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रेड लाइट एरिया में जन्मे बच्चों के लिए ननिहाल से कम नहीं है यह शरणस्थल-जानिए हकीकत
डिजिटल डेस्क, नागपुर। देश के बड़े देह बाजारों में से एक नागपुर का गंगा जमुना एरिया। किसी के लिए मस्ती, किसी का मनोरंजन तो किसी के लिए टाइम पास। त्रासदी तो उनकी हैं जो रोजी के लिए दिन भर बिकती व बिछती रहती हैं। शाम को रौनक बढ़ती है। रातें गहराती हैं लेकिन उनके जीवन का सबेरा नहीं हो पाता है। यहां की देह जीविकाओं की स्थिति ठीक उसी तरह है जैसे देश के अन्य मंडियों पर बैठने वाली महिलाओं की होती है। किसी को प्यार में मिले धोखे ने यहां ला दिया तो किसी को घर परिवार के लोग छोड़ गए। ऐसी भी जीविकाएं हैं जिनको बालपन में ही बता दिया गया कि उनका जन्म इसी कर्म के लिए हुआ हैं।
मध्यप्रदेश के ग्वालियर,धौलपुर से लेकर कई क्षेत्रों के परंपरागत देह व्यापार में लिप्त परिवारों की महिलाएं भी यहां है। चंद रुपये की चाह में शौकीनों के लिए टाइमपास बनी इन देहजीवाओं को अपने भविष्य की परवाह नहीं है। हो भी कैसे,समाज की मुख्य धारा से काफी दूर गुमनामी के कूप अंधेरे में समायी है। भविष्य तो उनका भी नहीं जो इन माताओं की कोख में आश्रय पाए। ऐसे ही अबोध बच्चों के लिए आशा का दीप लेकर आए हैं केरल के दंपति। देहबाजार की अंधेरी गलियों के लिए मानवता का जलता दीया बना है शरणस्थल। एक ऐसा स्थल,जहां देहजीविकाओं के बच्चों को न केवल ननिहाल सा स्नेह मिलता है बल्कि भविष्य संवारने के लिए शरण भी मिल रही है। शरणस्थल का संचालन शरणस्थल चैरिटेबल संस्था के माध्यम से होता है।
संस्था के मुख्य पदाधिकारी ईसो डेनियल व लीला ईसो हैं। रोज शाम देह जीविकाओं के लिए धंधे का समय होता है। आठ बाय आठ के कमरे में 20-30 मिनट में उन्हें ग्राहक बदलने होते हैं। लिहाजा मासूम बच्चों को कमरे के कर्म की परछाई भी नहीं पड़ने देने की अभिलाषा के साथ देहजीविकाएं मासूम बच्चों को शरणस्थल में छोड़ आती हैं। शरणस्थल के बच्चे न केवल पढ़ाई करते हैं बल्कि निवास भी करते हैं। उनके लिए खेल कूद की भी व्यवस्था है। फिलहाल यहां 114 बच्चे हैं। यहीं से बच्चे आसपास के अन्य स्कूलों में भी पढ़ने को जाते हैं। करीब 15 साल से यह सिलसिला चल रहा है। कुछ बच्चें ग्रेज्युएशन करके प्रतिष्ठित जॉब व सरकारी नौकरी में लगे हैं।
डेनियल व लीला केरल से नागपुर में घूमने के लिए आए थे। 2002 में उन्होंने यहां के सामाजिक कार्यकर्ताओं के माध्यम से इस बाजार की वास्तविकता सुनी तो दंग रह गए। बाद में वे एक माह का अवकाश निकालकर यहां आए। बाजार से ही लगी लकड़गंज पुलिस चौकी के पास एक इमारत लेकर बच्चों के लिए शरणस्थल के द्वार खोले। कार्य विस्तारित होता गया। अब यहां 14 कमरों की इमारत में यह सेवाकार्य चल रहा है।
Created On :   1 Jan 2020 3:59 PM IST