बच्चों की सेहत का तालिबान के राज में बुरा हाल, बुरी तरह चरमराई स्वास्थ्य सेवाएं, रोज मर रहे सौ से ज्यादा बच्चे, देखभाल के लिए 60 बच्चों पर सिर्फ दो नर्स
- 60 बच्चों पर केवल 2 नर्स
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। अफगानिस्तान की सत्ता में तालिबान के काबिज होने के बाद देश की स्वास्थ्य सुविधाएं किस तरह से चरमरा गई हैं उसका अंदाजा आप इस बात से लगा सकते है कि यहां रोज 167 बच्चे केवल इलाज न मिलने के चलते अपनी जान गंवा रहे हैं। बीबीसी ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि बच्चों की मौत का ये आंकड़ा सिर्फ आधिकारिक है जमीनी स्तर पर यह इससे ज्यादा भी हो सकता है।
यूनिसेफ के अनुसार जिन गंभीर बीमारियों से बच्चे ग्रस्त हैं उनका इलाज हो सकता है लेकिन स्वास्थ्य सुविधाएं न मिलने के चलते वह अपनी जान गंवा रहे हैं। दरअसल, अफगानिस्तान में पहले से ही स्वास्थ्य सुविधाएं अच्छी नहीं रही हैं लेकिन तालिबान शासन के बाद यहां की हालत और खराब हो गई है। उससे पहले यहां विदेशी फंडिंग के जरिए इलाज की सुविधाएं जुटाई जाती थीं, लेकिन 2021 के बाद से वो बंद हो गया। बीबीसी की रिपोर्ट में बताया कि तालिबानी शासन आने के बाद से अफगानिस्तान में कई बड़े अस्पताल बंद हो चुके हैं।
60 बच्चों पर केवल 2 नर्स
अफगानिस्तान की हेल्थ फैसिलिटीज का अंदाजा आप इससे लगा सकते हैं कि यहां के घोर प्रांत के अस्पतालों में बेड की कमी के चलते एक बेड पर दो बच्चों को भर्ती करना पड़ रहा है। अस्पतालों के कमरे बीमार बच्चों से भरे हुए हैं। वहीं स्टाफ नर्स की कमी के चलते भी बच्चों को सही इलाज नहीं मिल पा रहा है। बीबीसी के मुताबिक यहां 60 बच्चों की देखरेख करने के लिए केवल 2 नर्स हैं।
घोर प्रांत की एक अस्पताल में काम करने वाले डॉक्टर समदी ने बीबीसी को बताया कि अस्पताल में पर्याप्त गैस सिलेंडर भी नहीं हैं। इसके अलावा इलाज के लिए आवाश्यक मशीनों की भी कमी है। डॉक्टर समदी के अनुसार, हमारे पास जरूरी प्रशिक्षित स्टॉफ की भी कमी है, खासकर महिला स्टॉफ की। उन्होंने कहा कि ऐसी हालत में हमारे पास बच्चों को मरते देखने के अलावा कोई रास्ता नहीं है।
बता दें कि सत्ता में आने के बाद तालिबान ने महिलाओं पर अलग-अलग तरह के बैन लगा दिए थे। खासकर एनजीओ में काम करने वाली महिलाओं पर उसने बैन लगा रखा है। जिसके कारण स्टाफ की कमी से जूझते एनजीओ सोशल वर्क के रूप में भी बच्चों की कोई सहायता नहीं कर पा रहे हैं।
इसके अलावा अफगानिस्तान के लिए विदेशी फंडिंग न होना भी यहां की स्वास्थ्य सुविधाओं के लचर होने का कारण है। दरअसल, 2021 को तालिबान के राजधानी काबुल समेत पूरे अफगानिस्तान पर कब्जा करने के पहले पहले करीब दो दशक तक अफगानिस्तान में पब्लिक हेल्थकेयर के लिए अरबों रुपए खर्च किए गए। इनमें से अधिकतर पैसा विदेशी फंडिंग के जरिए आता था। लेकिन 2021 में सत्ता बदलने के बाद से अब तक तालिबान की सरकार को विश्वस्तर पर मान्यता नहीं मिली है, ऐसे में यहां पैसे आवंटित करना बेहद मुश्किल हो गया है।
Created On :   3 May 2023 4:39 PM IST