निष्कर्ष और निशाना: आरएसएस की पत्रिका ने हार के लिए अजित पवार से गठबंधन को बताया जिम्मेदार

आरएसएस की पत्रिका ने हार के लिए अजित पवार से गठबंधन को बताया जिम्मेदार
  • पार्टी कार्यकर्ता व आम लोगों की रायशुमारी से निकाला यह निष्कर्ष
  • भाजपा में दलबदलुओं की चांदी
  • अजित पवार पर बड़ निशाना

डिजिटल डेस्क, मुंबई. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ने एक बार फिर लोकसभा चुनाव मे भाजपा के खराब प्रदर्शन के लिए राकांपा(अजित) के साथ गठबंधन को जिम्मेदार ठहराया है। आरएसएस से जुड़े एक साप्ताहिक अखबार में प्रकाशित एक लेख में कहा गया है कि भाजपा के अजित पवार के नेतृत्व वाले राकांपा गुट से हाथ मिलाने के बाद जनभावनाएं पूरी तरह से पार्टी के खिलाफ हो गईं। इसके पहले आरएसएस के मुखपत्र आर्गनाईजर में प्रकाशित लेख में भी अजित को साथ लेने के फैसले को नुकसानदायक बताया गया था। लेख के मुताबिक, उसने भाजपा के कुछ कार्यकर्ताओं और अन्य लोगों से बात की और इन सभी ने कहा कि वे राकांपा (अजित) से हाथ मिलाने के पार्टी के फैसले से सहमत नहीं थे। अखबार ने कहा कि पार्टी कार्यकर्ताओं के बीच व्याप्त असंतोष को कम करके आंका गया। मध्य प्रदेश में बेहतर समन्वय और शासन एवं निर्णय लेने की प्रक्रिया में कार्यकर्ताओं को दिए गए महत्व ने राज्य की लोकसभा सीटों पर जीत दर्ज करने में भाजपा की मदद की।

वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव में महाराष्ट्र में भाजपा की सीटों की संख्या पिछले चुनाव में 23 के मुकाबले घटकर नौ हो गई। वहीं, महायुति के उसके गठबंधन सहयोगियों-एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना को सात, जबकि अजित पवार के नेतृत्व वाली राकांपा को महज एक सीट से संतोष करना पड़ा। दूसरी ओर, विपक्षी गठबंधन महा विकास आघाडी ने महाराष्ट्र की 48 लोकसभा सीटों में से 30 पर कब्जा जमाया। आरएसएस से जुड़े साप्ताहिक अखबार ‘विवेक’ ने मुंबई, कोंकण और पश्चिम महाराष्ट्र क्षेत्र में 200 से अधिक लोगों पर की गई अनौपचारिक रायशुमारी के आधार पर यह लेख प्रकाशित किया है। लेख में कहा गया है, "भाजपा या संघ परिवार से जुड़े लगभग हर व्यक्ति ने कहा कि वह राकांपा (अजित) के साथ गठबंधन करने के भाजपा के फैसले से सहमत नहीं है। हमने 200 से अधिक उद्योगपतियों, व्यापारियों, चिकित्सकों, प्रोफेसर और शिक्षकों की राय जानी। इन सभी ने माना कि भाजपा-राकांपा गठबंधन को लेकर पार्टी कार्यकर्ताओं में व्याप्त असंतोष को कम करके आंका गया।

एक-दूसरे से छोटी-मोटी शिकायतों के बावजूद हिंदुत्व के साझा सूत्र के चलते शिवसेना के साथ भाजपा के गठबंधन को हमेशा स्वाभाविक माना जाता है। जबकि राकांपा से हाथ मिलाने के बाद जनभावनाएं पूरी तरह से भाजपा के खिलाफ हो गईं। लेख के मुताबिक, भाजपा की एक ऐसे दल के रूप में छवि बन गई, जो नेताओं को मांझने की पुरानी संगठनात्मक प्रक्रिया को पूरी तरह से नजरअंदाज करते हुए दूसरी पार्टी के नेताओं को खुद में शामिल करती है। इस प्रक्रिया से पार्टी को राष्ट्रीय स्तर पर अटल बिहारी वाजपेयी और राज्य स्तर पर गोपीनाथ मुंडे, प्रमोद महाजन, नितिन गडकरी और देवेंद्र फडणवीस जैसे दिग्गज नेता मिले। इसमें कहा गया है कि ये सभी नेता विनम्र पार्टी कार्यकर्ता थे, जो आगे चलकर बड़े नेता बने और वे इस बात को हमेशा से जानते थे।

भाजपा में दलबदलुओं की चांदी

लेख में अपने यूट्यूब चैनल के माध्यम से हिंदुत्व का प्रचार करने वाले यूट्यूबर भाऊ तोरसेकर को भाजपा की राज्य पदाधिकारी श्वेता शालिनी की ओर से भेजे गए कानूनी नोटिस का अप्रत्यक्ष रूप से जिक्र किया गया। तोरसेकर ने अपने एक हालिया पोस्ट में शालिनी के खिलाफ आलोचनात्मक टिप्पणी की थी, जिसके बाद शालिनी ने उन्हें कानूनी नोटिस भेजा था। हालांकि, बाद में उन्होंने इसे वापस ले लिया। लेख में कहा गया है, “विपक्ष ने यह धारणा कायम करने में सफलता पाई कि पार्टी के मूल कार्यकर्ता हमेशा निचले पायदान पर रहेंगे, जबकि दलबदलुओं को बड़े पद मिलेंगे। सोशल मीडिया पर हिंदुत्व का प्रचार करने वालों के खिलाफ कुछ लोगों की कार्रवाई ने भी पार्टी कार्यकर्ताओं के बीच असंतोष बढ़ा दिया। कार्यकर्ता यह भी सोचने लगे कि पार्टी में उनकी राय की कोई कीमत नहीं।

Created On :   17 July 2024 12:31 PM GMT

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