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फिर सुर्खियों में: वर्चस्व की लड़ाई और कमेटियों की कमाई ही यूनिवर्सिटी में असली विवाद की जड़
- यूनिवर्सिटी में एक ही संगठन के बीच कलह
- स्टॉफ और प्रोफेसरों ने अपने-अपने खेमे चुने
- लड़ाई यूनिवर्सिटी के मैदान से निकल बाहर तक पहुंची
डिजिटल डेस्क, नागपुर। राष्ट्रसंत तुकड़ोजी महाराज नागपुर यूनिवर्सिटी में एक ही संगठन के बीच चल रही अंदरूनी कलह खुलकर सामने आ गई। एक ही संगठन से संबंधित एक ग्रुप, दूसरे ग्रुप पर आरोप लगा रहा है। पूरा मामला यूनिवर्सिटी में वर्चस्व की लड़ाई और यहां बनने वाली कमेटियों में अपने-अपने आदमियों को रखकर होने वाली कमाई से से जुड़ा हुआ है। यही कारण है कि, इन दिनों पूरी यूनिवर्सिटी दो खेमों में बंटी हुई है। स्टॉफ और प्रोफेसरों ने अपने-अपने खेमे चुन लिए हैं। विवाद इतना बढ़ गया कि, अब यह लड़ाई यूनिवर्सिटी के मैदान से निकल बाहरी तौर पर लड़ी जा रही है।
डॉ. चौधरी सही हैं, इसलिए उनका बचाव किया जा रहा है : एमकेसीएल की जांच में सामने आया कि, अनियमिताएं नहीं हुई। न्यायाधीश की जांच में कुछ नाम सामने आने की संभावना है, इसलिए डॉ. चौधरी का बचाव किया जा रहा है, यह आरोप पूरी तरह से झूठा है। साथ ही शिक्षण मंच पर जो सवाल उठाए जा रहे हैं, वे भी बेबुनियाद हैं। आत्राम समिति, फुलझेले समिति और अग्रवाल समिति, इन तीनों समितियों ने अपनी रिपोर्ट में एमकेसीएल ने कोई अनियमितता नहीं की है, ऐसा कहा है। इन समितियों ने एमकेसीएल को काम देने को भी कहा है। -डॉ. कल्पना पांडे, अध्यक्ष, शिक्षण मंच
डॉ. कल्पना पांडे किसी के कहने पर यह सब कर रही हैं : डॉ. कल्पना पांडे विश्वविद्यालय के किसी भी प्राधिकरण में नहीं हैं। विश्वविद्यालय से उनका सीधा ऐसा कोई संबंध नहीं है। 2016 से एमकेसीएल का मुद्दा चल रहा है, इसकी उनको ज्यादा जानकारी नहीं है। डॉ. पांडे हमारी करीबी हैं। इसके बावजूद इस तरह से हम पर आरोप लगाना हमारे लिए काफी दु:खद है। वे किसी के कहने पर यह सब कर रही हैं। -विष्णु चांगदे, अधिसभा सदस्य
शिक्षण मंच और भाजपा आमने-सामने : शिक्षण मंच की अध्यक्षा डॉ. कल्पना पांडे ने डॉ. चौधरी के बचाव के लिए सोमवार को पत्र परिषद ली थी। डॉ. पांडे ने डॉ. सुभाष चौधरी को निर्दोष बताते हुए विधायक तथा भाजपा शहर अध्यक्ष प्रवीण दटके, समय बन्सोड, अधिसभा सदस्य विष्णु चांगदे, भाजयुमो नेता शिवानी दानी के खिलाफ मामला दर्ज कर कार्रवाई करने की मांग की है।
असली वजह : अपने-अपने गुट के कुलगुरु लाने का है : पूरे यूनिवर्सिटी में सबसे बड़ा मुद्दा कुलगुरु का है, वह जिस घेमे से संबंधित होगा, वही यूनिवर्सिटी में राज करेगा। पूर्व कुलगुरु डॉ. सुभाष चौधरी शिक्षण मंच की अध्यक्ष डॉ. कल्पना पांडे के खेमे के बताए जा रहे हैं। यूनिवर्सिटी की अधिकांश कमेटियों में भी उनकी सहमति से लोगों को लिया गया और आर्थिक से लेकर सामाजिक मुद्दों पर उनका सीधे-सीधे दखल रहा। दूसरी तरफ शहर भाजपा के दूसरे बड़े नेताओं और अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से संबंधित गुट सालों से इस प्रयास में रहा है कि, कुलगुरु उनके खेमे का हो, ताकि तमाम निर्णय उनके अनुसार हो। बस इसी खींचतान का खेल सालों से चल रहा है। वर्तमान में कुलगुरु बदनले पर एक गुट तमतमा गया और खुलकर मोर्चा खोल दिया।
एमकेसीएल विवाद के केंद्र में, क्योंकि ढाई करोड़ का सवाल पूरे मामले में एमकेसीएल कंपनी भी विवाद के केंद्र में है, जिसे छात्रों के रिजल्ट बनाने का काम दिया गया था। एक पक्ष आरोप लगा रहा है कि, संबंधित निजी कंपनी के लोग पूर्व कुलगुरु डॉ. सुभाष चौधरी और डॉ. कल्पना पांडे से जुड़े हैं, इसलिए दूसरा खेमा इन पर अनियमितताओं का अरोप लगाता रहा। कुछ जांच रिपोर्ट में साबित भी हुआ। इसी कंपनी का करीब ढाई करोड़ का भुगतान रुका था, जिस समझौता कर पहले 1.37 करोड़ में लाए गए और उसे अपने स्तर पर जिद कर भुगतान भी किया।
जाति कार्ड की भी एंट्री : पूरे मामले में अब जाति कार्ड की एंट्री भी हो गई है, जिसे एक गुट अपना ब्रम्हास्त्र समझकर चला रहा है। आरोप लगाए जा रहे हैं कि, डॉ. चौधरी ओबीसी से आते हैं, इसलिए एक गुट उनको पंसद नहीं करता, इसलिए उन पर आरोप-प्रत्यारोप लगा कर उन्हें यूनिवर्सिटी से दूर रखना चाह रहा है, जबकि दूसरे पक्ष का कहना है कि, यदि डॉ. चौधरी के कार्यकाल की ठीक से जांच की जाए, तो इस दौरान हुए गलत तरीके से भुगतान की पोल खुल जाएगी, इसलिए जांच का विरोध किया जा रहा है।
Created On :   14 Aug 2024 3:50 PM IST