पहली उड़ान को तैयार: कभी गिद्धों की आबादी थी 5 करोड़, अब एक नजर नहीं आता - संरक्षण में जुटा पेंच, सात महीने की ट्रेनिंग हुई पूरी

कभी गिद्धों की आबादी थी 5 करोड़, अब एक नजर नहीं आता - संरक्षण में जुटा पेंच, सात महीने की ट्रेनिंग हुई पूरी
  • कल पेंच के जंगल में उड़ान भरेंगे नए सदस्य
  • जंगल में कैसे रहना है, क्या खाना है इसकी ट्रेनिंग हुई पूरी
  • भारत में गिद्ध की 3 प्रजातियों को सबसे ज्यादा हुआ नुकसान

डिजिटल डेस्क, नागपुर. पेंच में आए मेहमानों को अब जंगल भ्रमण के लिए छोड़ा जानेवाला है। शनिवार को पिंजरे में रखे गिद्धों को छोड़ा जाएगा है। कुल 10 गिद्ध हैं, जिन्हें हरियाणा से यहां लाया गया है। जिसके बाद प्रशिक्षित किया गया। इन गिद्ध की पीठ पर 50 ग्राम वजन का टैंग लगा है। जिसके माध्यम से इन पर वन विभाग की निगरानी होगी। लंबे समय से इन्हें हरियाना से लाकर एवीएरी में रखा गया था। ताकि प्रशिक्षित कर जंगल में छोड़ा जा सके। इसका मुख्य कारण गिद्धों की कम होती संख्या को बढ़ाना है। देशभर में गिद्धों की संख्या तेजी से कम हो रही है। जिसके कारण इन्हें बचाने के लिए योजना बनाई गई है। देश के हरियाणा, आसाम, मध्य प्रदेश, प. बंगाल जैसे राज्यों में इनकी ब्रीडिंग कर संख्या बढ़ाई जा रही है। फिर इन्हें अलग अलग जगह जंगल में छोड़ा जा रहा है। ताकि इनकी संख्या बढ़कर पहले जैसी हो सके।

पेंच व्याघ्र प्रकल्प के क्षेत्र संचालक डॉ. प्रभुनाथ शुक्ला ने बताया कि शनिवार को 10 गिद्धों को जंगल में छोड़ा जाएगा। इनका प्रशिक्षण पूरा हो गया है। इन पर मॉनिटरिंग के लिए टैंग भी लगाया गया है।

भारत में गिद्ध की 3 प्रजातियों को सबसे ज्यादा नुकसान

एक वक़्त ऐसा था जब भारत में बड़ी संख्या में गिद्ध पाए जाते थे। मवेशियों के शवों की तलाश में गिद्ध विशाल लैंडफिल पर मंडराते। 1990 के दशक के मध्य आते-आते 5 करोड़ की आबादी वाले गिद्धों की संख्या बहुत ही बुरी तरह से घटी है। एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में गिद्ध की 3 प्रजातियों को सबसे ज्यादा नुकसान हुआ। इनमें सफेद पंख वाला गिद्ध, भारतीय गिद्ध, लालसर गिद्ध शामिल थे। इनकी संख्या 98 फीसदी तक घट गई। गिद्धों की गिरती संख्या पर हंगामा मचा तो भारत ने साल 2006 में मवेशियों को दी जाने वाली डाइक्लोफिनेक बैन कर दी थी। इसके बाद कुछ इलाकों में गिद्धों की संख्या फिर बढ़ने लगी।


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विदर्भ में पेंच और ताडोबा में लाए गए हैं गिद्ध

गिद्ध प्रजाति तेजी से विलुप्त हो रही है। विदर्भ के जंगल में भी इनकी संख्या बहुत कम रह गई है। जिसके कारण वन विभाग ने विदर्भ के पेंच और ताडोबा जंगल में गिद्ध लाए गए थे। जिसमें बीएनएचएस संस्था ने उनका साथ दिया था। 20 जनवरी को बाहरी राज्य से पेंच व्याघ्र प्रकल्प व ताडोबा में 10 लंबी चोंचवाले गिद्ध लाए गए थे। उन्हें पिंजरे में रखा गया था। ताकि यहां उनको प्रशिक्षित किया जा सके। क्योंकि यह गिद्ध जंगल के वातावरण में रहनेवाले नहीं थे। इन्हे पहले जंगल में कैसे रहा जाता है, क्या खाया जाता है, इसे लेकर प्रशिक्षित किया जा रहा है। करीब 6 महीने से इन्हें विभिन्न तरह के प्रशिक्षण दिए हैं। ताकि जंगल में छोड़ने के बाद यह आसानी से दूसरे जानवरों में शामिल हो सकें।


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होगी मॉनिटरिंग

वर्तमान स्थिति में इन्हें अलग-अलग वन्यजीवों का मांस खाने के लिए दिया जा रहा है। ताकि जंगल में छोड़ने के बाद क्या खाएं और क्या नहीं खाएं इसके बारे में यह खुद जान सकें। जंगल में छोड़ने के बाद भी इन पर नजर रखने के लिए सैटेलाइट टैंग लगाए गए हैं। यह यंत्र ठीक उसी तरह काम करेगा, जिस तरह बाघ पर लगा कॉलर आईडी काम करता है।


Created On :   9 Aug 2024 12:39 PM GMT

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