सरकारी अड़ंगा: बधिरों की सर्जरी के लिए सरकारी अस्पतालों में 9 माह से नहीं मिले इम्प्लांट

बधिरों की सर्जरी के लिए सरकारी अस्पतालों में 9 माह से नहीं मिले इम्प्लांट
  • 37 बधिरों की सर्जरी नहीं हो पायी है
  • सरकारी स्तर पर मुफ्त सुविधा उपलब्ध
  • बार-बार ध्यान दिलाने पर की जा रही अनदेखी

डिजिटल डेस्क, नागपुर । बधिरों के लिए राहत भरी एडीआईपी (दिव्यागों के लिए सहायक उपकरण खरीद व फिटिंग के लिए सहायता) योजना अतर्गत मुफ्त में मिलनेवाले कॉक्लियर इम्पांट पिछले 9 महीने से मिले नहीं है। इम्प्लांट नहीं मिलने से 37 बधीरों की सर्जरी नहीं हो पायी है। इस मामले में केंद्रीय मंत्री नितीन गडकरी को भी पत्र दिया गया था। उन्होंने आयुष मंत्रालय को इस बारे में सकारात्मक पहल करने की सूचना दी थी। बावजूद इसका कोई असर नहीं हुआ है। बधीर बच्चों के माता-पिता मेयो व मेडिकल में आकर संबंधित डॉक्टर से पूछताछ कर निराश होकर लौट रहे हैं।

7 साल में हो चुकी है 215 सर्जरियां : सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार बधिर बच्चों को सुनायी दे सके इसलिए कॉक्लियर इम्प्लांट सर्जरी की जाती है। यह सर्जरी बधीरों के लिए वरदान मानी जाती है। सर्जरी करने के लिए सरकारी स्तर पर मुफ्त सुविधा उपलब्ध है। शहर के शासकीय चिकित्सा महाविद्यालय व अस्पताल (मेडिकल) और इंदिरा गांधी शासकीय चिकित्सा महाविद्यालय व अस्पताल (मेयो) में सरकारी योजना अंतर्गत कॉक्लियर इम्प्लांट सर्जरी की सुविधा उपलब्ध है। दोनों सरकारी अस्पतालों में जानेवाली एडीअाईपी (दिव्यागों के लिए सहायक उपकरण खरीद व फिटिंग के लिए सहायता) योजना अतर्गत विशेषज्ञ डॉक्टरों द्वारा कॉक्लियर इम्प्लांट सर्जरी की जाती है। सामाजिक न्याय व अधिकारिता मंत्रालय द्वारा 2017 में एडीआईपी योजना की शुरुआत की गई। सितंबर 2017 से मेयो अस्पताल में व अगस्त 2017 से मेडिकल में इसकी शुरुआत हुई है। मेडिकल में अब तक 114 सर्जरियां और मेयो में 101 मिलाकर कुल 215 बधिर बच्चों की कॉक्लियर इम्प्लांट सर्जरी की जा चुकी है। यह बच्चे अब सुन सकते हैं।

37 बधिर बच्चों को इम्प्लांट का इंतजार : नवंबर 2023 से योजना अंतर्गत मिलनेवाले इम्प्लांट नहीं मिले है। इस कारण जरुरतमंद बधीर बच्चों के माता-पिता सरकारी अस्पतालों में संबंधित डॉक्टरों से पूछताछ करके निराश होकर लौट जाते हैं। पिछले 9 महीने में मेडिकल में 22 व मेयो में 15 बधीर मिलाकर कुल 37 बच्चे कॉक्लियर इम्प्लांट का इंतजार कर रहे है। इस बारे में सरकारी अस्पतालों ने अपने स्तर पर पत्राचार भी किया है, लेकिन कोई प्रतिसाद नहीं मिल रहा है। सूत्रों ने बताया कि केंद्रीय मंत्री नितीन गडकरी को भी पत्र देकर समस्या से अवगत कराया गया है। उन्होंने अपने स्तर पर आयुष मंत्रालय को इस विषय की दखल लेने सूचना दी है। बावजूद सकारात्मक पहल नहीं की जा रही है। कहा जा रहा है कि अन्य सरकारी योजना की तरह यह योजना भी उदासीनता का शिकार होने लगी है।

योजना में मिलता 6.50 लाख रुपए का इम्प्लांट :आर्थिक रुप से कमजोर वर्ग के बच्चों के लिए यह योजना है। कॉक्लियर इम्प्लांट करवाने के लिए एडीआईपी योजना के तहत लाभार्थी को 6.50 लाख का कॉक्लियर इम्प्लांट उपलब्ध कराया जाता है। इसके लिए दस्तावेज की प्रक्रिया अस्पतालों द्वारा पूरी की जाती है। ईएनटी विभाग में इस सर्जरी के लिए विशेषज्ञ डॉक्टर है। निजी अस्पतालों में सर्जरी करवाकर कॉक्लियर इम्प्लांट लगाने के लिए करीब 15 से 25 लाख रुपए तक खर्च आता है। एडीआईपी के पास संबंधित लाभार्थी के दस्तावेज भेजने के बाद पूरी पड़ताल की जाती है। दस्तावेजों की कमी होने पर उसकी पूर्ति करनी पड़ती है। डॉक्टरों द्वारा लाभार्थी की जांच से लेकर इम्प्लांट सर्जरी करने की प्रक्रिया में तीन महीने का समय लगता है। इसके बाद अली यावर जंग राष्ट्रीय वाक् एवं श्रवण दिव्यांगजन संस्थान द्वारा लाभार्थी के लिए डाक के माध्यम से इम्प्लांट भेजा जाता है।

कॉक्लियर इंप्लांट सर्जरी से सुन सकते है बधिर : कॉक्लियर इंप्लांट सर्जरी में सर्जन द्वारा कान के पीछे स्थित एक विशेष हड्डी को खोलने के लिए एक चीरा लगाया जाता हैं। वहां से एक रास्ता बनाया जाता है। इस तरह निर्धारित स्थान पर इम्प्लांट इलेक्ट्रोडस् को फिट कर दिया जाता है। कॉक्लिअर इम्प्लांट यह एक प्रोस्थेस्टिक उपकरण है, जिसकी सर्जरी द्वारा भीतरी कर्ण के कॉकलिआ में रोपण किया जाता है। जिन बच्चों के कानो में श्रवण दोष होता है, जिनकी श्रवण नसें सक्रिय नहीं होती उन्हें कॉक्लिअर इम्प्लांट का लाभ होता है । जिस तरह श्रवण यंत्र, आवाज को बढ़ाकर कान में पहुंचाने में मदद करता है, उसी तरह कॉक्लिअर इम्प्लांट कान के कॉकलिया के नसों तक विद्युतीय उत्तेजना को सीधा पहुंचाने में सहायता करता है। इससे बधीरों को सुनने में आसानी होती है, वह सामान्य लोगों की तरह सुन सकता है।

Created On :   27 Aug 2024 1:41 PM GMT

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