कश्मीर विश्वविद्यालय में अभी और सर्जिकल स्ट्राइक की उम्मीद
डिजिटल डेस्क, श्रीनगर। कश्मीर विश्वविद्यालय में अलगाववादियों द्वारा बनाए गए तथाकथित बौद्धिक ढांचे को खत्म करने की अपनी कवायद जारी रखते हुए जम्मू-कश्मीर सरकार कश्मीर विश्वविद्यालय शिक्षक संघ (कुटा) पर प्रतिबंध लगाने पर विचार कर रही है। एक अधिकारी ने खुलासा किया कि कुटा उन आधा दर्जन संघों (एसोसिएशन) में से एक है, जिन्होंने एक आतंकवादी-अलगाववादी नेटवर्क को पनपने और कश्मीर के मामले में सफल होने के लिए आवश्यक वैचारिक-नैरेटिव ढांचे को बनाने और बनाए रखने में एक अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, जो कि एक सुविचारित रणनीति के हिस्से के रूप में तैयार की गई थी। यह भारत के लिए शत्रुतापूर्ण कार्यों में शामिल रहने वाली पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई द्वारा तैयार की गई एक सुविचारित रणनीति के हिस्से के रूप में रहा है।
कश्मीर के इस सर्वोच्च शिक्षण संस्थान में अलगाववादी घुसपैठ का तीन दशक लंबा इतिहास रहा है। एक उदाहरण पर गौर करें तो कश्मीर यूनिवर्सिटी के असिस्टेंट प्रोफेसर मोहम्मद रफी भट ने आतंकी संगठन हिजबुल मुजाहिदीन का दामन थाम लिया था। आतंकी बनने के बाद सिर्फ एक दिन बाद ही वो सुरक्षा बलों के साथ शोपियां में रविवार सुबह की मुठभेड़ में मारा गया। रफी भट अस्थाई तौर पर विश्वविद्यालय के समाजशास्त्र विभाग में सहायक प्रोफेसर के पद पर कार्यरत था। कश्मीर विश्वविद्यालय से पीएचडी डिग्री प्राप्त करने के बमुश्किल एक सप्ताह बाद, भट 6 मई, 2018 को शोपियां जिले में चार अन्य आतंकवादियों के साथ मारा गया था।
शोपियां जिले में एक मुठभेड़ में मारे जाने से दो दिन पहले, रफी भट ने फेसबुक पोस्ट की एक सीरीज साझा की थी, जिससे संकेत मिला था कि उसने अपने छात्रों के साथ शिक्षण क्षेत्र को छोड़ने और हथियार उठाने की अपनी योजना साझा की थी। तीन दशकों से अधिक समय से विश्वविद्यालय में जो चल रहा था, रफी को उसके एक आदर्श उदाहरण के तौर पर कहा जा सकता है। विभिन्न विभागों और प्रशासनिक वर्गों में अलगाववादी तत्वों और उनके विचारकों की घुसपैठ कोई रहस्य नहीं है।
एक और उदाहरण 90 के दशक का भी रहा है, जब कश्मीर विश्वविद्यालय के कुलपति मुशीरुल हक और उनके सचिव अब्दुल गनी जरगर की शर्मनाक हत्या कर दी गई थी, जिनके शव 10 अप्रैल, 1990 को दोनों के अपहरण के चार दिन बाद मिले थे। विश्वविद्यालय में उनके कार्यालय से आतंकवादी ने उनका अपहरण कर लिया था। घाटी की शिक्षा की सर्वोच्च सीट अलगाववादियों के वास्तविक नियंत्रण में रही है, जिन्होंने शिक्षा और प्रशासन में महत्वपूर्ण पदों पर वफादारों को तैनात करके अपना नियंत्रण सुनिश्चित किया।
इस विश्वविद्यालय के अंदरूनी हलकों में तीन दशकों तक एक ही बहस चलती रही कि क्या कश्मीर स्वतंत्र हो जाए या पाकिस्तान में विलय हो जाए। भारत का हिस्सा बने रहना सवाल से बाहर ही रहा। विश्वविद्यालय का कट्टरपंथीकरण इतना व्यापक रहा है कि विभिन्न विभागों में प्रवेश भी अलगाववादी नेताओं और उग्रवादी कमांडरों की सिफारिश पर किया गया था। जो लोग तथाकथित आजादी के लिए खड़े थे और जो पाकिस्तान के साथ विलय के लिए खड़े थे, उनके बीच 1990 के दशक के मध्य में परिसर के भीतर से गोलीबारी की सूचना मिली थी। केंद्र और राज्य की खुफिया एजेंसियों के पास विश्वविद्यालय के छात्रों के कट्टरपंथ के बारे में भारी मात्रा में इनपुट थे।
इस पर एक वरिष्ठ खुफिया अधिकारी ने कहा, इस संबंध में रिपोर्ट थीं, लेकिन उनमें से सभी में कार्रवाई योग्य इनपुट नहीं थे और जब भी हमें कार्रवाई योग्य इनपुट मिले, हमने कार्रवाई की। सामान्य शब्दों में, कार्रवाई योग्य इनपुट का अर्थ हथियारों के साथ एक आतंकवादी की उपस्थिति या किसी संचार नेटवर्क की उपस्थिति या परिसर के अंदर छिपे किसी वांछित व्यक्ति के बारे में कोई जानकारी है। दुर्भाग्य से पिछले वर्षों में यह स्पष्ट हुआ है कि जिहाद के सैनिकों को बनाने के लिए आपको हथियारों की उपस्थिति की आवश्यकता नहीं है।
जिहाद की नर्सरी युवा और बौद्धिक रूप से प्रभावशाली दिमाग में पोषित होती है और विश्वविद्यालय में यही होता रहा है। दिलचस्प बात यह है कि आधिकारिक कार्यक्रमों के दौरान भी जहां चांसलर (राज्य के राज्यपाल) और कुलपति मौजूद होते हैं, कोई भी छात्र राष्ट्रगान के सम्मान में खड़ा नहीं होता है। उस कहानी का सबसे बुरा हिस्सा यह था कि जब राष्ट्रगान बजाया जाता था तो कुछ फैकल्टी मेंबर्स भी खड़े होने से इनकार कर देते थे। विश्वविद्यालय के रसायन विज्ञान विभाग के प्रोफेसर अल्ताफ हुसैन पंडित की हाल ही में बर्खास्तगी ने साबित कर दिया है कि खुफिया एजेंसियां जिसे वे कार्रवाई योग्य सबूत कहते हैं, उन्हें खोजने में सक्षम हैं।
पंडित की बर्खास्तगी ऑपरेशन क्लीन-अप की शुरूआत हो सकती है, जिसे उपराज्यपाल मनोज सिन्हा की सरकार ने विश्वविद्यालय में शुरू करने का फैसला किया है। शीर्ष खुफिया सूत्रों ने कहा कि अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के बाद, कश्मीर विश्वविद्यालय में शैक्षणिक और छात्र गतिविधियों के दो विचारशील विश्लेषण किए गए हैं। इन विश्लेषणों से पता चला है कि तीन फैकल्टी मेंबर इस हद तक अलगाववादी विचार से प्रेरित हो गए हैं कि तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता है। खुफिया सूत्रों के अनुसार, 12 फैक्लटी मेंबर्स कुछ हद तक इस स्थिति से ग्रस्त पाए गए हैं, जिन्हें लेकर एक श्रेणीबद्ध प्रतिक्रिया की आवश्यकता है।
खुफिया सूत्रों ने खुलासा किया, विभिन्न संकायों के 24 सदस्य और भी कम हद तक इससे ग्रसित हैं, जिन्हें परामर्श और अवलोकन की आवश्यकता है। खुफिया रिपोटरें ने विश्वविद्यालय में एक मुक्त शैक्षणिक माहौल सुनिश्चित करने को लेकर सुधारों को पूरा करने के लिए दीर्घकालिक उपायों का भी सुझाव दिया है। फिलहाल खुफिया एजेंसियां गैर-शिक्षण कर्मचारियों का विश्लेषण कर रही हैं। इन खुफिया रिपोटरें से जो स्पष्ट होता है, वह यह है कि बहुत दूर के भविष्य में, विश्वविद्यालय अकादमिक उत्कृष्टता को बहाल करने के लिए और अधिक प्रयास करेगा, जिसके लिए विश्वविद्यालय कभी प्रसिद्ध था।
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Created On :   16 May 2022 6:30 PM IST