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जांच - पड़ताल: विद्यार्थिंयों का रिजल्ट गड़बड़ाता रहा और अधिकारी कमीशन के लिए कंपनियों को फायदा पहुंचाते रहे
- यूनिवर्सिटी की जांच रिपोर्ट में हुए कई गंभीर खुलासे
- यूनिवर्सिटी में ब्लैक लिस्टेड कंपनी प्रोमार्क को बिना टेंडर के दिया कांट्रैक्ट
- हर माह अधिकारियों और कुछ सीनेट सदस्यों के निजी खर्चे उठा रही है कंपनी
डिजिटल डेस्क, नागपुर। राष्ट्रसंत तुकड़ोजी महाराज नागपुर यूनिवर्सिटी में रिजल्ट बनाने वाली दो कंपनियों के कॉम्पिटिशन में छात्रों का भविष्य दांव पर लग गया है। अलग-अलग कंपनियों से मिलने वाले कमीशन के मोह जाल में गले तक फंसे जिम्मेदार अधिकारियों ने छात्रों के हित की जगह कंपनियों के हितों को प्राथमिकता दी। एक तरफ छात्रों के रिजल्ट गड़बड़ा रहे थे, तो दूसरी तरफ अधिकारी माला-माल हो रहे थे। एमसीएल कंपनी को फायदा पहुंचाने के लिए वाइस चांसलर का भी नाम सामने आया, तो दूसरी कंपनी प्रोमार्क जो रिजल्ट बनाने के काम में ब्लैक लिस्टेड थी, उसके पक्ष में यूनिविसिटी के अधिकारी, कुछ सीनेट सदस्य यहां तक कि एक मंत्री भी समर्थन में आए। यही कारण है कि उसे बिना निविदा के ही सालों तक काम मिलता रहा। वह भी पुरानी कंपनी से दोगुने रेट में। सूत्राें के अनुसार, उक्त कंपनी यूनिवर्सिटी में कई बड़े अधिकारियों, सीनेट सदस्य के हर माह के निजी खर्च उठा रही है, जिसमें हर माह दी जाने वाली एक मोटी रकम भी है। जिम्मेदारों ने अपनी-अपनी कंपनी को फायदा पहुंचाने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी, इसके लिए हर बार छात्रों के रिजल्ट और उनके भविष्य को टूल बनाया गया। हाल ही में सामने आई यूनिवर्सिटी की मैनेजमेंट काउंसिल कमेटी की रिपोर्ट में कई चौंकाने वाले खुलासे हुए हैं।
छात्रों का भविष्य ऐसे बिगड़ा : एमकेसीएल कंपनी को यूनिवर्सिटी में रिजल्ट बनाने का काम 2007 को दिया गया। प्रोमार्क को काम देने के लिए कुछ अधिकारियों ने एमकेसीएल कंपनी की भुगतान फाइलें रोक दी। सालों तक उसको भुगतान नहीं हुआ। इससे छात्रों का रिजल्ट बुरी तरह लड़खड़ा गया। समय पर न तो रिजल्ट बने और न ही मार्कशीट। बस इसी का हवाला देकर 2011 में प्रोमार्क कंपनी को काम दिया। सूत्रों के अनुसार, एमकेसीएल से कांट्रेक्ट छीनते ही उसने छात्रों के डेटा से जुड़ी सामग्री प्रोमार्क को नहीं दी। इसके बाद एमकेसीएल से काम छीनकर फिर प्रोमार्क को दिया गया। 2015 में प्रोमार्क से काम छीनकर एमकेसीएल को दिया गया। यहां प्रोमार्क कंपनी ने भी यही किया। 2011 से 2015 तक छात्रों का डेटा एमकेसीएल को नहीं दिया। इस कारण छात्रों के रिजल्ट छह-छह माह लेट हो गए। यहां तक कि उनकी सालों से मार्कशीट ही नहीं बनी, जिस कारण 2017 में फिर प्रोमार्क को काम दिया गया। हालांकि इन सभी खेलों में उन अधिकारियों का हाथ था, जो अपने-अपने कमीशन के लिए अपनी कंपनियों को कांट्रैक्ट दिलवाना चाह रहे थे और जिसके लिए छात्रों के भविष्य को टूल बनाया गया।
ब्लैक लिस्टेड कंपनी पर कब, किसकी मेहरबानी
सिद्धार्थ विनायक काणे: संरक्षक की भूमिका में रहे : प्रोमार्क की यूनिवर्सिटी में एंट्री 2004 में बिना किसी टेंडर के हुई थी, मगर परीक्षा संबंधी काम यूनिवर्सिटी के परीक्षा नियंत्रक डॉ. सिद्धार्थ विनायक काणे द्वारा दिया गया। काणे 2015 से लेकर 2020 तक यूनिवर्सिटी के वीसी भी रहे। इस दौरान कंपनी पर जमकर मेहरबानी की गयी।
मैंने प्रोमार्क कंपनी को नियमानुसार काम दिया : मैंने प्रोमार्क कंपनी को अपने कार्यकाल में जो भी काम दिया वह टेंडर और नियमानुसार ही था। इसके बाद किसने क्या किया, मुझे नहीं पता। -सिद्धार्थ विनायक काणे, पूर्व वीसी, नागपुर यूनिवर्सिटी
डॉ. प्रफुल्ल साबले: प्राेमार्क को लगातार एक्सटेंशन : वर्तमान में प्राेमार्क कंपनी यूनिवर्सिटी के परीक्षा डॉ. प्रफुल्ल साबले के नियंत्रण में काम करती है। 2019 में कंपनी का टेंडर खत्म हो गए। इसके बाद लगातार एक्सटेंशन देकर काम करवाने में उनकी सबसे बड़ी भूमिका रही।
साबले ने चुप्पी साधी, सवाल का जवाब नहीं दे सके : इस मामले में वर्तमान में यूनिवर्सिटी के परीक्षा नियंत्रक डाॅ. प्रफुल्ल साबले से हमने प्रोमार्क की तमाम अनियमितताआें पर सवाल करने चाहे, मगर वे इस बारे में चुप्पी साधकर बैठे रहे। किसी भी सवाल का जवाब नहीं दिया।
डॉ. राजू हिवसे: सब देखते हुए भी अनदेखी की : डॉ. राजू हिवसे यूनिवर्सिटी के रजिस्टार हैं। फाइनेंस से लेकर अन्य व्यवस्थाओं में उनकी सबसे बड़ी भूमिका है। जब जांच रिपोर्ट में प्रोमार्क कंपनी की कार्यशैली का और बिना टेंडर के काम का खुलासा भी हो गया, इसके बाद भी उन्होंने इस मामले में चुप्पी साधे रखी। वे हर कंपनी पर कार्रवाई करने से बचते रहे।
प्रफुल्ल साबले से ही जवाब मांगे : रजिस्ट्रार : प्रोमार्क कंपनी के बिना टेंडर काम करने और उसका एक्टेंशन बढ़ाने के मामले में जब हमने रजिस्ट्रार डॉ. राजू हिवसे से सवाल किए तो उनका कहना था कि इस बारे में यूनिवर्सिटी के परीक्षा नियंत्रक डाॅ. प्रफुल्ल साबले ही जवाब देंगे।
चंद्रकांत दादा पाटील: यूनिवर्सिटी को कहा-प्रोमार्क को काम दें : प्रोमार्क कंपनी को काम देने के लिए कुछ बड़े अधिकारियों और यूनिवर्सिटी के सीनेट सदस्यों ने प्रोमार्क को काम देने के लिए उच्च एवं तकनीकी शिक्षा मंत्री चंद्रकांत दादा पाटील की सहमति दिलाने में पूरी ताकत लगा दी। यही कारण है कि 28 अगस्त 2022 को यूनिवर्सिटी की एक मीटिंग में प्रोमार्क कंपनी को काम देने के लिए कहा गया। उक्त मीटिंग के मिनिट्स में इस बारे में लिखा गया है।
मंत्रीजी के स्टॉफ ने कहा- यूनिवर्सिटी से जवाब मांगें : इस मामले में हमने उच्च एवं तकनीकी शिक्षा मंत्री चंद्रकांत दादा पाटील के स्टॉफ से संपर्क किया, उनका कहना था कि यह नागपुर यूनिवर्सिटी का मामला है, आप उन्हीं से सवालों के जवाब लें।
Created On :   26 Aug 2024 3:52 PM IST