ध्यान रखने वाली बात: पटाखे रोशनी छीन लेते हैं, हो सकती त्वचा की बीमारियां और बहरापन

पटाखे रोशनी छीन लेते हैं, हो सकती त्वचा की बीमारियां और बहरापन
  • बढ़ जाता है दमा व एलर्जी का प्रमाण
  • पटाखा फूटते ही आंख को होता है नुकसान
  • पटाखे फोड़ने के लिए अकेला नहीं छोड़ना

डिजिटल डेस्क, नागपुर. खुशियां और खुशहाली का त्योहार दिवाली धूमधाम से मनाया गया, लेकिन नव वर्ष तक उत्सव का दौर चलता रहेगा। जिसे सेलिब्रेट करने के लिए बच्चे या युवा पटाखे फोड़ने का मौका नहीं चूकते, इन खुशियों को मनाते समय सावधानी बरतना बेहद जरूरी है। देश में हर साल खासकर दिवाली के दौरान पांच हजार से अधिक लोगों की आंखों की रोशनी चली जाती है। पटाखे और बम के कारण आंखों को सर्वाधिक नुकसान होता है। वहीं त्वचा को भी नुकसान होता है। इसलिए विशेषज्ञ दिवाली में पटाखे फोड़ने को लेकर सावधानी बरतने की सलाह देते हैं।

बढ़ जाता है दमा व एलर्जी का प्रमाण

पटाखों में चारकोल, गंधक, नाइट्रेट, क्लोरेट, परफ्लोरेट आदि घटक होते हैं। पटाखे फूटने के बाद निकलनेवाला धुआं आंखों, फेफड़ों व त्वचा को नुकसान पहुंचाता है। इससे दमा व एलर्जी का प्रमाण बढ़ता है। ध्वनि प्रदूषण, जल प्रदूषण, वायु प्रदूषण आदि का फैलाव होता है। इसके अलावा जहां पटाखे फोड़े जाते हैं, वहां का तापमान बढ़ जाता है। पटाखों के कारण सर्वाधिक नुकसान आंखों को होता है। 16 साल से कम आयु वर्ग के बच्चों पर इसका अधिक असर दिखाई देता है।

पटाखा फूटते ही आंख को होता है नुकसान

मेडिकल के नेत्र रोग विभाग प्रमुख डॉ. नंदू राऊत ने बताया कि दो दिन पहले मेडिकल में एक तीन साल के बच्चे की आंख को नुकसान पहुंचा है। उसकी आंख निकालने की नौबत आ चुकी है। उन्होंने बताया कि इस मामले में पालकों की लापरवाही है। बच्चे को पटाखे फोड़ने के लिए अकेला छोड़ दिया गया। इसका नतीजा यह हुआ की पटाखा फूटते ही आंख को नुकसान हुआ है।

पटाखे फोड़ने के लिए अकेला नहीं छोड़ना

डॉ. राऊत ने बताया कि पटाखे फोड़ते समय सावधानी बरतना जरूरी है। बच्चों को पटाखे फोड़ने के लिए अकेला नहीं छोड़ना चाहिए। घर के वरिष्ठ सदस्य की निगरानी होना जरूरी है। पटाखों की बाती के करीब जाकर जलाने कीे काेशिश नहीं करनी चाहिए। बाती को लंबी लकड़ी से जलाना चाहिए। पटाखे जलाने के लिए माचिस का उपयोग नहीं करना चाहिए। इससे वहां से दूर जाने का मौका नहीं मिलता। परिवार में सामान्य पटाखे लाना चाहिए। संभव हो तो चश्मा पहनकर पटाखे फोड़ना चाहिए। डॉ. राऊत ने बताया कि ऐसे स्थानों पर पटाखे फोड़ने पर धूल, पत्थर, मिट्‌टी उड़ती है। इससे आंखों समेत अन्य अंगों को नुकसान होता है।

सर्वाधिक नुकसान आंखों को

पटाखों के कारण आंखों पर असर होने का एहसास होते ही तुरंत नेत्र रोग विशेषज्ञों को दिखाना चाहिए। डॉक्टर के पास पहुंचने तक आंखों काे मलना नहीं चाहिए। इससे आखाें में जो कण गए हैं, वह और भीतर तक जा सकते हैं। इससे आंखे खराब होती हैं। सबसे पहले आंखों को साफ व ठंडे पानी से साफ करना चाहिए। डॉक्टर की सलाह नुसार उपचार करवाना चाहिए। पटाखों से होनेवाले नुकसान के प्रारंभिक लक्षणों में आंखें लाल होना, पानी आना, आंख दर्द करना, आखों में धुंधला दिखाई देना, प्रकाश सहन न होना, सिरदर्द होना, आंखों में पस जमना, सूजन, उल्टियां होना आदि लक्षण दिखाई देते हैं। डॉ. राऊत ने कहा कि ऐसे पटाखों का उपयोग करें, जिनसे नुकसान न हो।

दिल का दौरा भी पड़ सकता है

आतिशबाज़ी की आवाज़ काफी तेज होती है, जो 140 डेसिबल से ऊपर जा सकती है। मनुष्य के लिए मानक डेसिबल स्तर 60 डेसिबल है। 85 डेसिबल से तेज आवाज़ सुनने से श्रवण शक्ति प्रभावित हो सकती है। कुछ देर के लिए या हमेशा के लिए कान खराब हो सकते हैं। कान में तेज़ दर्द हो सकता है, नींद में खलल, उच्च रक्तचाप और यहां तक कि दिल का दौरा भी पड़ सकता है। शोर का स्तर अगर ऊंचा हो, तो इससे गर्भवती महिलाओं, बच्चों और सांस की समस्याओं से पीड़ित लोगों में बेचैनी या अन्य दिक्कतें पैदा हो सकती हैं। पटाखों से निकलने वाले हानिकारक धुएं से गर्भपात हो सकता है। इसलिए गर्भवती महिलाओं को इस दौरान घर पर रहने की ही सलाह दी जाती है। पटाखों से खेलने से गंभीर तरह से जलने और अन्य चोटों की संभावना अधिक होती है।

Created On :   13 Nov 2023 12:22 PM GMT

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