जानिए क्यों गणेश जी को दूर्वा अर्पित की जाती है, और तुलसी नहीं ?

Know Why Durva is Offered to Lord Ganesha and Tulsi is not ?
जानिए क्यों गणेश जी को दूर्वा अर्पित की जाती है, और तुलसी नहीं ?
जानिए क्यों गणेश जी को दूर्वा अर्पित की जाती है, और तुलसी नहीं ?

डिजिटल डेस्क, भोपाल। दूर्वा एक प्रकार की घास है। ऐसा माना जाता है कि गजानंद को यह घास चढ़ाने से उनकी कृपा प्राप्त होती है और घर में रिद्धि-सिद्ध का वास होता है। गणेशजी को दूर्वा लगभग सभी लोग अर्पित करते हैं, लेकिन ये बात बहुत कम लोग जानते हैं कि दूर्वा अर्पित क्यों की जाती है। 

यह प्राचीन परंपरा है और इस संबंध में एक कथा बहुप्रचलित है।

कथा के अनुसार प्राचीन काल में अनलासुर नाम का एक दैत्य था। इस दैत्य के कोप से स्वर्ग और धरती पर त्राही-त्राही मची हुई थी। अनलासुर संत ऋषि-मुनियों और आमजन को जीवित निगल जाता था।
दैत्य से त्रस्त होकर देवराज इंद्र सहित सभी देवी-देवता और प्रमुख ऋषि-मुनि महादेव से प्रार्थना करने पहुंचे।

सभी ने शिवजी से प्रार्थना की कि वे अनलासुर का आतंक बहुत बड गया है सो हे प्रभु कृपया आप उसके आतंक का नाश करें। शिवजी ने सभी देवी-देवताओं, ऋषि-मुनियों ओर संतो की प्रार्थना सुनकर कहा कि अनलासुर का अंत केवल मात्र श्रीगणेश ही कर सकते हैं। शिवजी ने कहा कि अनलासुर का अंत करने के लिए उसे निगलना पड़ेगा और ये काम सिर्फ गणेश ही कर सकते हैं।

गणेशजी का पेट बहुत बड़ा है जिस कारण वे अनलासुर को सहजता से निगल सकते हैं। शिवजी की बातें सुनकर सभी देवी-देवता गणेशजी के पास पहुंच गए। और गणेशजी की स्तुति कर उन्हें प्रसन्न किया। प्रसन्न होकर गणेशजी अनलासुर को समाप्त करने के लिए तैयार हो गए। इसके बाद श्रीगणेश और अनलासुर के बीच अत्यंत ही घमासान युद्ध हुआ, अंत में गणेशजी ने असुर को पकड़कर निगल लिया और इस प्रकार अनलासुर के आतंक का अंत हुआ।

जब श्रीगणेश ने अनलासुर को निगलने के बाद उनके पेट में बहुत जलन होने लगी। कई प्रकार के जतन-उपाय करने के बाद भी गणेशजी के पेट की अग्नि शांत नहीं हो रही थी। तब कश्यप ऋषि ने दूर्वा की 21 गांठ बनाकर श्रीगणेश को खाने को दी। जब गणेशजी ने दूर्वा ग्रहण की तो उनके पेट की जलन शांत हो गई। तभी से श्रीगणेश को दूर्वा चढ़ाने की परंपरा का उदय हुआ। 

गणेशजी पर तुलसी कभी भी नहीं चढ़ाई जाती। कार्तिक माहात्म्य में भी कहा गया है कि "गणेश तुलसी पत्र दुर्गा नैव तु दूर्वाया" अर्थात गणेशजी की तुलसी पत्र और दुर्गाजी की दूर्वा से पूजा नहीं करनी चाहिए। भगवान गणेश को गुड़हल का लाल फूल विशेष रूप से प्रिय है। इसके अलावा चांदनी, चमेली या पारिजात के फूलों की माला बनाकर पहनाने से भी गणेश जी प्रसन्न होते हैं। गणपति का वर्ण लाल है, उनकी पूजा में लाल वस्त्र, लाल फूल व रक्तचंदन का प्रयोग किया जाता है।

Created On :   17 Jan 2020 3:19 PM IST

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