बॉर्डर पर बढ़ गईं हैं।
ताइवान सरकार के मुताबिक, चीन ने ताइवान जलसंधि की मीडियन लाइन को पार किया है। उनका कहना है कि चीन ने आज अपने 30 लड़ाकू विमान और 5 तोपों के साथ बॉर्डर के आसपास मिलिट्री ड्रिल की है।
क्या है दोनों देशों के बीच विवाद की वजह?
ताइवान और चीन के बीच विवाद की शुरुआत द्वितीय विश्व युद्ध के कुछ समय बाद से हुई थी। 1940 में चीन के मेनलैंड में कम्युनिस्ट पार्टी और कुओमितांग के बीच गृहयुद्ध चल रहा था। इस लड़ाई को 1949 में माओ त्से तुंग की लीडरशिप में कम्युनिस्ट पार्टी ने जीत लिया। कुओमितांग पार्टी को हार का सामना करना पड़ा। उसके बचे हुए लोग ताइवान के हिस्से में चले गए। इस द्वीप पर उन्होंने अपनी सरकार बनाकर इसका नाम चीन के पुराने नाम पर रिपब्लिक ऑफ चाइना रख दिया। उधर माओ की कम्यूनिस्ट पार्टी ने चीन का नाम रिपब्लिक ऑफ चाइना पहले ही रख चुकी थी। तब से ही चीन और ताइवान दोनों की ही सरकारें समूचे चीन का राजनीतिक प्रतिनिधित्व करने का दावा करती हैं। इसी कारण दोनों ही के बीच एक दूसरे की जमीन पर दावा करते रहते हैं। और यही इनके बीच विवाद की मुख्य वजह है।
चीन और ताइवान के बीच विवाद की एक और बड़ी वजह चीन की वन चाइना पॉलिसी भी है। यह पॉलिसी चीन ने ताइवान पर हक जताने के उद्देश्य से ही तैयार की थी। इस पॉलिसी के मुताबिक ताइवान भी चीन का हिस्सा ही है। इसको मिलाकर चीन एक ही है। जिसका नेतृत्व चीन की कम्युनिस्ट पार्टी करती है। इस पॉलिसी के अनुसार, अगर कोई अन्य देश ताइवान के साथ राजनयिक संबंध स्थापित करना चाहता है तो उसे वर्तमान में कम्युनिस्ट पार्टी के प्रमुख शी जिंगपिंग के साथ समझौता करना पड़ेगा। साथ ही जो भी देश चीन के साथ राजनयिक संबंध बनाना चाहते हैं उसे ताइवान के साथ अपने संबंध खत्म करने होंगे।
Created On :   15 Aug 2022 6:10 PM IST