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Nagpur News: मनोरोग के कारण भटकीं 133 महिलाओं को वापस घर पहुंचाया, परिजन ने छोड़ दी थी आस

- विभिन्न कारणों से तनावग्रस्त महिलाओं का सहारा बना नागपुर का प्रादेशिक मनोचिकित्सालय
- महिलाएं तनाव या मनोरोग के कारण घर छोड़कर निकल जाती हैं
- 2 साल में 133 महिलाओं काे मिला परिवार
Nagpur News. चंद्रकांत चावरे। कुछ महिलाएं तनाव या मनोरोग के कारण घर छोड़कर निकल जाती हैं। इनमें कुछ को नागपुर के प्रादेशिक मनोचिकित्सालय में भर्ती कराया जाता है। यहां से एक नई कहानी शुरू होती है। उनके शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य में सुधार होता है। बरसों बाद उन्हें परिजनों से मिलाया जाता है। गत दो साल में इस संस्थान ने 13 राज्यों की ऐसी 133 महिलाओं को उनके परिवार से मिलाया है।
2 साल में 133 महिलाओं काे मिला परिवार
प्रादेशिक मनोचिकित्सालय में रिश्तेदारों, पुलिस प्रशासन, न्यायालयीन आदेश, सरकारी व निजी संस्थाओं के माध्यम से मनोरोगियों का प्रवेश होता है। उनकी नियमित जांच, स्वच्छता, उपचार पर विशेष ध्यान दिया जाता है। उनके जीवन से जुड़ी घटनाएं मालूम की जाती है। मरीज की निगरानी की जाती है। प्रत्यक्ष व वीडियो कॉलिंग के माध्यम से मुलाकात व समुपदेशन किया जाता है। शारीरिक व मानसिक रूप से स्वस्थ होने के बाद उन्हें परिजनों तक पहुंचाने का प्रयास किया जाता है। यदि किसी मरीज के परिजनों का पता नहीं लगने पर संस्थाओं में पुनर्वसन किया जाता है। प्रादेशिक मनोचिकित्सालय की समाजसेवा अधीक्षक कुंदा बिडकर (काटेखाये) के पास महिला विभाग की जिम्मेदारी है। चिकित्सा अधीक्षक डॉ. सतीश हुमणे और अस्पताल की टीम द्वारा मनोरोगियों का स्वास्थ्य प्रबंधन किया जाता है।
परिजनों ने थककर छोड़ दी थी आस
केस - 1. एक महिला 10 साल 7 महीने तक प्रादेशिक मनोचिकित्सालय में रहने के बाद घर लौटी। अमरावती स्थित नांदगांव पुलिस ने 7 जून 2014 को सविता (बदला हुआ नाम) को यहां भर्ती किया। उसे पोस्टपार्टम साइको नामक बीमारी थी। यह प्रसूति के बाद होती है। उपचार से स्वस्थ हुई। सविता ने 31 जनवरी 2025 को अपने बारे में बताया। वह बिहार के नालंदा जिले के शाहपुर गांव की निवासी थी। 4 फरवरी 2025 को उसे लेेने परिजन आए। पहले परिजनों ने काफी तलाश की थी। बाद में उसके जीवित होने की आस छोड़ दी थी।
तनावग्रस्त रहती थी, फिर मनोरोग
केस - 2. भद्रावती पुलिस ने 6 फरवरी 2023 को सोनिया (बदला हुआ नाम) को भर्ती कराया। उसकी शारीरिक व मानसिक हालत खराब थी। उसके हाथों की सर्जरी और कई बार मेडिकल में उपचार कराया गया। वह काफी सालों से घर से बाहर थी। मानसोपचार विशेषज्ञ डॉ. पंकज बागडे के उपचार में उसे रखा गया। समाजसेवा अधीक्षक कुंदा बिडकर ने उससे बात करके जानकारी लेने का प्रयास किया। अगस्त 2023 में उसने बच्चों का नाम बताया। चार-पांच थानों में संपर्क करने के बाद बेनुर पुलिस थाने ने बताया कि वह 17 साल पहले घर से चली गई थी। उस समय बच्चे छोटे थे। सोनिया से उसके बच्चों से ऑनलाइन मुलाकात करवाई गई। पति के शराब सेवन से तनाव था। परिजन सोनिया को साथ ले गए। मनोचिकित्सालय के चिकित्सा अधीक्षक डॉ. सतिश हुमणे ने सोनिया के हाथ पर मोबाइल नंबर गोदने की सलाह दी। अधिसेविका रुपाली ठाकरे, अधिपरिचारिका शुभांगी इनकने ने उसकी देखभाल की थी।
पहले तो भाई ने रखने से किया था इनकार
केस - 3. 40 साल की पूजा (बदला हुआ नाम) को हिंगना पुलिस ने भर्ती किया था। जब उसे लाया गया था, तो वह 7 महीने की गर्भवती थी। उसका स्वभाव काफी आक्रामक था। गर्भावस्था के दौरान वह कहती थी कि ‘मेरा बच्चा मैं किसी को नहीं दूंगी।’ उसे पोस्टपार्टम साइको बीमारी थी। उपचार से सामान्य हो गई। उसने एक बेटे को जन्म दिया। पूजा उत्तरप्रदेश के शिवरामपुर की रहने वाली थी। उसके भाई का पता लगाया गया, लेकिन भाई ने रखने से इनकार कर दिया। अधिकारों को लेकर चर्चा की गई, तब जाकर भाई तैयार हुआ।
आक्रामक थी, अब संभाल रही परिवार
केस - 4. मानसिक संतुलन खोने से रोशनी छह साल तक घर से बाहर रही। उसे भंडारा से प्रादेशिक मनोचिकित्सालय में भर्ती कराया गया। वह काफी आक्रामक थी। नियमित जांच व उपचार के चलते धीरे-धीरे वह सामान्य होने लगी। एक दिन उसने अपने घर का पता बताया। वह नागपुर जिले की निवासी थी। मां ने उसकी कहानी बतायी। वह पति के साथ नागपुर में रहती थी। उसने किसी रईस से शादी का सपना देखा था, लेकिन उसे मिला गरीब। इसलिए वह परेशान रहने लगी थी। पति को शराब की लत होने से वह घर का सामान बेचता था। उसे दो बच्चे थे। तनाव में एक दिन वह निकल गई। अंतत: वह मनोचिकित्सालय में मिली। रोशनी के पति काे बुलाया गया। पति ने ले जाने से इनकार कर दिया। बाद में हृदय परिवर्तन हुआ। रोशनी मानसिक व शारीरिक रूप से स्वस्थ हो चुकी थी। मनोचिकित्सालय से उसे छुट्टी दी गई। अब वह परिवार के साथ है।
Created On :   14 April 2025 8:43 PM IST