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गांव वाले बरसाते हैं एक दूसरे पर पत्थर, निभाई जाती है सदियों पुरानी परंपरा
डिजिटल डेस्क,छिंदवाड़ा/पांढुर्ना। पांढुर्ना के बीचोंबीच से बहने वाली जाम नदी पर पांढुर्ना और सावरगांव के संगम पर सदियों से चली आ रही परंपरा के अंतर्गत आगामी 31 अगस्त को गोटमार मेला लगेगा। परंपरा अनुसार यहां गोटमार खेलते हुए यहां लोग एक-दूसरे पर पत्थर बरसाएंगे। पोला पर्व के दूसरे दिन होने वाले गोटमार मेले में भले ही लोग लहुलूहान होंगे और शरीर से खून की धाराएं बहेगी, पर शरीर के दर्द को भूलकर भी पूरे जोश व उमंग के साथ गोटमार खेलने की परंपरा निभाई जाएगी। गोटमार मेले के दौरान मेले की आराध्य मां चंडिका के मंदिर में हजारों भक्त पहुंचेंगे और पूजन व दर्शन के साथ मां के चरणों में माथा टेकेंगे। गोटमार खेलने वाले खिलाड़ी मां चंडिका के दर्शन के बाद ही मेले में पहुंचेंगे।
मेले से जुड़ी है किवदंतियां
विश्व विख्यात गोटमार मेले की परंपरा निभाने के पीछे किवदंतियां और कहानियां जुड़ी है। कई सालों से जाम नदी के बीचोंबीच झंडेरूपी पलाश के पेड़ को गाड़कर मेले की परंपरा निभाई जा रही है और पत्थरबाजी का खेल खेला जा रहा है।
प्रेमीयुगल की कहानी
प्रचलित किवदंती के अनुसार पांढुर्ना के युवक और सावरगांव की युवती के बीच प्रेमसंबंध था। प्रेमी युवक ने सावरगांव पहुंचकर युवती को भगाकर पांढुर्ना लाना चाहा। पर दोनों के जाम नदी के बीच पहुंचते ही सावरगांव में खबर फैल गई। प्रेमीयुगल को रोकने सावरगांव के लोगों ने पत्थर बरसाए, वहीं जवाब में पांढुर्ना के लोगों ने भी पत्थर बरसाकर उनका बचाव किया। पत्थरबाजी में प्रेमीयुगल की तो मौत हो गई, पर तब से गोटमार मेले की परंपरा शुरू होने की बात किवदंती के अनुसार कही जाती है।
युद्धभ्यास की कहानी
कहानी प्रचलित है कि जाम नदी के किनारे पांढुर्ना-सावरगांव वाले क्षेत्र में भोंसला राजा की सैन्य टुकडिय़ां निवास करती थी। रोजाना युद्धभ्यास के लिए टुकडिय़ों के सैनिक नदी के बीचोंबीच झंडा लगाकर पत्थरबाजी और निशानेबाजी का मुकाबला करते थे। सैनिकों को निशानेबाजी और पत्थरबाजी में दक्ष करने सैन्य युद्धभ्यास लंबे समय तक जारी रहा, जिसने धीरे-धीरे एक परंपरा का रूप ले लिया। कहानी को गोटमार मेला आयोजन से जोड़ा जाता है और हर साल परंपरा निभाई जाती है।
कई परिवारों ने अपनों को खोया
भले ही गोटमार मेला सदियों पुरानी परंपरा के अनुसार मनाया जाता है, पर हर साल मेले के दौरान अपनों को खोने वाले परिवारों का गम भी उभर जाता है। मेले के आते ही क्षेत्र के कई परिवारों के सालों पुराने जख्म हरे हो जाते है , क्योंकि इन परिवारों ने गोटमार खेल में ही अपनों को खोया है। गोटमार के दौरान अब तक किसी का पति, तो किसी का बेटा, किसी का पिता और भाई अपनी जान गवां चुके हैं। वहीं कई खिलाडिय़ों को शरीर पर मिले जख्म गोटमार के दिन हरे हो जाते हैं।
प्रशासन के प्रयास रहे असफल
गोटमार की परंपरा सदियों से चली रही है। एक-दूसरे पर पत्थर बरसाकर लहुलूहान करने की परंपरा को रोकने प्रशासन ने तमाम प्रयास किए, पर सारे प्रयास असफल रहे। एक साल पत्थरों की बरसात रोकने रबर बॉल से खेल का प्रयास हुआ, पर चंद मिनटों में ही रबर बॉल सिफर हो गए और खिलाडिय़ों ने पत्थरों से ही खेल खेला। बीते पांच-छह सालों से हर बार गोटमार रोकने भरसक प्रयास हो रहे है। मानवाधिकार आयोग ने भी इस पर आपत्ति जताई, जिसके बाद मेले पत्थरबाजी को रोकने प्रशासन सख्ती से मुस्तैद रहा, पर गोटमार निभाने की परंपरा नहीं रुक पाई।
Created On :   30 Aug 2019 2:07 PM IST