‘मोहन’ जब-जब विचलित हुए ‘कस्तूर’ ने ही सहारा दिया

Kasturba behind the mahatma gandhi for ever neglected says tushar gandhi
‘मोहन’ जब-जब विचलित हुए ‘कस्तूर’ ने ही सहारा दिया
‘मोहन’ जब-जब विचलित हुए ‘कस्तूर’ ने ही सहारा दिया

डिजिटल डेस्क, नागपुर।   जब भी मोहन विचलित हुए, तो कस्तूर का सहारा लिया और कस्तूर ने सहारा दिया। यह बात महात्मा गांधी के प्रपौत्र तुषार गांधी ने कही। वे चिटणवीस मोहनदास (महात्मा गांधी) ने जब अपने पिता की जेब से पैसे चुराए, तो कस्तूर को बताया। कस्तूर ने कहा कि, मुझे मत बताओ, यह बात अपने पिता से कहो। ऐसे हर समय कस्तूर, मोहन के पीछे खड़ी थीं। सेंटर में कस्तूरबा के नए पहलुओं पर आयोजित कार्यक्रम में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि, इस कार्यक्रम का मतलब गांधीजी को नीचा दिखाना नहीं है, बल्कि उनके प्रेम को बताना है। यहां आपको बता दें कि, कार्यक्रम में कई ऐसे संस्मरण आए कि तुषार गांधी सुनाते समय रोने लगे और उनकी सांसें तेज चलने लगी। कई बार वह बीच-बीच में बोलते-बोलते चुप हो गए।

अपने गहने तक बेच डाले
तुषार गांधी ने कहा कि, भावनगर से पढ़ाई छोड़कर मोहन घर आ गए। कुछ समय बाद वह लंदन जाकर पढ़ाई करने की इच्छा जताने लगे, लेकिन पारिवारिक स्थिति ठीक नहीं थी। सात समुंदर पार जाने को लेकर समाज में बहिष्कार हुआ, तो आर्थिक मदद करने वालों ने भी हाथ खींच लिए और परिवार के पास इतने पैसे नहीं थे कि, उन्हें लंदन भेज सकें। चूंकि, उस समय कस्तूर के पिता की मालिकी के जहाज चलते थे। वह काफी सम्पन्न थे।  उन्होंने कस्तूर को काफी गहने दिए थे। कस्तूर ने कहा कि, यह मेरे गहने किसी काम के नहीं हैं, यदि मेरे पति के लिए काम नहीं आ सकें। इसके बाद मोहन विदेश पढ़ाई के लिए गए। उसके बाद उन्हें कई बार पैसों की जरूरत पड़ी, तो स्वाभाविक है कि, कस्तूर के गहनों को ही बेचा गया होगा। विदेश से वकालत पढ़ने के बाद घर आने के 2-3 माह बाद कस्तूर ने मोहन से पूछा-अब कुछ काम भी करोगे क्या? इस पर बाम्बे कोर्ट में जिरह के दौरान नहीं बोल पाने का किस्सा तुषार ने बताया। उन्होंने बताया, मोहन बोलने में डर रहे थे, तो पत्र के माध्यम से अपना कार्य आरंभ किया। फिर वह दक्षिण अफ्रीका गए, वहां कस्तूरबा ने हक की लड़ाई लड़ी और सत्याग्रह करने वाली पहली महिला बनीं। 
 

Created On :   25 Feb 2020 8:55 AM GMT

Tags

और पढ़ेंकम पढ़ें
Next Story