सूखे की मार झेल रहे क्षेत्रों में बढ़ रहा डेंटल फ्लोरोसिस, आठ जिलों में बुरे हैं हाल

Dental fluorosis is increasing in areas facing drought
सूखे की मार झेल रहे क्षेत्रों में बढ़ रहा डेंटल फ्लोरोसिस, आठ जिलों में बुरे हैं हाल
सूखे की मार झेल रहे क्षेत्रों में बढ़ रहा डेंटल फ्लोरोसिस, आठ जिलों में बुरे हैं हाल

डिजिटल डेस्क, नागपुर।  जल संकट का सामना कर रहे विदर्भ में पीने के लिए भूगर्भ जल का इस्तेमाल बढ़ने के साथ ही दांतों में फ्लोरोसिस की समस्या बढ़ रही है। इस वर्ष राज्य में कुल 1481 डेंटल फ्लोरोसिस के मामले सामने आए हैं। इनमें से अधिकतर आठ जिलों के हैं। इनमें विदर्भ के नागपुर, चंद्रपुर, वर्धा, यवतमाल और वाशिम शामिल हैं। शेष जिले मराठवाड़ा के लातुर, नादेड़ और बीड़ शामिल हैं। ये सभी जिले वर्षा की कमी झेल रहे हैं और यहां पीने के पानी के लिए भूगर्भ जल का उपयोग किया जा रहा है। जलस्रोत में गहराई के साथ फ्लोराइड की मात्रा बढ़ती जाती है। राज्य के  डेप्युटी डायरेक्टर हेल्थ सर्विस (ओरल) डॉ. यशवंत मुले ने हाल ही में इस संबंध में सर्वे रिपोर्ट जारी की है। रिपोर्ट के अनुसार, राज्य में लाेगों में 1481 डेंटल फ्लोरोसिस की पहचान हुई है और इससे संबंधित मामले लगातार बढ़ रहे हैं, हालांकि इस बीमारी के प्रति लोगों में जागरूकता काफी कम है। राज्य सरकार की ओर से प्रभावित आठ जिलों में दंत परीक्षण कार्यक्रम शुरू किया गया है। इसके तहत दंत चिकित्सक ‘डोर टू डोर’ जाकर दांतों की जांच कर रहे हैं।

चरमरा रहीं हैं हडि्‌डयां 

विशेषज्ञों के अनुसार, बच्चों काे डेंटल फ्लोरोसिस से बचाना जरूरी है। इससे होने वाले नुकसान की भरपाई संभव नहीं है। आठ वर्ष से कम उम्र के बच्चे इससे सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं। इससे होने वाले नुकसान को कॉस्मेटिक उपचार तो संभव है, लेकिन एनामेल को होने वाला नुकसान स्थायी होता है। फ्लोरोसिस के कारण दांत पीले हो जाते हैं और उनकी ऊपरी हिस्सा खराब होने लगता है। समस्या बढ़ने पर फ्लोराइड शरीर में हडि्डयों तक पहंुच जाता है और वे टेढ़े-मेढ़े होने लगते हैं।

पेयजल में फ्लोराइड की जांच

पीने के लिए उपयोग में लाए जा रहे भूगर्भ जल में फ्लोराइड के स्तर की जांच की जानी चाहिए। अधिकतर पानी साफ करने वाले घरेलू स्तर पर लगाए जाने वाले प्यूरिफायर पानी से फ्लोराइड को हटाने में सक्षम नहीं हैं। फ्लोराइड को हटाने के लिए रासायनिक प्रक्रिया की जरूरत होती है, जो लैब में ही संभव है।

जागरूकता का  कर रहे प्रयास

राज्य सरकार की ओर से सार्वजनिक आरोग्य विभाग को इस समस्या के प्रति जागरूकता लाने के साथ ही उपचार का काम भी दिया गया है। डेंटल कॉलेज आरोग्य विभाग के साथ मिल कर काम कर रहा है। अभियान के तहत मनपा स्कूलों में बच्चों के दांतों की जांच कर फ्लोरोसिस से ग्रस्त बच्चों की पहचान की गई है। उनका उपचार भी जारी है। प्रभावित बच्चों के रहने के इलाके की और पेयजल के लिए इस्तेमाल किए जा रहे जलस्रोत की पहचान करना जरूरी है। नीरी की मदद से पानी में फ्लोराइड की मात्रा की जांच करवाई जा सकती है। पेयजल के लिए दूसरे विकल्प के उपयोग की सलाह भी दी जा सकती है।
-सिंधु गणवीर, डीन, डेंटल कॉलेज एंड हॉस्पिटल, नागपुर

Created On :   22 Aug 2019 11:16 AM IST

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