- Home
- /
- राज्य
- /
- महाराष्ट्र
- /
- नागपुर
- /
- सरलता और सहजता की बेदाग पगड़ी -...
Nagpur News: सरलता और सहजता की बेदाग पगड़ी - साबित हो गया कि विद्वान सर्वत्र पूज्यते
- जयंती और पुण्यतिथि पर लोगों के अच्छे कामों को याद किया जाता है
- क्रिसमस का दिन ईसा मसीह से जुड़ा है
- मनमोहन और अटल
Nagpur News : प्रकाश दुबे। अंतिम संस्कार के समय मृतक की आत्मा की शांति या स्वर्ग में जगह देने जैसी प्रार्थनाएं आम हैं। और यह रिवाज सिर्फ अंतिम संस्कार के समय ही नहीं होता। जयंती और पुण्यतिथि पर लोगों के अच्छे कामों को याद किया जाता है। क्रिसमस का दिन ईसा मसीह से जुड़ा है। उस दिन अटल बिहारी वाजपेयी सहित कई महानुभाव याद किए जाते हैं। भारत के एक और प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने 92 वर्ष की आयु में 26 दिसंबर की रात अंतिम सांस ली। दोनों की समानता के कम और विविधता के अनेक उदाहरण हैं। अटल जी की सम्मोहक मुस्कान याद आती है। मुखर। हाजिरजवाब। बिना लाग-लपेट के कहने का माद्दा रखने वाले अटल की वाणी से मोहित श्रोता पुलकित होते थे। पुलक का वोट में बदलना जरूरी नहीं रहा। तब भी नहीं, जब वे प्रधानमंत्री थे। सत्ता में रहते हुए पार्टी लोकसभा चुनाव में बहुमत पाने से पिछड़ गई।
भारत में लोकसभा चुनाव की तैयारी अंदरखाने शुरू हो चुकी थीं। भारतीय जनता पार्टी के नेता लालकृष्ण आडवाणी ने मध्यप्रदेश की जनसभा में घोषणा कर दी- हमारी पार्टी सत्ता में आई तो अटल जी प्रधानमंत्री होंगे। अलमस्त अटल जी विदेश में थे। अटल जी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बीच संबंधों में वैसी मधुरता नहीं थी, जिसका दावा प्रधानमंत्री पद के अन्य दावेदार कर सकते थे। अटल जी दिल्ली हवाई अड्डे पर उतरे। उन दिनों प्रेस क्लब ऑफ इंडिया से मुखातिब कोठी में निवास था। कोठी के खुले मैदान में झूले पर अटल जी को झूलते हुए देखा जा सकता था। वाजपेयी जी के निजी सचिव शिवकुमार जी से फोन पर आग्रह किया- अटल जी से बात करना है। वे संकोच कर रहे थे। वाजपेयी के विदेश से लौटने की थकान का अनुमान था। मैंने अनुरोध किया- उनसे पूछ लो।
प्रश्न सुनकर मुस्कराए। बोले- पत्ता काटने के लिए नाम उछाल दिया होगा। पूरा ब्यौरा जानने के बावजूद अटल जी गंभीरता से बोले- हमारी पार्टी में लोकतांत्रिक पद्धति से निर्णय होते हैं। पार्टी की जीत के बाद इसका निर्णय होगा। उस समय सारा देश अटल जी को पार्टी का भावी कप्तान मानकर चल रहा था। वाजपेयी ने सीटें जीतने का दावा नहीं किया और न दावेदारी का। उनकी तुलना में डॉ. मनमोहन सिंह भाग्यशाली थे। सुषमा स्वराज ने उन्हें दक्षिण दिल्ली से लोकसभा चुनाव में पराजित किया था। डॉ. सिंह को प्रधानमंत्री नरसिंहराव ने खस्ताहाल वित्त मंत्रालय की बागडोर सौंपी। राज्यसभा में वे असम कोटे से आए। असम के मुख्यमंत्री हितेश्वर सैकिया की पत्नी के किराएदार रहे जिसका समय से भाड़ा चुकाया जाता रहा। फटा पोस्टर निकला हीरो प्रधानमंत्री को अपने बाद वाले प्रधानमंत्री से सुनने मिला- डॉ. सिंह अकेले हैं, जो रेनकोट पहनकर नहाने की कला जानते हैं। इस फब्ती का सरल भाव यह था- भ्रष्टाचार होता रहा। आप बचे रहे। संदर्भ-टू जी घोटाला। जिसके जांचकर्ता आईएएस अफसर ने बरसों बाद मंजूर किया कि उसका आरोप गलत था। माफी मांग ली।
संयुक्त राष्ट्र महासभा की बैठकों के संवाद संकलन के लिए पत्रकार दस साल पहले प्रधानमंत्री के साथ विमान में जाया करते थे। प्रधानमंत्री वाजपेयी से विदेश यात्रा के दौरान पत्रकार ने पारिवारिकता से जुड़ा शरारती सवाल दागा। मुस्कराकर जवाब मिला- आप अधर में हैं। यह भूल गए कि इस समय भारत में संध्या हो चुकी है। यह थी हाजिरजवाबी। प्रधानमंत्री डॉ. सिंह से विदेश यात्रा की वापसी के दौरान पत्रकार ने दिया- बाकी सब ठीक है। आपकी विदाई यात्रा अच्छी रही। विनम्र प्रधानमंत्री ने अंगरेजी में कहा- आशा है, आपने यात्रा में सार्थकता खोज ली। दो अलग छोर।
गुलजारी लाल नंदा दो बार कुछ दिनों के अंतरिम प्रधानमंत्री बने। लाल बहादुर शास्त्री के बाद डॉ. सिंह दूसरे जमीनी प्रधानमंत्री थे। दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रोफेसर के तौर पर वे साइकिल से जाते थे। अनेक राजनेताओं के पास संपत्ति के नाम पर खाते में साइकिल तक दर्ज नहीं है। हालांकि अनेक जनप्रतिनिधि करोड़ों के मालिक हैं। विमान और कालीन उनके चरणों तले रहते हैं। आभासी सच और वोट की जरुरत के हिसाब से जयंती और पुण्यतिथि मनाई जाती हैं। कफन पर मत्था टेकने, कफन को ध्वज की तरह लहराने और कफन खींचने की कवायद राजनीति की पहचान बनती जा रही है। ना काहू से दोस्ती, ना काहू से बैर वाले बाबा कबीर का कफन दो समुदायों के लोग आधा-आधा फाड़ ले गए। बर्मा-अब म्यांमार में कैद 1857 के योद्धा बहादुर शाह जफर को कहना पड़ा- दो गज जमीं न मिली कू ए यार में।
आलोचना और स्तुति सुमन की बारिश से निर्लिप्त प्रधानमंत्री के साथ पैदाइशी सिंह के बजाय नाम के साथ गुणवत्ता प्रतीक डॉक्टर जुड़ा रहा। साबित हुआ कि विद्वान सर्वत्र पूज्यते।
Live Updates
- 28 Dec 2024 5:53 PM IST
सरलता की बेदाग पगड़ी
Nagpur News : प्रकाश दुबे। अंतिम संस्कार के समय मृतक की आत्मा की शांति या स्वर्ग में जगह देने जैसी प्रार्थनाएं आम हैं। और यह रिवाज सिर्फ अंतिम संस्कार के समय ही नहीं होता। जयंती और पुण्यतिथि पर लोगों के अच्छे कामों को याद किया जाता है। क्रिसमस का दिन ईसा मसीह से जुड़ा है। उस दिन अटल बिहारी वाजपेयी सहित कई महानुभाव याद किए जाते हैं। भारत के एक और प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने 92 वर्ष की आयु में 26 दिसंबर की रात अंतिम सांस ली। दोनों की समानता के कम और विविधता के अनेक उदाहरण हैं। अटल जी की सम्मोहक मुस्कान याद आती है। मुखर। हाजिरजवाब। बिना लाग-लपेट के कहने का माद्दा रखने वाले अटल की वाणी से मोहित श्रोता पुलकित होते थे। पुलक का वोट में बदलना जरूरी नहीं रहा। तब भी नहीं, जब वे प्रधानमंत्री थे। सत्ता में रहते हुए पार्टी लोकसभा चुनाव में बहुमत पाने से पिछड़ गई।
Created On :   28 Dec 2024 5:51 PM IST