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हाईकोर्ट : ड्रीम 11 भाग्य का नहीं कौशल का खेल, याचिका खारिज

डिजिटल डेस्क, मुंबई। हाईकोर्ट ने खेल के खिलाफ दायर याचिका को किया खारिज किया है। बांबे हाईकोर्ट ने कहा है कि ‘ड्रीम 11’ गेम भाग्य (चांस) का नहीं कौशल का खेल है। इसलिए यह खेल जुए के दायरे में नहीं आता है। यह बात कहते हुए हाईकोर्ट ने क्रिकेट से जुड़े ड्रीम 11 खेल पर रोक लगाने की मांग को लेकर दायर याचिका को खारिज कर दिया है। याचिका में दावा किया गया था कि ड्रीम 11 एक अवैध खेल है जो की जुए के खेल के दायरे में आता है। इसलिए इस खेल को शुरु करनेवाली कंपनी के खिलाफ आपराधिक मुकदमा चलाया जाए। याचिका में दावा किया गया था कि ड्रीम 11 नाम का खेल लोगों को ज्यादा पैसे कमाने का प्रलोभन देता है। ताकि लोग इस खेल पर पैसे लगाने के लिए आकर्षित हो। और फिर हारकर अपने पैसे गवांए। यह खेल पूरी तरह से जुए व सट्टेबाजी की परिधी में आता है। न्यायमूर्ति आरवी मोरे व न्यायमूर्ति भारती डागरे की खं़डपीठ के सामने इस मुद्दे से जुड़ी याचिका पर सुनवाई हुई। मामले से जुड़े दनों पक्षों को सुनने के बाद खंडपीठ ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में ड्रीम 11 खेल को जुआ माानने इंकार किया है। इससे पहले पंजाब व हरियाणा कोर्ट ने भी ड्रीम 11(फैंटसी खेल) को चलानेवाली कंपनी के पक्ष में फैसला सुनाया था। इस फैसले पर गौर करने के बाद खंडपीठ ने कहा कि ‘ड्रीम 11’ ज्ञान व कौशल पर आधारित खेल है। इसे भाग्य का खेल नहीं माना जा सकता है। खंडपीठ ने इस मामले में जीएसटी से बचने से जुड़े पहलू को अस्वीकार कर याचिका को खारिज कर दिया। ड्रीम 11 की ओर से अधिवक्ता सुजय कांटावाला ने पक्ष रखा।
जानबूझ कर दो दोषियों को फांसी की सजा देने में नहीं की गई देरी - राज्य सरकार का दावा
उधर राज्य सरकार ने बांबे हाईकोर्ट में दावा किया है कि दुष्कर्म व हत्या के मामले में फांसी की सजा पाए दो मुजरिमों को फांसी देने में जानबूझकर देरी नहीं की गई है। दोनों मुजरिमो को विप्रो कंपनी की बीपीओ महिला कर्मचारी के साथ सामूहिक दुष्कर्म व हत्या के लिए फांसी का सजा सुनाई गई थी। बुधवार को राज्य के गृह विभाग व येरवडा जेल के अधीक्षक ने इस मामले में हाईकोर्ट में हलफनामा दायर किया है। यह हलफनामा फांसी की सजा पाए दोनों मुजरिमो की ओर से दायर याचिका के जवाब में दायर किया गया है। याचिका में मुजरिम पुरुषोत्म बरोटे व प्रवीण कोकाटे ने दावा किया है कि उन्हें फांसी की सजा देने में चार साल से अधिक की देरी हुई है। इसलिए उनकी फांसी की सजा को रद्द कर दिया जाए। 24 जून को इन दोनों याचिकाकर्ताओं की फांसी की सजा तय की गई है। वहीं हलफनामे में दावा किया गया है कि जेल अधिकारियों से केंद्र सरकार व कोर्ट को याचिकाकर्ताअों से जुड़े दस्तावेज भेजने में बिल्कुल भी देरी नहीं हुई है। जैसे ही याचिकाकर्ताओं की याचिका अस्वीकार हुई है। इसकी जानकारी उन्हें तुरंत प्रदान कर दी गई थी। इसलिए जेल अधीक्षक को देरी के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है। क्योंकि जेल प्रशासन ने मामले से जुड़े सारे दस्तावेज कोर्ट को भेज दिए थे। मृत्यु से जुड़ा वारंट जारी करना कोर्ट के अधिकार क्षेत्र में आता है। केंद्र सरकार ने भी कहा कि उनकी ओर से भी याचिकाकर्ताओं की दया याचिकाओं पर सभी पहलूओं पर गौर करने के बाद मई 2017 में निर्णय ले लिया गया था। न्यायमूर्ति बीपी धर्माधिकारी के सामने गुरुवार को भी इस मामले की सुनवाई जारी रहेगी।
Created On :   19 Jun 2019 9:47 PM IST